08. Valmiki Ramayana - Yudhh Kaand - Sarg 08

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – युद्ध काण्ड ।।

आठवाँ सर्ग – २४ श्लोक ।।

सारांश ।।

प्रहस्त, दुर्मुख, वज्रदंष्ट्र, निकुम्भ और वज्रहनुका के द्वारा रावण के सामने शत्रु सेना को मार गिराने का उत्साह दिखाना ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
इस के बाद नील मेघ के समान श्यामवर्ण वाले शूर सेना पति प्रहस्त नामक राक्षस ने हाथ जोड़ कर कहा – ॥

२.
“महाराज! हमलोग देवता , दानव , गन्धर्व , पिशाच , पक्षी और सर्प सभी को पराजित कर सकते हैं ; फिर उन दो मनुष्यों को रणभूमि में हराना कौन सी बड़ी बात है?” ।।

३.
“पहले हमलोग असावधान थे। हमारे मन में शत्रुओं की ओर से कोई खटका नहीं था। इसी लिये हम निश्चिन्त बैठे थे। यही कारण है कि हनुमान् हमें धोखा दे गया। नहीं तो मेरे जीते- जी वह वानर यहाँ से जीता - जागता नहीं जा सकता था” ।।

४.
“यदि आप की आज्ञा हो तो पर्वत , वन और काननों सहित समुद्र तक की सारी भूमि को मैं वानरों से सूनी कर दूँ” ।।

५.
“राक्षसराज! मैं वानरमात्र से आप की रक्षा करूँगा , अतः अपने द्वारा किये गये सीता हरण रूपी अपराध के कारण कोइ दुख आप पर नहीं आने पायेगा” ।।

६.
तत्पश्चात्, दुर्मुख नामक राक्षस ने अत्यन्त कुपित हो कर कहा – “यह क्षमा करने योग्य अपराध नहीं है , क्यों कि इस के द्वारा हम सब लोगों का तिरस्कार हुआ है” ।।

७.
“वानर के द्वारा हमलोगों पर जो आक्रमण हुआ है , यह समस्त लङ्कापुरी का , महाराज के अन्तःपुर का और श्रीमान् राक्षसराज रावण का भी भारी पराभव है” ।।

८.
“मैं अभी इसी मुहूर्त में अकेला ही जा कर सारे वानरों को मार भगाऊँ गा। भले ही वे भयंकर समुद्र में , आकाश में अथवा रसातल में ही क्यों न घुस गये हों” ।।

९.
इतने ही में महाबली वज्रदंष्ट्र अत्यन्त क्रोध से भर कर रक्त , मांस से सने हुए भयानक परिघ को हाथ में लिये हुए बोला – ।।

१०.
“दुर्जय वीर राम , सुग्रीव और लक्ष्मण के रहते हुए हमें उस बेचारे तपस्वी हनुमान् से क्या काम है?” ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
“आज मैं अकेला ही वानर-सेना में तहलका मचा दूँगा और इस परिघ से सुग्रीव तथा लक्ष्मण सहित राम का भी काम तमाम कर के लौट आऊँ गा” ।।

१२.
“राजन्! यदि आप की इच्छा हो तो आप यह मेरी दूसरी बात सुनें। उपायकुशल पुरुष ही यदि आलस्य छोड़ कर प्रयत्न करे तो वह शत्रुओं पर विजय पा सकता है” ।।

१३ से १५.
“अतः राक्षसराज! मेरी दूसरी राय यह है कि इच्छानुसार रूप धारण करनेवाले, अत्यन्त भयानक तथा भयंकर दृष्टि वाले सहस्त्रों शूरवीर राक्षस एक निश्चित विचार कर के मनुष्य का रूप धारण कर श्रीराम के पास जायँ और सब लोग बिना किसी घबराहट के उन रघुवंशशिरोमणि से कहें कि हम आप के सैनिक हैं। हमें आप के छोटे भाई भरत ने भेजा है। इतना सुनते ही वे वानर- सेना को उठा कर तुरंत लङ्का पर आक्रमण करने के लिये वहाँ से चल देंगे” ।।

१६.
“तत्पश्चात् हमलोग यहाँ से शूल, शक्ति, गदा, धनुष, बाण और खड्ग धारण किये शीघ्र ही मार्ग में उन के पास जा पहुँचें” ।।

१७.
“फिर आकाश में अनेक यूथ बना कर खड़े हो जायँ और पत्थरों तथा शस्त्र-समूहों की बड़ी भारी वर्षा कर के उस वानर-सेना को यमलोक पहुँचा दें” ।।

१८.
“यदि इस प्रकार हमारी बातें सुन कर वे दोनों भाई श्रीराम और लक्ष्मण सेना को कूच करने की आज्ञा दे देंगे और वहाँ से चल देंगे तो उन्हें हमारी अनीति का शिकार होना पड़ेगा; उन्हें हमारे छलपूर्ण प्रहार से पीड़ित हो कर अपने प्राणों का परित्याग करना पड़ेगा” ।।

१९.
तदनन्तर, पराक्रमी वीर कुम्भकर्णकुमार निकुम्भ ने अत्यन्त कुपित हो कर समस्त लोकों को रुलाने वाले रावण से कहा- ।।

२०.
“आप सब लोग यहाँ महाराज के साथ चुपचाप बैठे रहें। मैं अकेला ही राम, लक्ष्मण, सुग्रीव, हनुमान् तथा अन्य सब वानरों को भी यहाँ मौत के घाट उतार दूँगा” ।।

श्लोक २१ से २४ ।।

२१.
तब पर्वत के समान विशालकाय वज्रहनु नामक राक्षस कुपित हो जीभ से अपने जबड़े को चाटता हुआ बोला- ।।

२२.
“आप सब लोग निश्चिन्त हो कर इच्छानुसार अपना-अपना काम करें। मैं अकेला ही सारी वानर-सेना को खा जाऊँगा” ।।

२३ से २४.
“आपलोग स्वस्थ रह कर क्रीड़ा करें और निश्चिन्त हो वारुणी मदिरा को पियें। मैं अकेला ही सुग्रीव, लक्ष्मण, अंगद, हनुमान और अन्य सब वानरों का भी यहाँ वध कर डालूँगा” ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के युद्धकाण्ड में आठवाँ सर्ग पूरा हुआ ।।

Sarg 08 - Yuddh Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.