63. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 63
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।
तिरसठवाँ सर्ग – २६ श्लोक ।।
सारांश ।।
विश्वामित्र द्वारा अपने तप से ऋषि एवम् महर्षि पद की प्राप्ति, मेनका द्वारा उनका तपोभंग तथा ब्रह्मर्षि पद की प्राप्ति के लिये उनकी घोर तपस्या। ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
[शतानन्दजी कहते हैं] — श्रीराम! जब एक हजार वर्ष पूरे हो गये, तब उन्होंने व्रतकी समाप्ति का स्नान किया। स्नान कर लेने पर महामुनि विश्वामित्र के पास सम्पूर्ण देवता उन्हें तपस्या का फल देने की इच्छा से आये। ।।
२.
उस समय महातेजस्वी ब्रह्माजी ने मधुर वाणी में कहा, “मुने! तुम्हारा कल्याण हो। अब तुम अपने द्वारा उपार्जित शुभ कर्मों के प्रभाव से ऋषि हो गये हो।” ।।
३.
उनसे ऐसा कहकर देवेश्वर ब्रह्माजी पुनः स्वर्ग को चले गये। इधर महातेजस्वी विश्वामित्र पुनः बड़ी भारी तपस्या में लग गये। ।।
४.
नरश्रेष्ठ! तदनन्तर बहुत समय व्यतीत होने पर परम सुन्दरी अप्सरा मेनका पुष्कर में आयी और वहाँ स्नान की तैयारी करने लगी। ।।
५.
महातेजस्वी कुशिकनन्दन विश्वामित्र ने वहाँ उस मेनका को देखा। उसके रूप और लावण्य की कहीं कोई तुलना नहीं थी। जैसे बादल में बिजली चमकती हो, उसी प्रकार वह पुष्कर के जल में शोभा पा रही थी। ।।
६.
उसे देखकर विश्वामित्र मुनि काम के अधीन हो गये और उस से इस प्रकार बोले- “अप्सरा! तेरा स्वागत है, तू मेरे इस आश्रम में निवास करो।” ।।
७.
“तेरा भला हो। मैं काम से मोहित हो रहा हूँ। मुझपर कृपा करो।। “उनके ऐसा कहने पर सुन्दर कटिप्रदेश वाली मेनका वहाँ निवास करने लगी। ।।
८.
इस प्रकार तपस्या का बहुत बड़ा विघ्न विश्वामित्रजी के पास स्वयम् उपस्थित हो गया। रघुनन्दन! मेनका को विश्वामित्रजी के उस सौम्य आश्रम पर रहते हुए दस वर्ष बड़े सुख से बीते। ।।
९.
इतना समय बीत जानेपर महामुनि विश्वामित्र लज्जित से हो गये। चिन्ता और शोक में डूब गये। ।।
१०.
रघुनन्दन! मुनि के मन में रोष पूर्वक यह विचार उत्पन्न हुआ कि, “यह सब देवताओं की करतूत है। उन्होंने ही हमारी तपस्या का अपहरण करने के लिये यह महान् प्रयास किया है।” ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११.
“मैं काम जनित मोह से ऐसा आक्रान्त हो गया कि मेरे दस वर्ष एक दिनरात के समान बीत गये। यह मेरी तपस्या में बहुत बड़ा विघ्न उपस्थित हो गया।” ।।
१२.
ऐसा विचार कर मुनिवर विश्वामित्र लम्बी साँस खींचते हुए पश्चात्ताप से दुखित हो गये। ।।
१३.
उस समय मेनका अप्सरा भयभीत हो थर-थर काँपती हुइ हाथजोड़ कर उनके सामने खड़ी हो गयी। उसकी ओर देखकर कुशिकनन्दन विश्वामित्र ने मधुर वचनों द्वारा उसे विदा कर दिया और स्वयम् वे उत्तर पर्वत (हिमवान्) पर चले गये ।।
१४.
वहाँ उन महायशस्वी मुनि ने निश्चयात्मक बुद्धि का आश्रय ले कामदेव को जीतने के लिये कौशिकी-तट पर जाकर दुर्जय तपस्या आरम्भ की ।।
१५.
श्रीराम ! वहाँ उत्तर पर्वत पर एक हजार वर्षों तक घोर तपस्या में लगे हुए विश्वामित्र से देवताओं को बड़ा भय हुआ। ।।
१६.
सब देवता और ऋषि परस्पर मिलकर विचार करने लगे- “ये कुशिकनन्दन विश्वामित्र महर्षि की पदवी प्राप्त करें, यही इनके लिये उत्तम बात होगी।” ।।
१७ से १८.
देवताओं की बात सुनकर सर्वलोकपितामह ब्रह्माजी तपोधन विश्वामित्र के पास जा मधुर वाणी में बोले— “महर्षे! तुम्हारा स्वागत है। वत्स कौशिक! मैं तुम्हारी उग्र तपस्या से बहुत संतुष्ट हूँ और तुम्हें महत्ता एवम् ऋषियों में श्रेष्ठता प्रदान करता हूँ।” ।।
१९ से २०.
ब्रह्माजी का यह वचन सुनकर तपोधन विश्वामित्र हाथजोड़ प्रणाम करके उनसे बोले — ”भगवन्! यदि अपने द्वारा उपार्जित शुभ कर्मों के फल से मुझे आप ब्रह्मर्षि का अनुपम पद प्रदान कर सकें तो मैं अपने को जितेन्द्रिय समझुंगा।” ।।
श्लोक २१ से २६ ।।
२१.
तब ब्रह्माजी ने उनसे कहा – मुनिश्रेष्ठ! अभी तुम जितेन्द्रिय नहीं हुए हो। इस के लिये प्रयत्न करो।” ऐसा कहकर वे स्वर्गलोक को चले गये ।।
२२.
देवताओं के चले जाने पर महामुनि विश्वामित्र ने पुनः घोर तपस्या आरम्भ की। वे दोनों भुजाएँ ऊपर उठाये बिना किसी आधार के खड़े होकर केवल वायु पी कर रहते हुए तपमें संलग्न हो गये। ।।
२३ से २४.
गर्मी के दिनों में पञ्चाग्नि का सेवन करते, वर्षाकाल में खुले आकाश के नीचे रहते और जाड़े के समय रात-दिन पानी में खड़े रहते थे। इस प्रकार उन तपोधन ने एक हजार वर्षों तक घोर तपस्या की। ।।
२५.
महामुनि विश्वामित्र के इस प्रकार तपस्या करते समय देवताओं और इन्द्र के मन में बड़ा भारी संताप हुआ। ॥
२६.
समस्त मरुद्गणों सहित इन्द्र ने उस समय रम्भा अप्सरा से ऐसी बात कही, जो अपने लिये हितकर और विश्वामित्र के लिये अहितकर थी। ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में तिरसठवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।
Sarg 63- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
