56. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 56

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

छप्पनवाँ सर्ग – २४ श्लोक ।।

सारांश ।।

विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठजी पर नाना प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग और वसिष्ठजी द्वारा ब्रह्मदण्ड से ही उनका शमन एवम् विश्वामित्र का ब्राह्मणत्व की प्राप्ति केलिये तप करने का निश्चय करना। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १२ ।।

१.
वसिष्ठजी के ऐसा कहने पर महाबली विश्वामित्र आग्नेयास्त्र लेकर बोले- “अरे खड़ा रह, खड़ा रह।” ।।

२.
उस समय द्वितीय कालदण्ड के समान ब्रह्मदण्ड को उठाकर भगवान् वसिष्ठ ने क्रोध पूर्वक इस प्रकार कहा- ।।

३.
“क्षत्रियाधम! ले, यह मैं खड़ा हूँ। तेरे पास जो बल हो, उसे दिखा। गाधिपुत्र ! आज तेरे अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान का घमंड मैं अभी धूलमें मिला दूँगा।” ।।

४.
“क्षत्रियकुल के कलङ्क! कहाँ तेरा क्षात्रबल और कहाँ महा न्ब्रह्मबल। मेरे दिव्य ब्रह्मबल को देख ले।” ।।

५.
गाधिपुत्र विश्वामित्र का वह उत्तम एवम् भयंकर आग्नेयास्त्र वसिष्ठजी के ब्रह्मदण्ड से उसी प्रकार शान्त हो गया, जैसे पानी पड़ने से जलती हुई आग का वेग। ।।

६.
तब गाधिपुत्र विश्वामित्र ने कुपित होकर वारुण, रौद्र, ऐन्द्र, पाशुपत और ऐषीक नामक अस्त्रों का प्रयोग किया। ।।

७ से १२.
रघुनन्दन ! उसके पश्चात् क्रमशः मानव, मोहन, गान्धर्व, स्वापन, जृम्भण, मादन, संतापन, विलापन, शोषण, विदारण, सुदुर्जय वज्रास्त्र, ब्रह्मपाश, कालपाश, वारुणपाश, परमप्रिय पिनाकास्त्र, सूखी - गीली दो प्रकार की अशनि, दण्डास्त्र, पैशाचास्त्र, क्रौञ्चास्त्र, धर्मचक्र, कालचक्र, विष्णुचक्र, वायव्यास्त्र, मन्थनास्त्र, हयशिरा, दो प्रकार की शक्ति, कङ्काल, मूसल, महान् वैद्याधरास्त्र, दारुण कालास्त्र, भयंकर त्रिशूलास्त्र, कापालास्त्र और कङ्कणास्त्र- ये सभी अस्त्र उन्होंने वसिष्ठजी के ऊपर चलाये। ।।

श्लोक १३ से २० ।।

१३.
जपनेवालों में श्रेष्ठ महर्षि वसिष्ठ पर इतने अस्त्रों का प्रहार वह एक अद्भुत-सी घटना थी, परंतु ब्रह्मा के पुत्र वसिष्ठजी ने उन सभी अस्त्रों को केवल अपने डंडे से ही नष्ट कर दिया ।।

१४ से १५.
उन सब अस्त्रों के शान्त हो जाने पर गाधिनन्दन विश्वामित्र ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। ब्रह्मास्त्र को उद्यत देख अग्नि आदि देवता, देवर्षि, गन्धर्व और बड़े-बड़े नाग भी दहल गये। ब्रह्मास्त्र के ऊपर उठते ही तीनों लोकों के प्राणी थर्रा उठे। ।।

१६.
राघव! वसिष्ठजी ने अपने ब्रह्मतेज के प्रभाव से उस महाभयंकर ब्रह्मास्त्र को भी ब्रह्मदण्ड के द्वारा ही शान्त कर दिया। ।।

१७.
उस ब्रह्मास्त्र को शान्त करते समय महात्मा वसिष्ठ का वह रौद्र रूप तीनों लोकों को मोह में डालने वाला और अत्यन्त भयंकर जान पड़ता था। ।।

१८.
महात्मा वसिष्ठ के समस्त रोमकूपों में से किरणों की भाँति धूमयुक्त आग की लपटें निकलने लगीं। ।।

१९.
वसिष्ठजी के हाथ में उठा हुआ द्वितीय यमदण्ड के समान वह ब्रह्मदण्ड धूमरहित कालाग्नि के समान प्रज्वलित हो रहा था। ।।

२०.
उस समय समस्त मुनिगण मन्त्र जपनेवालों में श्रेष्ठ वसिष्ठ मुनि की स्तुति करते हुए बोले – “ब्रह्मन्! आप का बल अमोघ है। आप अपने तेज को अपनी ही शक्ति से समेट लीजिये।” ।।

श्लोक २१ से २४ ।।

२१.
“महाबली विश्वामित्र आपसे पराजित हो गये। मुनिश्रेष्ठ! आप का बल अमोघ है। अब आप शान्त हो जाइये, जिस से लोगों की व्यथा दूर हो। जाए” ।।

२२.
महर्षियों के ऐसा कहने पर महातेजस्वी महाबली वसिष्ठजी शान्त हो गये और पराजित विश्वामित्र लम्बी साँस खींच कर यों बोले- ।।

२३.
“क्षत्रिय के बल को धिक्कार है। ब्रह्मतेज से प्राप्त होनेवाला बल ही वास्तव में बल है; क्योंकि आज एक ब्रह्मदण्ड ने मेरे सभी अस्त्र नष्ट कर दिये।” ।।

२४.
“इस घटना को प्रत्यक्ष देखकर अब मैं अपने मन और इन्द्रियों को निर्मल करके उस महान् तप का अनुष्ठान करूँगा, जो मेरे लिये ब्राह्मणत्व की प्राप्ति का कारण होगा।” ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में छप्पनवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ।।

Sarg 56- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.