47. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 47

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

सैंतालीसवाँ सर्ग – २२ श्लोक ।।

सारांश ।।

दिति का अपने पुत्रों को मरुद्गण बनाकर देव लोक में रखने के लिये इन्द्र से अनुरोध, इन्द्र द्वारा उसकी स्वीकृति, दिति के तपो वन में ही इक्ष्वाकु पुत्र विशाल द्वारा विशाला नगरी का निर्माण तथा वहाँ के तत्कालीन राजा सुमति द्वारा विश्वामित्र मुनि का सत्कार। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
इन्द्र द्वारा अपने गर्भ के सात टुकड़े कर दिये जाने पर देवी दिति को बड़ा दुख हुआ। वे दुर्द्धर्ष सहस्राक्ष इन्द्र से अनुनयपूर्वक बोलीं- ।।

२.
“देवेश! बलसूदन ! मेरे ही अपराध से इस गर्भ के सात टुकड़े हुए हैं। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है।” ।।

३.
“इस गर्भ को नष्ट करने के निमित्त तुमने जो क्रूरतापूर्ण कर्म किया है, वह तुम्हारे और मेरे लिये भी जिस तरह प्रिय हो जाय - जैसे भी उसका परिणाम तुम्हारे और मेरे लिये सुखद हो जाय, वैसा उपाय मैं करना चाहती हूँ। मेरे गर्भ के वे सातों खण्ड सात व्यक्ति होकर सातों मरुद्गणों के स्थानों का पालन करने वाले हो जायँ।” ।।

४.
“बेटा! ये मेरे दिव्य रूपधारी पुत्र 'मारुत' नाम से प्रसिद्ध होकर आकाश में जो सुविख्यात सात वातस्कन्ध हैं, उनमें विचरें।” ।।

५.
“(ऊपर जो सात मरुत् बताये गये हैं, उनमे से प्रतेक मरुत सात गणों के समान है। इस प्रकार उनचास मरुत् समझने चाहिये। इनमें से) जो प्रथम गण है, वह ब्रह्मलोक में विचरे, दूसरा इन्द्रलोक में विचरण करे तथा तीसरा महायशस्वी मरुद्गण दिव्य वायु के नाम से विख्यात होकर अन्तरिक्ष में बहा करे।” ।।

६.
“सुरश्रेष्ठ! तुम्हारा कल्याण हो। मेरे शेष चार पुत्रों के गण तुम्हारी आज्ञा से समयानुसार सम्पूर्ण दिशाओं में संचार करेंगे। तुम्हारे ही रखे हुए नामसे (तुमने जो 'मा रुदः' कहकर उन्हें रोने से मना किया था, उसी मा रुदः ' - इस वाक्य से) वे सब के सब मारुत कहलायेंगे। मारुत नाम से ही उनकी प्रसिद्धि होगी।” ।।

७.
दिति का वह वचन सुनकर बल दैत्य को मारनेवाले सहस्राक्ष इन्द्र ने हाथ जोड़कर यह बात कही - ।।

८.
“मा! तुम्हारा कल्याण हो। तुमने जैसा कहा है, वह सब वैसा ही होगा; इसमें संशय नहीं है। तुम्हारे ये पुत्र देवरूप होकर विचरें गे।” ।।

९.
श्रीराम ! उस तपोवन में ऐसा निश्चय करके वे दोनों माता और पुत्र - दिति और इन्द्र कृतकृत्य हो स्वर्ग लोक को चले गये - ऐसा हम ने सुन रखा है। ।।

१०.
काकुत्स्थ! यही वह देश है, जहाँ पूर्व काल में रहकर देवराज इन्द्र ने तपः सिद्ध दिति की परिचर्या की थी। ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११ से १२.
पुरुषसिंह ! पूर्वकाल में महाराज इक्ष्वाकु के एक परम धर्मात्मा पुत्र थे, जो विशाल नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म अलम्बुषा के गर्भ से हुआ था। उन्होंने इस स्थान पर विशाला नाम की पुरी बसायी थी। ।।

१३.
श्रीराम ! विशाल के पुत्र का नाम था हेमचन्द्र, जो बड़े बलवान् थे। हेमचन्द्र के पुत्र सुचन्द्र नाम से विख्यात हुए। ।।

१४.
श्रीरामचन्द्र ! सुचन्द्र के पुत्र धूम्राश्व और धूम्राश्व के पुत्र संजय हुए। ।।

१५.
संजय के प्रतापी पुत्र श्रीमान् सहदेव हुए। सहदेव के परम धर्मात्मा पुत्र का नाम कुशाश्व था। ।।

१६.
कुशाश्व के महातेजस्वी पुत्र प्रतापी सोमदत्त हुए और सोमदत्त के पुत्र काकुत्स्थ नाम से विख्यात हुए। ।।

१७.
काकुत्स्थ के महातेजस्वी पुत्र सुमति नाम से प्रसिद्ध हैं; जो परम कान्तिमान् एवम् दुर्जय वीर हैं। वे ही इस समय इस पुरी में निवास करते हैं। ।।

१८.
महाराज इक्ष्वाकु के प्रसाद से विशाला के सभी नरेश दीर्घायु, महात्मा, पराक्रमी और परम धार्मिक होते आये हैं॥ ।।

१९.
नरश्रेष्ठ! आज एक रात हमलोग यहीं सुखपूर्वक शयन करेंगे; फिर कल प्रातःकाल यहाँ से चलकर तुम मिथिला में राजा जनक का दर्शन करोगे। ।।

२०.
नरेशों में श्रेष्ठ, महातेजस्वी, महायशस्वी राजा सुमति विश्वामित्रजी को पुरी के समीप आया हुआ सुनकर उनकी अगवानी के लिये स्वयम् आये। ।।

श्लोक २१ से २२ ।।

२१.
अपने पुरोहित और बन्धुबान्धवों के साथ राजा ने विश्वामित्रजी की उत्तम पूजा करके हाथजोड़ उनका कुशल- समाचार पूछा और उनसे इस प्रकार कहा- ।।

२२.
“मुने! मैं धन्य हो गया हूँ। आपका मुझपर बड़ा अनुग्रह है; क्योंकि आपने स्वयम् मेरे राज्य में पधारकर मुझे दर्शन दिया। इस समय मुझसे बढ़कर धन्य पुरुष दूसरा कोइ नहीं है।” ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में सैंतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।

Sarg 47- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.