19. Valmiki Ramayana - Sundar Kaand - Sarg 19

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – सुन्दरकाण्ड ।।

उन्नीसवाँ सर्ग – २२ श्लोक ।।

सारांश ।।

रावण को देख कर दुख, भय और चिन्ता में डूबी हुई सीताजी की अवस्था का वर्णन ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१ से २.
उस समय अनिन्दिता सुन्दरी राजकुमारी सीताजी ने जब उत्तमोत्तम आभूषणों से विभूषित तथा रूप-यौवन से सम्पन्न राक्षसराज रावण को आते देखा, तब वे प्रचण्ड हवा में हिलने वाली कदली के समान भय के मारे थर-थर काँपने लगीं।।

३.
सुन्दर कान्तिवाली विशाल लोचना जानकीजी ने अपनी जांघों से पेट और दोनों भुजाओं से स्तन छिपा लिये तथा वहाँ बैठी बैठी वे रोने लगीं ।।

४ से ५.
राक्षसियों के पहरे में रहती हुई विदेह राजकुमारी सीताजी अत्यन्त दीन और दुखी हो रही थीं। वे समुद्र में जीर्ण-शीर्ण होकर डूबी हुई नौका के समान दुख के सागर में निमग्नरु थीं। उस अवस्था में दशमुख रावण ने उनकी ओर देखा। वे बिना बिछौने के खुली जमीन पर बैठी थीं और कटकर पृथ्वी पर गिरी हुई वृक्ष की शाखा के समान जान पड़ती थीं। उनके द्वारा बड़े कठोर व्रत का पालन किया जा रहा था ।।

६.
उनके अंगों में अंग राग की जगह मैल जमी हुई थी। वे आभूषण धारण तथा श्रृंगार करने योग्य होने पर भी उन सब से वञ्चित थीं और कीचड़ में सनी हुई कमल नाल की भाँति शोभा पा रही थीं तथा नहीं भी पाती थीं (कमलनाल जैसे सुकुमारता के कारण शोभा पाती है और कीचड़ में सनी रहने के कारण शोभा नहीं पाती, वैसे ही वे अपने सहज सौन्दर्य से सुशोभित थीं, किंतु मलिनता के कारण शोभा नहीं देती थीं। ) ।।

७.
संकल्पों के घोड़ों से जुते हुए मनोमय रथ पर चढ़ कर आत्म ज्ञानी राजसिंह भगवान् श्रीरामजी के पास जाती हुइ-सी प्रतीत होती थीं ।।

८.
उनका शरीर सूखता जा रहा था। वे अकेली बैठ कर रोती तथा श्रीरामचन्द्रजी के ध्यान एवम् उन के वियोग के शोक में डूबी रहती थीं। उन्हें अपने दुख का अन्त नहीं दिखायी देता था। वे श्रीरामचन्द्रजी में अनुराग रखने वाली तथा उन की रमणीय भार्या थीं ।।

९.
जैसे नागराज की वधू (नागिन ) मणि – मन्त्रादि से अभिभूत हो छट पटाने लगती है, उसी तरह सीताजी भी पति वियोग में तड़प रही थीं तथा धूम के समान वर्ण वाले केतु ग्रह से ग्रस्त हुई रोहिणी के समान संतप्त हो रही थीं ।।

१०.
यद्यपि सदाचारी और सुशील कुलमें उनका जन्म हुआ था। फिर धार्मिक तथा उत्तम आचार-विचार वाले कुल में वे ब्याही गयी थीं- विवाह संस्कार से सम्पन्न हुई थीं, तथापि दूषित कुल में उत्पन्न हुइ नारी के समान मलिन दिखायी देती थीं ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११ से १४.
वे क्षीण हुइ विशाल कीर्ति, तिरस्कृत हुई श्रद्धा, सर्वथा ह्रास को प्राप्त हुई बुद्धि, टूटी हुई आशा, नष्ट हुए भविष्य, उल्लङ्घित हुई राजआज्ञा, उत्पात काल में दहकती हुइ दिशा, नष्ट हुई देवपूजा, चन्द्र ग्रहण से मलिन हुई पूर्णमासी की रात, तुषारपात से जीर्ण-शीर्ण हुई कमलिनी, जिस का शूरवीर सेना पति मारा गया हो - ऐसी सेना, अन्धकार से नष्ट हुई प्रभा, सूखी हुइ सरिता, अपवित्र प्राणियों के स्पर्श से अशुद्ध हुई वेदी और बुझी हुइ अग्नि शिखा के समान प्रतीत होती थीं ।।

१५.
जिसे हाथी ने अपनी सूँड़ से हुँडेर डाला हो; अतएव जिस के पत्ते और कमल उखड़ गये हों तथा जल पक्षी भयसे थर्रा उठे हों, उस मथित एवम् मलिन हुई पुष्करिणी के समान सीता श्रीहीन दिखायी देती थीं ।।

१६.
पति विरह-शोक से उनका हृदय बड़ा व्याकुल था। जिसका जल नहरों के द्वारा इधर- उधर निकाल दिया गया हो, ऐसी नदी के समान वे सूख गयी थीं तथा उत्तम उबटन आदि के न लगने से कृष्णपक्ष की रात्रि के समान मलिन हो रही थीं ।।

१७.
उनके अंग बड़े सुकुमार और सुन्दर थे। वे रत्न जटित राजमहल में रहने के योग्य थीं; परंतु गर्मी से तपी और तुरंत तोड़ कर फेंकी हुई कमलिनी के समान दयनीय दशा को पहुँच गयी थीं ।।

१८.
जिसे यूथपति से अलग करके पकड़ कर खंभे में बांध दिया गया हो, उस हथिनी के समान वे अत्यन्त दुख से आतुर हो कर लम्बी साँस खींच रही थीं ।।

१९.
बिना प्रयत्न ही बंधी हुई एक ही लम्बी वेणी से सीता की वैसी ही शोभा हो रही थी, जैसे वर्षा ऋतु बीत जाने पर सुदूर तक फैली हुई हरी-भरी वनश्रेणी से पृथ्वी सुशोभित होती है ।।

२०.
वे उपवास, शोक, चिन्ता और भय से अत्यन्त क्षीण, कृशकाय और दीन हो गयी थीं। उनका आहार बहुत कम हो गया था तथा एक मात्र तप ही उनका धन था ।।

श्लोक २१ से २२ ।।

२१.
वे दुख से आतुर हो अपने कुल देवता से हाथ जोड़ कर मन ही मन यह प्रार्थना-सी कर रही थीं कि श्रीरामचन्द्रजी के हाथ से दशमुख रावण की पराजय हो ।।

२२.
सुन्दर बरौनियों से युक्त, लाल, श्वेत एवं विशाल नेत्रों वाली सती-साध्वी मिथिलेशकुमारी सीताजी श्रीरामचन्द्रजी में अत्यन्त अनुरक्त थीं और इधर-उधर देखती हुई रो रही थीं। इस अवस्था में उन्हें देख कर राक्षसराज रावण अपने ही वध के लिये उन को लुभाने की चेष्टा करने लगा ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के सुन्दरकाण्ड में उन्नीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ।। १९ ।।

Sarg 19 - Sundar Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.