09. Valmiki Ramayana - Yudhh Kaand - Sarg 09

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – युद्ध काण्ड ।।

नवाँ सर्ग – २३ श्लोक ।।

सारांश ।।

विभीषण का रावण से श्रीराम की अजेयता बता कर सीता को लौटा देने के लिये अनुरोध करना ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१ से ५.
तत्पश्चात्, निकुम्भ, रभस , महाबली सूर्यशत्रु , सुप्तघ्न , यज्ञकोप , महापार्श्व , महोदर , दुर्जय अग्निकेतु , राक्षस रश्मिकेतु , महातेजस्वी बलवान् रावणकुमार इन्द्रजीत् , प्रहस्त , विरूपाक्ष , महाबली वज्रदंष्ट्र , धूम्राक्ष , अतिकाय और निशाचर दुर्मुख – ये सब राक्षस अत्यन्त कुपित हो हाथों में परिघ , पट्टिश , शूल , प्रास , शक्ति , फरसे , धनुष , बाण तथा पैनीधार वाले बड़े - बड़े खड्ग लिये उछल कर रावण के सामने आये और अपने तेज से उद्दीप्त - से हो कर वे सब - के - सब उस से बोले– ।।

६.
“हमलोग आज ही राम, सुग्रीव, लक्ष्मण और उस कायर हनुमान् को भी मार डालें गे, जिस ने लङ्कापुरी जलायी है” ।।

७.
हाथों में अस्त्र - शस्त्र लिये खड़े हुए उन सब राक्षसों को जाने के लिये उद्यत देख विभीषण ने रोका और पुनः उन्हें बिठा कर दोनों हाथ जोड़ रावण से कहा— ।।

८.
“तात! जो मनोरथ साम , दान और भेद - इन तीन उपायों से प्राप्त न हो सके , उसी की प्राप्ति के लिये नीति शास्त्र के ज्ञाता मनीषी विद्वानों ने पराक्रम करने के योग्य अवसर बताये हैं” ।।

९.
“तात! जो शत्रु असावधान हों , जिन पर दूसरे दूसरे शत्रुओं ने आक्रमण किया हो तथा जो महारोग आदि से ग्रस्त होने के कारण दैव से मारे गये हों , उन्हीं पर भलीभाँति परीक्षा कर के विधि पूर्वक किये गये पराक्रम सफल होते हैं” ।।

१०.
“श्रीरामचन्द्रजी बे खबर नहीं हैं। वे विजय की इच्छा से आ रहे हैं और उन के साथ सेना भी है। उन्हों ने क्रोध को सर्वथा जीत लिया है। अतः वे सर्वथा दुर्जय हैं। ऐसे अजेय वीर को तुमलोग परास्त करना चाहते हो” ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११ से १२.
“निशाचरो! नदों और नदियों के स्वामी भयंकर महासागर को जो एक ही छलांग में लांघ कर यहाँ तक आ पहुँचे थे , उन हनुमान्जी की गति को इस संसार में कौन जान सकता है, अथवा कौन उस का अनुमान लगा सकता है? शत्रुओं के पास असंख्य सेनाएँ हैं , उन में असीम बल और पराक्रम है; इस बात को तुमलोग अच्छी तरह जान लो। दूसरों की शक्ति को भुला कर किसी तरह भी सहसा उन की अवहेलना नहीं करनी चाहिये” ।।

१३.
“श्रीरामचन्द्रजी ने पहले राक्षसराज रावण का कौन-सा अपराध किया था, जिस से उन यशस्वी महात्मा की पत्नी को ये जनस्थान से हर लाये?” ।।

१४.
“यदि कहें कि उन्हों ने खर को मारा था तो यह ठीक नहीं है; क्यों कि खर अत्याचारी था। उस ने स्वयम् ही उन्हें मार डालने के लिये उन पर आक्रमण किया था। इस लिये श्रीराम ने रणभूमि में उस का वध किया; क्यों कि प्रत्येक प्राणी को यथाशक्ति अपने प्राणों की रक्षा अवश्य करनी चाहिये” ।।

१५.
“यदि इसी कारण से सीता को हर कर लाया गया हो तो उन्हें जल्दी ही लौटा देना चाहिये; अन्यथा हमलोगों पर महान् भय आ सकता है। जिस कर्म का फल केवल कलह है, उसे करने से क्या लाभ?” ।।

१६.
“श्रीराम बड़े धर्मात्मा और पराक्रमी हैं। उनके साथ व्यर्थ वैर करना उचित नहीं है। मिथिलेशकुमारी सीता को उन के पास लौटा देना चाहिये” ।।

१७.
“जब तक हाथी, घोड़े और अनेकों रत्नों से भरी हुइ लंकापुरी का श्रीराम अपने बाणों द्वारा विध्वंस नहीं कर डालते, तब तक ही मैथिली को उन्हें लौटा दिया जाय” ।।

१८.
“जब तक अत्यन्त भयंकर, विशाल और दुर्जय वानर-वाहिनी हमारी लंका को पददलित नहीं कर देती, तभी तक सीता को वापस कर दिया जाय” ।।

१९.
“यदि श्रीराम की प्राणवल्लभा सीता को हमलोग स्वयम् ही नहीं लौटा देते हैं तो यह लंकापुरी नष्ट हो जायगी और समस्त शूरवीर राक्षस मार डाले जायँगे” ।।

२०.
“आप मेरे बड़े भाई हैं। अतः मैं आप को विनयपूर्वक प्रसन्न करना चाहता हूँ। आप मेरी बात मान लें। मैं आप के हित के लिये सच्ची बात कहता हूँ-आप श्रीरामचन्द्रजी को उन की सीता वापस कर दें” ।।

श्लोक २१ से २३ ।।

२१.
“राजकुमार श्रीराम जब तक आप के वध के लिये शरत्काल के सूर्य की किरणों के समान तेजस्वी, उज्ज्वल अग्रभाग एवम् पंखों से सुशोभित, सुदृढ़ तथा अमोघ बाणों की वर्षा करें, उस के पहले ही आप उन दशरथनन्दन की सेवा में मिथिलेशकुमारी सीता को सौंप दें” ।।

२२.
“भैया! आप क्रोध को त्याग दें ; क्यों कि वह सुख और धर्म का नाश करने वाला है । धर्म का सेवन कीजिये ; क्योंकि वह सुख और सुयशको बढ़ानेवाला है। हम पर प्रसन्न होइये , जिस से हम पुत्र और बन्धु – बान्धवों सहित जीवित रह सकें। इसी दृष्टि से मेरी प्रार्थना है कि आप दशरथनन्दन श्रीराम के हाथ में मिथिलेशकुमारी सीता को लौटा दें” ।।

२३.
विभीषण की यह बात सुन कर राक्षसराज रावण उन सब सभासदों को विदा कर के अपने महल में चला गया ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के युद्धकाण्ड में नवाँ सर्ग पूरा हुआ ।।

Sarg 09 - Yuddh Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.