54. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 54

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

चौवनवाँ सर्ग – २३ श्लोक ।।

सारांश ।।

विश्वामित्रजी का वसिष्ठजी की गौ को बलपूर्वक लेजाना, गौ का दुखी होकर वसिष्ठजी से इसका कारण पूछना और उनकी आज्ञा से शक, यवन, पह्नव आदि वीरों की सृष्टि करके उनके द्वारा विश्वामित्रजी की सेना का संहार करना। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
“श्रीराम! जब मुनि वसिष्ठ किसी तरह भी उस कामधेनु गौ को देने के लिये तैयार न हुए, तब राजा विश्वामित्र उस चितकबरे रंग की धेनु को बलपूर्वक घसीट ले चले।” ।।

२.
“रघुनन्दन! महामनस्वी राजा विश्वामित्र के द्वारा इस प्रकार लेजायी जाती हुई वह गौ शोकाकुल हो मन-ही-मन रो पड़ी और अत्यन्त दुखित हो विचार करने लगी- ।।

३.
“अहो! क्या महात्मा वसिष्ठ ने मुझे त्याग दिया है, जो ये राजा के सिपाही मुझ दीन और अत्यन्त दुखिया गौ को इस तरह बलपूर्वक लिये जा रहे हैं?” ।।

४.
“पवित्र अन्तःकरण वाले उन महर्षि का मैंने क्या अपराध किया है कि वे धर्मात्मा मुनि मुझे निरपराध और अपना भक्त जान कर भी त्याग रहे हैं?” ।।

५.
“शत्रुसूदन! यह सोच कर वह गौ बारम्बार लंबी साँस लेने लगी और राजा के उन सैकड़ों सेवकों को झटक कर उस समय महातेजस्वी मुनि वसिष्ठ के पास बड़े वेग से जा पहुँची।” ।।

६ से ७.
“वह शबला गौ वायु के समान वेग से उन महात्मा के चरणों के समीप गयी और उनके सामने खड़ी हो मेघ के समान गम्भीर स्वर से रोती- चीत्कार करती हुई उनसे इस प्रकार बोली- ।।

८.
“भगवन्! ब्रह्मकुमार! क्या आपने मुझे त्याग दिया, जो ये राजा के सैनिक मुझे आपके पास से दूर लिये जा रहे हैं?” ।।

९.
“उसके ऐसा कहने पर ब्रह्मर्षि वसिष्ठ शोक से संतप्त हृदयवाली दुखिया बहिन के समान उस गौ से इस प्रकार बोले - ।।

१०.
“शबले! मैं तुम्हारा त्याग नहीं करता। तुमने मेरा कोई अपराध नहीं किया है। ये महाबली राजा अपने बल से मतवाले होकर तुमको मुझसे छीन कर ले जा रहे हैं।” ।।

श्लोक ११ से २१ ।।

११.
“मेरा बल इनके समान नहीं है। विशेषतः आज कल ये राजा के पद पर प्रतिष्ठित हैं। राजा, क्षत्रिय तथा इस पृथ्वी के पालक होने के कारण ये बलवान् हैं।” ।।

१२.
“इनके पास हाथी, घोड़े और रथों से भरी हुई यह अक्षौहिणी सेना है, जिसमें हाथियों के दों पर लगे हुए ध्वज सब ओर फहरा रहे हैं। इस सेना के कारण भी ये मुझसे प्रबल हैं।” ।।

१३.
“वसिष्ठजी के ऐसा कहने पर बातचीत के मर्म को समझने वाली उस कामधेनु ने उन अनुपम तेजस्वी ब्रह्मर्षि से यह विनययुक्त बात कही - ।।

१४.
“ब्रह्मन्! क्षत्रिय का बल कोई बल नहीं है। ब्राह्मण ही क्षत्रिय आदि से अधिक बलवान् होते हैं। ब्राह्मण का बल दिव्य है। वह क्षत्रिय-बल से अधिक प्रबल होता है।” ॥

१५.
“आपका बल अप्रमेय है। महापराक्रमी विश्वामित्र आपसे अधिक बलवान् नहीं हैं। आपका तेज दुर्धर्ष है।” ।।

१६.
“महातेजस्वी महर्षे! मैं आपके ब्रह्मबल से परिपुष्ट हुई हूँ। अतः आप केवल मुझे आज्ञा दे दीजिये। मैं इस दुरात्मा राजा के बल, प्रयत्न और अभिमान को अभी चूर्ण किये देती हूँ।” ।।

१७.
“श्रीराम! कामधेनु के ऐसा कहने पर महायशस्वी वसिष्ठ ने कहा – “इस शत्रु सेना को नष्ट करने वाले सैनिकों की सृष्टि करो।” ।।

१८.
“राजकुमार! उनका वह आदेश सुनकर उस गौ ने उस समय वैसा ही किया। उसके हुंकार करते ही सैकड़ों पह्नव जाति के वीर पैदा हो गये।” ।।

१९.
“वे सब विश्वामित्र के देखते-देखते उनकी सारी सेना का नाश करने लगे। इससे राजा विश्वामित्र को बड़ा क्रोध हुआ। वे रोष से आँखें फाड़-फाड़ कर देखने लगे।” ।।

२० से २१.
“उन्होंने छोटे-बड़े कई तरह के अस्त्रों का प्रयोग करके उन पह्नवों का संहार कर डाला। विश्वामित्र द्वारा उन सैकड़ों पह्नवों को पीड़ित एवम् नष्ट हुआ देख उस समय उस शबला गौ ने पुनः यवनमिश्रित शक जाति के भयंकर वीरों को उत्पन्न किया। उन यवनमिश्रित शकों से वहाँ की सारी पृथ्वी भर गयी।” ।।

श्लोक २२ से २३ ।।

२२ से २३.
“वे वीर महापराक्रमी और तेजस्वी थे। उनके शरीर की कान्ति सुवर्ण तथा केसर के समान थी। वे सुनहरे वस्त्रों से अपने शरीर को ढँके हुए थे। उन्होंने हाथों में तीखे खड्ग और पट्टिश ले रखे थे। प्रज्वलित अग्नि के समान उद्भासित होने वाले उन वीरों ने विश्वामित्र की सारी सेना को भस्म करना आरम्भ किया। तब महातेजस्वी विश्वामित्र ने उनपर बहुत से अस्त्र छोड़े। उन अस्त्रों की चोट खाकर वे यवन, काम्बोज और बर्बर जाति के योद्धा व्याकुल हो उठे।” ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में चौवनवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।

Sarg 54- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.