18. Valmiki Ramayana - Sundar Kaand - Sarg 18

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – सुन्दरकाण्ड ।।

अठारहवाँ सर्ग – ३२ श्लोक ।।

सारांश ।।

अपनी स्त्रियों से घिरे हुए रावण का अशोक वाटिका में आगमन और हनुमान्जी का उसे देखना ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
इस प्रकार फूले हुए वृक्षों से सुशोभित उस वन की शोभा देखते और विदेहनन्दिनी का अनुसंधान करते हुए हनुमान्जी की वह सारी रात प्रायः बीत चली। केवल एक पहर रात बाकी रही थी ।।

२.
रात के उस पिछले पहर में छहों अंगों सहित सम्पूर्ण वेदों के विद्वान् तथा श्रेष्ठ यज्ञों द्वारा यजन करने वाले ब्रह्म राक्षसों के घर में वेदपाठ की ध्वनि होने लगी, जिसे हनुमान्जी ने सुना ।।

३.
तदनन्तर मंगल वाद्यों तथा श्रवण सुखद शब्दों द्वारा महाबली महाबाहु दशमुख रावण को जगाया गया ।।

४.
जागने पर महान् भाग्यशाली एवम् प्रतापी राक्षस राज रावण ने सब से पहले विदेहनन्दिनी सीता का चिन्तन किया। उस समय नींद के कारण उसके पुष्पहार और वस्त्र अपने स्थान से खिसक गये थे ।।

५.
वह मदमत्त निशाचर काम से प्रेरित हो सीता के प्रति अत्यन्त आसक्त हो गया था। अतः, उस कामभाव को अपने भीतर छिपाये रखने में असमर्थ हो गया ।।

६ से ९.
उसने सब प्रकार के आभूषण धारण किये और परम उत्तम शोभा से सम्पन्न हो उस अशोक वाटिका में ही प्रवेश किया, जो सब प्रकार के फूल और फल देने वाले भाँति-भाँति के वृक्षों से सुशोभित थी। नाना प्रकार के पुष्प उस की शोभा बढ़ा रहे थे। बहुत-से सरोवरों द्वारा वह वाटिका घिरी हुई थी। सदा मतवाले रहने वाले परम अद्भुत पक्षियों के कारण उस की विचित्र शोभा होती थी। कितने ही नयनाभिराम क्रीडा मृगों से भरी हुई वह वाटिका भाँति-भाँति के मृग समूहों से व्याप्त थी। बहुत से गिरे हुए फलों के कारण वहाँ की भूमि ढक गयी थी। पुष्प वाटिका में मणि और सुवर्ण के फाटक लगे थे और उस के भीतर पंक्तिबद्ध वृक्ष बहुत दूर तक फैले हुए थे । वहाँ की गलियों को देखता हुआ रावण उस वाटिका में घुसा ।।

१०.
जैसे देवताओं और गन्धर्वों की स्त्रियाँ देवराज इन्द्र के पीछे चलती हैं, उसी प्रकार अशोक वन में जाते हुए पुलस्त्यनन्दन रावण के पीछे-पीछे लग भग एक सौ सुन्दरियाँ गयीं ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
उन युवतियों में से किन्हों ने सुवर्णमय दीपक ले रखे थे। किन्हीं के हाथों में चँवर थे तो किन्हीं के हाथों में ताड़ के पंखे थे ।।

१२.
कुछ सुन्दरियाँ सोने की झारियों में जल लिये आगे-आगे चल रही थीं और कई दूसरी स्त्रियाँ गोलाकार बृसी नामक आसन लिये पीछे-पीछे चल रही थीं ।।

१३.
कोइ चतुर- चालाक युवती दाहिने हाथ में पेय रस से भरी हुई रत्न निर्मित चमचमाती कलशी लिये हुए थी ।।

१४.
कोई दूसरी स्त्री सोने के डंडे से युक्त और पूर्ण चन्द्रमा तथा राजहंस के समान श्वेत छत्र ले कर रावण के पीछे-पीछे चल रही थी ।।

१५.
जैसे बादलों के साथ-साथ बिजलियाँ चलती हैं, उसी प्रकार रावण की सुन्दर स्त्रियाँ अपने वीर पति के पीछे-पीछे चल रही थीं। उस समय नींद के नशे में उन की आँखें झपी जाती थीं ।।

१६.
उनके हार और बाजूबंद अपने स्थान से खिसक गये थे। अंगराग मिट गये थे। चोटियाँ खुल गयी थीं और मुख पर पसीने की बूंदें छा रही थीं ।।

१७.
वे सुमुखी स्त्रियाँ अवशेष मद और निद्रा से झूमती हुई-सी चल रही थीं। विभिन्न अंगों में धारण किये गये पुष्प पसीने से भीग गये थे और पुष्पमालाओं से अलंकृत केश कुछ-कुछ हिल रहे थे ।।

१८.
जिनकी आँखें मदमत्त बना देने वाली थीं, वे राक्षसराज की प्यारी पत्नियाँ अशोक वन में साथ बड़े आदर से और अनुरागपूर्वक चल रही थीं ।।

१९.
उन सब का पति महाबली मन्दबुद्धि रावण काम के अधीन हो रहा था। वह सीता में मन लगाये मन्द गति से आगे बढ़ता हुआ अद्भुत शोभा पा रहा था ।।

२०.
उस समय वायुनन्दन कपिवर हनुमान्जी ने उन परम सुन्दर रावण की पत्नियों की करधनी का कलनाद और नूपुरों की झनकार सुनी ।।

श्लोक २१ से ३० ।।

२१.
साथ ही, अनुपम कर्म करने वाले तथा अचिन्त्य बल – पौरुष से सम्पन्न रावण को भी कपिवर हनुमांजी न्ने देखा, जो अशोक वाटिका के द्वार तक आ पहुँचा था ।।

२२.
उसके आगे-आगे सुगन्धित तेल से भीगी हुई और स्त्रियों द्वारा हाथों में धारण की हुई बहुत-सी मशालें जल रही थीं, जिनके द्वारा वह सब ओर से प्रकाशित हो रहा था ।।

२३.
वह काम, दर्प और मद से युक्त था। उस की आँखें टेढ़ी, लाल और बड़ी-बड़ी थीं। वह धनुष रहित साक्षात् कामदेव के समान जान पड़ता था ।।

२४.
उसका वस्त्र मधे हुए दूध के फेन की भाँति श्वेत, निर्मल और उत्तम था। उसमें मोती के दाने और फूल टँके हुए थे। वह वस्त्र उसके बाजूबंद में उलझ गया था और रावण उसे खींच कर सुलझा रहा था ।।

२५.
अशोक-वृक्ष के पत्तों और डालियों में छिपे हुए हनुमान्जी सैकड़ों पत्रों तथा पुष्पों से ढक गये थे। उसी अवस्था में उन्होंने निकट आये हुए रावण को पहचानने का प्रयत्न किया ।।

२६.
उसकी ओर देखते समय कपिश्रेष्ठ हनुमांजी ने रावण की सुन्दर स्त्रियों को भी लक्ष्य किया, जो रूप और यौवन से सम्पन्न थीं ।।

२७.
उन सुन्दर रूपवाली युवतियों से घिरे हुए महायशस्वी राजा रावण ने उस प्रमदावन में प्रवेश किया, जहाँ अनेक प्रकार के पशु-पक्षी अपनी-अपनी बोली बोल रहे थे ।।

२८.
वह मतवाला दिखायी देता था। उसके आभूषण विचित्र थे। उसके कान ऐसे प्रतीत होते थे, मानो वहाँ खूँटे गाड़े गये हैं। इस प्रकार वह विश्रवा मुनि का पुत्र महाबली राक्षसराज रावण हनुमानजी के दृष्टिपथ में आया ।।

२९ से ३०.
तारों से घिरे हुए चन्द्रमा की भाँति वह परम सुन्दर युवतियों से घिरा हुआ था। महातेजस्वी महाकपि हनुमानजी ने उस तेजस्वी राक्षस को देखा और देख कर यह निश्चय किया कि यही महाबाहु रावण है। पहले यही नगर में उत्तम महल के भीतर सोया हुआ था। ऐसा सोच कर वे वानरवीर महातेजस्वी पवनकुमार हनुमान्जी जिस डाली पर बैठे थे, वहाँ से कुछ नीचे उतर आये (क्योंकि वे निकट से रावण की सारी चेष्टाएँ देखना चाहते थे) ।।

श्लोक ३१ से ३२ ।।

३१.
यद्यपि मतिमान् हनुमान्जी भी बड़े उग्र तेजस्वी थे, तथापि, रावण के तेज से तिरस्कृत- से हो कर सघन पत्तों में घुस कर छिप गये ।।

३२.
उधर, रावण काले केश, कजरारे नेत्र, सुन्दर कटिभाग और परस्पर सटे हुए स्तन-वाली सुन्दरी सीताजी को देखने के लिये उनके पास गया ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के सुन्दरकाण्ड में अठारहवाँ सर्ग पूरा हुआ ।।
१८ ।।

Sarg 18 - Sundar Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.