62. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 62
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।
बासठवाँ सर्ग – २८ श्लोक ।।
सारांश ।।
विश्वामित्र द्वारा शुनःशेप की रक्षा का सफल प्रयत्न और तपस्या। ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
[शतानन्दजी बोले -] “नरश्रेष्ठ रघुनन्दन! महायशस्वी राजा अम्बरीष शुनःशेप को साथ लेकर दोपहर के समय पुष्कर तीर्थ में आये और वहाँ विश्राम करने लगे।” ।।
२ से ३.
“श्रीराम! जब वे विश्राम करने लगे, उस समय महायशस्वी शुनःशेप ज्येष्ठ पुष्कर में आकर ऋषियों के साथ तपस्या करते हुए अपने मामा विश्वामित्र से मिला। वह अत्यन्त आतुर एवम् दीन हो रहा था। उस के मुख पर विषाद छा गया था। वह भूख-प्यास और परिश्रम से दीन हो मुनि की गोद में गिर पड़ा और इस प्रकार बोला- ।।
४.
“सौम्य! मुनिपुंगव ! न मेरे माता हैं, न मेरे पिता, फिर भाइ-बन्धु कहाँसे हो सकते हैं। (मैं असहाय हूँ अतः) आप ही धर्म के द्वारा मेरी रक्षा कीजिये।” ।।
५ से ६.
“नरश्रेष्ठ! आप सबके रक्षक तथा अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति कराने वाले हैं। ये राजा अम्बरीष कृतार्थ हो जायँ और मैं भी विकाररहित दीर्घायु होकर सर्वोत्तम तपस्या करके स्वर्गलोक प्राप्त कर लूँ - ऐसी कृपा कीजिये।” ।।
७.
“धर्मात्मन्! आप अपने निर्मल चित्त से मुझ अनाथ के नाथ (असहाय के संरक्षक) हो जायँ। जैसे पिता अपने पुत्र की रक्षा करता है, उसी प्रकार आप मुझे इस पापमूलक विपत्ति से बचाइये।” ।।
८.
“शुनःशेप की वह बात सुनकर महातपस्वी विश्वामित्र उसे नाना प्रकार से सान्त्वना दे अपने पुत्रों से इस प्रकार बोले - ।।
९.
“बच्चो! शुभ की अभिलाषा रखने वाले पिता जिस पारलौकिक हित के उद्देश्य से पुत्रों को जन्म देते हैं, उसकी पूर्ति का यह समय आ गया है।” ।।
१०.
“पुत्रो! यह बालक मुनिकुमार मुझसे अपनी रक्षा चाहता है, तुम लोग अपना जीवन मात्र देकर इसका प्रिय करो।” ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११.
“तुम सब-के-सब पुण्यात्मा और धर्मपरायण हो। अतः राजा के यज्ञ में पशु बन कर अग्निदेव को तृप्ति प्रदान करो।” ।।
१२.
“इस से शुनःशेप सनाथ होगा, राजा का यज्ञ भी बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हो जाय गा, देवता भी तृप्त होंगे और तुम्हारे द्वारा मेरी आज्ञा का पालन भी हो जाय गा।” ।।
१३.
नरश्रेष्ठ! विश्वामित्र मुनि का वह वचन सुनकर उनके मधुच्छन्द आदि पुत्र अभिमान और अवहेलनापूर्वक इस प्रकार बोले - ।।
१४.
“प्रभो! आप अपने बहुत-से पुत्रों को त्याग कर दूसरे के एक पुत्र की रक्षा कैसे करते हैं? जैसे पवित्र भोजन में कुत्ते का मांस पड़ जाय तो वह अग्राह्य हो जाता है, उसी प्रकार जहाँ अपने पुत्रों की रक्षा आवश्यक हो, वहाँ दूसरे के पुत्र की रक्षा के कार्य को हम अकर्त्तव्य की कोटि में ही देखते हैं।” ।।
१५.
उन पुत्रों का वह कथन सुनकर मुनिवर विश्वामित्र के नेत्र क्रोध से लाल हो गये। वे इस प्रकार कहने लगे - ।।
१६ से १७.
“अरे! तुम लोगों ने निर्भय हो कर ऐसी बात कही है, जो धर्म से रहित एवम् निन्दित है। मेरी आज्ञा का उल्लङ्घन करके जो यह दारुण एवम् रोमाञ्चकारी बात तुमने मुँहसे निकाली है, इस अपराध के कारण तुम सब लोग भी वसिष्ठ के पुत्रों की भाँति कुत्ते का मांस खाने वाली मुष्टिक आदि जातियों में जन्म लेकर पूरे एक हजार वर्षों तक इस पृथ्वी पर रहोगे।” ।।
१८.
इस प्रकार अपने पुत्रों को शाप देकर मुनिवर विश्वामित्र ने उस समय शोकार्त शुनःशेप की निर्विघ्न रक्षा करके उस से इस प्रकार कहा- ।।
१९ से २०.
“मुनिकुमार! अम्बरीष के इस यज्ञ में जब तुम्हें कुश आदि के पवित्र पाशों से बाँधकर लाल फूलों की माला और लाल चन्दन धारण करा दिया जाय, उस समय तुम विष्णुदेवता - सम्बन्धी यूपके पास जाकर वाणी द्वारा अग्नि की (इन्द्र और विष्णुकी) स्तुति करना और इन दो दिव्य गाथाओं का गान करना। इस से तुम मनोवांछित सिद्धि प्राप्त कर लोगे।” ।।
श्लोक २१ से २८ ।।
२१.
शुनःशेप ने एकाग्र चित्त होकर उन दोनों गाथाओं को ग्रहण किया और राजसिंह अम्बरीष के पास जाकर उनसे शीघ्रता पूर्वक कहा- ।।
२२.
“राजेन्द्र! परम बुद्धिमान् राजसिंह! अब हम दोनों शीघ्र चलें। आप यज्ञ की दीक्षा लें और यज्ञ कार्य सम्पन्न करें।” ।।
२३.
ऋषिकुमार का वह वचन सुनकर राजा अम्बरीष आलस्य छोड़ हर्ष से उत्फुल्ल हो शीघ्रता पूर्वक यज्ञशाला में गये। ।।
२४.
वहाँ सदस्य की अनुमति ले राजा अम्बरीष ने शुनःशेप को कुश के पवित्र पाश से बाँधकर उसे पशु के लक्षण से सम्पन्न कर दिया और यज्ञ – पशु को लाल वस्त्र पहिना कर यूप में बाँध दिया ।।
२५.
बँधे हुए मुनिपुत्र शुनःशेप ने उत्तम वाणी द्वारा इन्द्र और उपेन्द्र इन दोनों देवताओं की यथावत् स्तुति की। ।।
२६.
उस रहस्यभूत स्तुति से संतुष्ट होकर सहस्र नेत्रधारी इन्द्र बड़े प्रसन्न हुए। उस समय उन्होंने शुनःशेप को दीर्घायु प्रदान की। ।।
२७.
नरश्रेष्ठ श्रीराम! राजा अम्बरीष ने भी देवराज इन्द्र की कृपा से उस यज्ञ का बहुगुण सम्पन्न उत्तम फल प्राप्त किया। ।।
२८.
पुरुषप्रवर! इसके बाद महातपस्वी धर्मात्मा विश्वामित्र ने भी पुष्कर तीर्थ में पुनः एक हजार वर्षों तक तीव्र तपस्या की। ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में बासठवाँ सर्ग पूरा हुआ। ॥।
Sarg 62- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
