49. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 49

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

उनचासवाँ सर्ग – २२ श्लोक ।।

सारांश ।।

पितृ देवताओं द्वारा इन्द्र को भेड़े के अण्डकोष से युक्त करना तथा भगवान् श्रीराम के द्वारा अहल्या का उद्धार एवम् उन दोनों दम्पति के द्वारा इनका सत्कार। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
तदनन्तर इन्द्र अण्डकोष से रहित होकर बहुत डर गये। उनके नेत्रों में त्रास छा गया। वे अग्नि आदि देवताओं, सिद्धों, गन्धर्वों और चारणों से इस प्रकार बोले - ।।

२.
“देवताओ! महात्मा गौतम की तपस्या में विघ्न डालने के लिये मैंने उन्हें क्रोध दिलाया है। ऐसा करके मैंने यह देवताओं का कार्य ही सिद्ध किया है।” ।।

३.
“मुनिने क्रोधपूर्वक भारी शाप देकर मुझे अण्डकोष से रहित कर दिया और अपनी पत्नी का भी परित्याग कर दिया। इससे मेरे द्वारा उनकी तपस्या का अपहरण हुआ है।” ।।

४.
“(यदि मैं उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डालता तो वे देवताओं का राज्य ही छीन लेते। अतः ऐसा करके) मैंने देवताओं का ही कार्य सिद्ध किया है। इसलिये श्रेष्ठ देवताओ! तुम सब लोग, ऋषिसमुदाय और चारणगण मिलकर मुझे अण्डकोष से युक्त करने का प्रयत्न करो।”।।

५.
इन्द्र का यह वचन सुनकर मरुद्गणों सहित अग्नि आदि समस्त देवता कव्यवाहन आदि पितृ देवताओं के पास जाकर बोले - ।।

६.
“पितृगण! यह आपका भेड़ा अण्डकोष से युक्त है और इन्द्र अण्डकोष रहित कर दिये गये हैं। अतः इस भेड़े के दोनों अण्डकोषों को लेकर आप शीघ्र ही इन्द्र को अर्पित कर दें।” ।।

७.
“अण्डकोष से रहित किया हुआ यह भेड़ा इसी स्थान में आपलोगों को परम संतोष प्रदान करेगा। अतः जो मनुष्य आपलोगों की प्रसन्नता के लिये अण्डकोष रहित भेड़ा दान करेंगे, उन्हें आपलोग उस दान का उत्तम एवम् पूर्ण फल प्रदान करेंगे । “।।

८.
अग्नि की यह बात सुनकर पितृ देवताओं ने एकत्र हो भेड़े के अण्डकोषों को उखाड़ कर इन्द्र के शरीर में उचित स्थान पर जोड़ दिये ।।

९.
ककुत्स्थनन्दन श्रीराम ! तभीसे वहाँ आये हुए समस्त पितृ-देवता अण्डकोष रहित भेड़ों को ही उपयोग में लाते हैं और दाताओं को उनके दान जनित फलों के भागी बनाते हैं। ।।

१०.
रघुनन्दन ! उसी समय से महात्मा गौतम के तपस्या जनित प्रभाव से इन्द्र को भेड़ों के अण्डकोष धारण करने पड़े। ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
महातेजस्वी श्रीराम ! अब तुम पुण्यकर्मा महर्षि गौतम के इस आश्रम पर चलो और इन देवरूपिणी महाभागा अहल्या का उद्धार करो। ।।

१२.
विश्वामित्रजी का यह वचन सुनकर लक्ष्मण सहित श्रीराम ने उन महर्षि को आगे करके उस आश्रम में प्रवेश किया। ।।

१३.
वहाँ जाकर उन्होंने देखा – महासौभाग्यशालिनी अहल्या अपनी तपस्या से देदीप्यमान हो रही हैं। इस लोक के मनुष्य तथा सम्पूर्ण देवता और असुर भी वहाँ आकर उन्हें देख नहीं सकते थे। ।।

१४ से १५.
उनका स्वरूप दिव्य था। विधाता ने बड़े प्रयत्न से उनके अंगों का निर्माण किया था। वे मायामयी-सी प्रतीत होती थीं। धूम से घिरी हुई प्रज्वलित अग्निशिखा- सी जान पड़ती थीं। ओले और बादलों से ढकी हुई पूर्ण चन्द्रमा की प्रभा-सी दिखायी देती थीं तथा जल के भीतर उद्भासित होनेवाली सूर्य की दुर्धर्ष प्रभा के समान दृष्टिगोचर होती थीं। ।।

१६.
गौतम के शापवश श्रीरामचन्द्रजी का दर्शन होने से पहले तीनों लोकों के किसी भी प्राणी के लिये उनका दर्शन होना कठिन था। श्रीराम का दर्शन मिल जाने से जब उनके शाप का अन्त हो गया, तब वे उन सब को दिखायी देने लगीं। ॥

१७ से १८.
उस समय श्रीराम और लक्ष्मण ने बड़ी प्रसन्नता के साथ अहल्या के दोनों चरणों का स्पर्श किया। महर्षि गौतम के वचनों का स्मरण करके अहल्या ने बड़ी सावधानी के साथ उन दोनों भाइयों को आदरणीय अतिथि के रूप में अपनाया और पाद्य, अर्घ्य आदि अर्पित करके उनका आतिथ्य सत्कार किया। श्रीरामचन्द्रजी ने शास्त्रीय विधि के अनुसार अहल्या का वह आतिथ्य ग्रहण किया। ।।

१९.
उस समय देवताओं की दुन्दुभि बज उठी। साथ ही आकाश से फूलों की बड़ी भारी वर्षा होने लगी। गन्धर्वों और अप्सराओं द्वारा महान् उत्सव मनाया जाने लगा। ।।

२०.
महर्षि गौतम के अधीन रहने वाली अहल्या अपनी तप शक्ति से विशुद्ध स्वरूप को प्राप्त हुई – यह देख सम्पूर्ण देवता उन्हें साधुवाद देते हुए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। ।।

श्लोक २१ से २२ ।।

२१.
महातेजस्वी, महातपस्वी गौतम भी अहल्या को अपने साथ पाकर सुखी हो गये। उन्होंने श्रीराम की विधिवत् पूजा करके तपस्या आरम्भ की। ।।

२२.
महामुनि गौतम की ओरसे विधिपूर्वक उत्तम पूजा – आदर-सत्कार पा कर श्रीराम भी मुनिवर विश्वामित्रजी के साथ मिथिला पुरी को चले गये। ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में उनचासवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ।।

Sarg 49- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.