50. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 50

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

पचासवाँ सर्ग – २५ श्लोक ।।

सारांश ।।

श्रीराम आदि का मिथिला- गमन, राजा जनक द्वारा विश्वामित्रजी का सत्कार तथा उनका श्रीराम और लक्ष्मण के विषय में जिज्ञासा करना एवम् परिचय पाना। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
तदनन्तर लक्ष्मण सहित श्रीराम विश्वामित्रजी को आगे करके महर्षि गौतम के आश्रम से इशानकोण की ओर चले और मिथिला नरेश के यज्ञ मण्डप में जा पहुँचे। ।।

२ से ३.
वहां लक्ष्मण सहित श्रीराम ने मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र से कहा- “महाभाग ! महात्मा जनक के यज्ञ का समारोह तो बड़ा सुन्दर दिखायी दे रहा है। यहाँ नाना देशों के निवासी सहस्रों ब्राह्मण जुटे हुए हैं, जो वेदों के स्वाध्याय से शोभा पा रहे हैं।” ।।

४.
“ऋषियों के बाड़े सैकड़ों छकड़ों से भरे दिखायी दे रहे हैं। ब्रह्मन्! अब ऐसा कोई स्थान निश्चित कीजिये, जहाँ हमलोग भी ठहरें।” ।।

५.
श्रीरामचन्द्रजी का यह वचन सुनकर महामुनि विश्वामित्र ने एकान्त स्थान में डेरा डाला, पानी का सुभीता था। ।

६.
जहाँ अनिन्द्य (उत्तम) आचार-विचार वाले नृपश्रेष्ठ महाराज जनक ने जब सुना कि विश्वामित्रजी पधारे हैं, तब वे तुरंत अपने पुरोहित शतानन्द को आगे करके [ अर्घ्य लिये विनीतभाव से उन का स्वागत करने को चल दिये ] ।।

७.
उनके साथ अर्घ्य लिये महात्मा ऋत्विज् भी शीघ्रतापूर्वक चले। राजा ने विनीत भाव से सहसा आगे बढ़कर महर्षि की अगवानी की तथा धर्मशास्त्र के अनुसार विश्वामित्रजी को धर्मयुक्त अर्घ्य समर्पित किया। ।।

८.
महात्मा राजा जनक की वह पूजा ग्रहण करके मुनि ने उनका कुशल- समाचार पूछा तथा उनके यज्ञ की निर्बाध स्थिति के विषय में जिज्ञासा की। ।।

९.
राजा के साथ जो मुनि, उपाध्याय और पुरोहित आये थे, उनसे भी कुशल-मंगल पूछकर विश्वामित्रजी बड़े हर्ष के साथ उन सभी महर्षियों से यथायोग्य मिले। ।।

१०.
इसके बाद राजा जनक ने मुनिवर विश्वामित्र से हाथ जोड़कर कहा- “भगवन्! आप इन मुनीश्वरों के साथ आसन पर विराजमान होइये।” ।।

श्लोक ११ से २१ ।।

११ से १२.
यह बात सुनकर महामुनि विश्वामित्र आसन पर बैठ गये। फिर पुरोहित, ऋत्विज् तथा मन्त्रियों सहित राजा भी सब ओर यथायोग्य आसनों पर विराजमान हो गये। ।

१३.
तत्पश्चात् राजा जनक ने विश्वामित्रजी की ओर देखकर कहा- “भगवन्! आज देवताओं ने मेरे यज्ञ की आयोजना सफल कर दी।” ।।

१४.
“आज पूज्य चरणों के दर्शन से मैंने यज्ञ का फल पा लिया। ब्रह्मन्! आप मुनियों में श्रेष्ठ हैं। आप ने इतने महर्षियों के साथ मेरे यज्ञ मण्डप में पदार्पण किया, इस से मैं धन्य हो गया। यह मेरे ऊपर आप का बहुत बड़ा अनुग्रह है ।।

१५.
“ब्रह्मषें! मनीषी ऋत्विजों का कहना है कि “मेरी यज्ञ दीक्षा के बारह दिन ही शेष रह गये हैं। अतः कुशिकनन्दन! बारह दिनों के बाद यहाँ भाग ग्रहण करने के लिये आये हुए देवताओं का दर्शन कीजियेगा" ।।

१६.
मुनिवर विश्वामित्र से ऐसा कहकर उस समय प्रसन्नमुख हुए जितेन्द्रिय राजा जनक ने पुनः उनसे हाथजोड़ कर पूछा- ।।

१७ से २१.
“महामुने! आपका कल्याण हो। देवता के समान पराक्रमी और सुन्दर आयुध धारण करने वाले ये दोनों वीर राजकुमार जो हाथी के समान मन्द गति से चलते हैं, सिंह और साँड़ के समान जान पड़ते हैं, प्रफुल्ल कमलदल के समान सुशोभित हैं, तलवार, तरकस और धनुष धारण किये हुए हैं, अपने मनोहर रूप से अश्विनी कुमारों को भी लज्जित कर रहे हैं, जिन्होंने अभी-अभी यौवनावस्था में प्रवेश किया है तथा जो स्वेच्छानुसार देवलोक से उतर कर पृथ्वी पर आये हुए दो देवताओं के समान जान पड़ते हैं, किसके पुत्र हैं? और यहाँ कैसे, किस लिये अथवा किस उद्देश्य से पैदल ही पधारे हैं? जैसे चन्द्रमा और सूर्य आकाश की शोभा बढ़ाते हैं, उसी प्रकार ये अपनी उपस्थिति से इस देश को विभूषित कर रहे हैं। ये दोनों एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते हैं। इनके शरीर की ऊँचाई, संकेत और चेष्टाएँ प्रायः एक-सी हैं। मैं इन दोनों काकपक्षधारी वीरों का परिचय एवम् वृत्तान्त यथार्थ रूप से सुनना चाहता हूँ।” ।।

श्लोक २२ से २५ ।।

२२.
महात्मा जनक का यह प्रश्न सुनकर अमित आत्मबल से सम्पन्न विश्वामित्रजी ने कहा – “राजन्! ये दोनों महाराज दशरथ के पुत्र हैं।” ।।

२३ से २४.
इसके बाद उन्होंने उन दोनोंके सिद्धाश्रम में निवास, राक्षसों के वध, बिना किसी घबराहट के मिथिला तक आगमन, विशाला पुरी के दर्शन, अहल्या के साक्षात्कार तथा महर्षि गौतम के साथ समागम आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। फिर अंत में यह भी बताया कि “ये आपके यहाँ रखे हुए महान् धनुष के सम्बन्ध में कुछ जानने की इच्छा से यहाँ तक आये हैं।” ।।

२५.
महात्मा राजा जनक से ये सब बातें निवेदन करके महातेजस्वी महामुनि विश्वामित्र चुप हो गये। ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में पचासवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।

Sarg 50- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.