46. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 46

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

छियालीसवाँ सर्ग – २३ श्लोक ।।

सारांश ।।

पुत्रों के वध से दुखी हुई दिति का कश्यपजी से इन्द्रहन्ता पुत्र की प्राप्ति के उद्देश्य से तप के लिये आज्ञा लेकर कुशप्लव तप करना, इन्द्र द्वारा उनकी परिचर्या तथा उन्हें अपवित्र अवस्था में पाकर इन्द्र का उनके गर्भ के सात टुकड़े कर डालना। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
अपने उन पुत्रों के मारे जाने पर दिति को बड़ा दुख हुआ। वे अपने पति मरीचिनन्दन कश्यप के पास जाकर बोलीं- ।।

२.
“भगवन्! आपके महाबली पुत्र देवताओं ने मेरे पुत्रों को मार डाला है; अतः, मैं दीर्घकाल की तपस्या से उपार्जित एक ऐसा पुत्र चाहती हूँ जो इन्द्र का वध करने में समर्थ हो।” ।।

३.
“मैं तपस्या करूँगी, आप इसके लिये मुझे आज्ञा दें और मेरे गर्भ में ऐसा पुत्र प्रदान करें, जो सब कुछ करने में समर्थ तथा इन्द्र का वध करने वाला हो।” ।।

४.
उसकी यह बात सुनकर महातेजस्वी मरीचिनन्दन कश्यप ने उस परम दुखिनी दिति को इस प्रकार उत्तर दिया- ।।

५.
“तपोधने! ऐसा ही हो। तुम शौचाचार का पालन करो। तुम्हारा भला हो। तुम ऐसे पुत्र को जन्म दोगी, जो युद्ध में इन्द्र को मार सके।” ।।

६.
“यदि पूरे एक सहस्र वर्ष तक पवित्रता पूर्वक रह सकोगी तो तुम मुझ से त्रिलोकीनाथ इन्द्र का वध करने में समर्थ पुत्र प्राप्त कर लोगी।” ।।

७.
ऐसा कहकर महातेजस्वी कश्यप ने दिति के शरीर पर हाथ फेरा। फिर उनका स्पर्श करके कहा – “तुम्हारा कल्याण हो।' ऐसा कहकर वे तपस्या के लिये चले गये। ।।

८.
नरश्रेष्ठ! उनके चले जाने पर दिति अत्यन्त हर्ष और उत्साह में भर कर कुशप्लव नामक तपोवन में आयीं और अत्यन्त कठोर तपस्या करने लगीं। ।।

९.
पुरुषप्रवर श्रीराम ! दिति के तपस्या करते समय सहस्रलोचन इन्द्र विनय आदि उत्तम गुणसम्पत्ति से युक्त हो उनकी सेवा टहल करने लगे। ।।

१०.
सहस्राक्ष इन्द्र अपनी मौसी दिति के लिये अग्नि, कुशा, काष्ठ, जल, फल, मूल तथा अन्यान्य अभिलषित वस्तुओं को ला- ला कर देते थे। ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
इन्द्र अपनी मौसी की शारीरिक सेवाएँ करते, उनके पैर दबा कर उनकी थकावट मिटाते तथा ऐसी ही अन्य आवश्यक सेवाओं द्वारा वे हर समय दिति की परिचर्या करते थे। ।।

१२.
रघुनन्दन ! जब सहस्र वर्ष पूर्ण होने में कुल दस वर्ष बाकी रह गये, तब एक दिन दिति ने अत्यन्त हर्ष में भरकर सहस्रलोचन इन्द्र से कहा- ।।

१३.
“बलवानों में श्रेष्ठ वीर! अब मेरी तपस्या के मात्र दस वर्ष और शेष रह गये हैं। तुम्हारा भला हो। दस वर्ष बाद तुम अपने होने वाले भाइ को देख सको गे।” ।।

१४.
“बेटा! मैंने तुम्हारे विनाश के लिये जिस पुत्र की याचना की थी, वह जब तुम्हें जीतने के लिये उत्सुक होगा, उस समय मैं उसे शान्त कर दूँगी - तुम्हारे प्रति उसे वैरभाव से रहित तथा भ्रातृ- स्नेह से युक्त बना दूँगी। फिर तुम उसके साथ रह कर उसी के द्वारा की हुई त्रिभुवन विजय का सुख निश्चिन्त होकर भोगना।” ।।

१५.
“सुरश्रेष्ठ! मेरे प्रार्थना करने पर तुम्हारे महात्मा पिता ने एक हजार वर्ष के बाद पुत्र होने का मुझे वर दिया है।” ।।

१६.
ऐसा कहकर दिति नींद से अचेत हो गयीं। उस समय सूर्यदेव आकाश के मध्य भाग में आ गये थे दोपहर का समय हो गया था। देवी दिति आसन पर बैठी - बैठी झपकी लेने लगीं। सिर झुक गया और केश पैरों से जा लगे। इस प्रकार निद्रावस्था में उन्होंने पैरों को सिर से लगा लिया। ।।

१७.
उन्होंने अपने केशों को पैरों पर डाल रखा था। सिर को टिकाने के लिये दोनों पैरों को ही आधार बना लिया था। यह देख दिति को अपवित्र हुई जान इन्द्र हँसे और बड़े प्रसन्न हुए। ।।

१८.
श्रीराम ! फिर तो सतत सावधान रहने वाले इन्द्र माता दिति के उदर में प्रविष्ट हो गये और उसमें स्थित हुए गर्भ के उन्होंने सात टुकड़े कर डाले। ।।

१९.
श्रीराम ! उनके द्वारा सौ पर्वोंवाले वज्र से विदीर्ण किये जाते समय वह गर्भस्थ बालक जोर- जोर से रोने लगा। इस से दिति की निद्रा टूट गयी – वे जाग कर उठबैठीं। ।।

२०.
तब इन्द्र ने उस रोते हुए गर्भ से कहा- “भाइ ! मत रो, मत रो।” परंतु महातेजस्वी इन्द्र ने रोते रहने पर भी उस गर्भ के टुकड़े कर ही डाले। ।।

श्लोक २१ से २३ ।।

२१.
उस समय दिति ने कहा – “इन्द्र! बच्चे को न मारो, न मारो।' माता के वचन का गौरव मान कर इन्द्र सहसा उदर से निकल आये। ।।

२२ से २३.
फिर वज्र सहित इन्द्र ने हाथ जोड़कर दिति से कहा – “देवि! तुम्हारे सिर के बाल पैरों से लगे थे। इस प्रकार तुम अपवित्र अवस्था में सोयी थीं। यही छिद्र पाकर मैंने इस ‘इन्द्रहन्ता’ बालक के सात टुकड़े कर डाले हैं। इस लिये माँ ! तुम मेरे इस अपराध को क्षमा करो।” ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में छियालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ।।

Sarg 46- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.