38. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 38

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

अड़तीसवाँ सर्ग – २४ श्लोक ।।

सारांश ।।

राजा सगर के पुत्रों की उत्पत्ति तथा यज्ञ की तैयारी। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
विश्वामित्रजी ने मधुर अक्षरों से युक्त वह कथा श्रीराम को सुना कर फिर उनसे दूसरा प्रसंग इस प्रकार कहा- ।।

२.
“वीर! पहले की बात है, अयोध्या में सगर नाम से प्रसिद्ध एक धर्मात्मा राजा राज्य करते थे। उन्हें कोई पुत्र नहीं था; अतः वे पुत्र प्राप्ति के लिये सदा उत्सुक रहा करते थे।” ।।

३.
“श्रीराम! विदर्भ राजकुमारी केशिनी राजा सगर की ज्येष्ठ पत्नी थी। वह बड़ी धर्मात्मा और सत्यवादिनी थी।” ।।

४.
“सगर की दूसरी पत्नी का नाम सुमति था। वह अरिष्टनेमि कश्यप की पुत्री तथा गरुड की बहन थी।” ।।

५.
“महाराज सगर अपनी उन दोनों पत्नियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर भृगुप्रस्रवण नामक शिखर पर तपस्या करने लगे।” ।।

६.
“सौ वर्ष पूर्ण होने पर उनकी तपस्या द्वारा प्रसन्न हुए सत्यवादियों में श्रेष्ठ महर्षि भृगु ने राजा सगर को वर दिया।” ।।

७.
“निष्पाप नरेश! तुम्हें बहुत से पुत्रों की प्राप्ति होगी। पुरुषप्रवर! तुम इस संसार में अनुपम कीर्ति प्राप्त करोगे।” ।।

८.
“तात! तुम्हारी एक पत्नी तो एक ही पुत्र को जन्म देगी, जो अपनी वंश परम्परा का विस्तार करने वाला होगा तथा दूसरी पत्नी साठ हजार पुत्रों की जननी होगी।” ।।

९.
“महात्मा भृगु जब इस प्रकार कह रहे थे, उस समय उन दोनों राजकुमारियों (रानियों) ने उन्हें प्रसन्न करके स्वयम् भी अत्यन्त आनन्दित हो दोनों हाथ जोड़कर पूछा- ।।

१०.
“ब्रह्मन्! किस रानी के एक पुत्र होगा और कौन बहुत-से पुत्रों की जननी होगी? हम दोनों यह सुनना चाहती हैं। आपकी वाणी सत्य हो।” ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११ से १२.
“उन दोनों की यह बात सुनकर परम धर्मात्मा भृगु ने उत्तम वाणी में कहा – “देवियो! तुमलोग यहाँ अपनी इच्छा प्रकट करो। तुम्हें वंश चलाने वाला एक ही पुत्र प्राप्त हो अथवा महान् बलवान्, यशस्वी एवम् अत्यन्त उत्साही बहुत से पुत्र ? इन दो वरों में से किस वर को कौन-सी रानी ग्रहण करना चाहती है?” ।।

१३.
“रघुकुलनन्दन श्रीराम! मुनि का यह वचन सुनकर केशिनी ने राजा सगर के समीप वंश चलाने वाले एक ही पुत्र का वर ग्रहण किया।” ।।

१४.
“तब गरुड़ की बहिन सुमति ने महान् उत्साही और यशस्वी साठ हजार पुत्रों को जन्म देने का वर प्राप्त किया।” ।।

१५.
“रघुनन्दन! तदनन्तर रानियों सहित राजा सगर ने महर्षि की परिक्रमा करके उनके चरणों में मस्तक झुकाया और अपने नगर को प्रस्थान किया।” ।।

१६.
“कुछ काल व्यतीत होने पर बड़ी रानी केशिनी ने सगर के औरस पुत्र असमञ्ज को जन्म दिया।” ।।

१७.
“पुरुषसिंह! (छोटी रानी) सुमति ने तूंबी के आकार का एक गर्भपिण्ड उत्पन्न किया। उसको फोड़ने से साठ हजार बालक निकले।” ।।

१८.
“उन्हें घी से भरे हुए घड़ों में रखकर धाइयाँ उन का पालन-पोषण करने लगीं। धीरे-धीरे जब बहुत दिन बीत गये, तब वे सभी बालक युवावस्था को प्राप्त हुए।” ।।

१९.
“इस तरह दीर्घ काल के पश्चात् राजा सगर के रूप और युवावस्था से सुशोभित होने वाले साठ हजार पुत्र तैयार हो गये।” ।।

२०.
“नरश्रेष्ठ रघुनन्दन! सगर का ज्येष्ठ पुत्र असमञ्ज नगर के बालकों को पकड़ कर सरयू के जल में फेंक देता और जब वे डूबने लगते, तब उनकी ओर देख कर हँसा करता।” ।।

श्लोक २१ से २४ ।।

२१.
“इस प्रकार पापाचार में प्रवृत्त हो कर जब वह सत्पुरुषों को पीड़ा देने और नगर- निवासियों का अहित करने लगा, तब पिता ने उसे नगर से बाहर निकाल दिया।” ।।

२२.
“असमञ्ज के पुत्र का नाम था अंशुमान्। वह बड़ा ही पराक्रमी, सबसे मधुर वचन बोलनेवाला तथा सब लोगों को प्रिय था।” ।।

२३.
“नरश्रेष्ठ! कुछ काल के अनन्तर महाराज सगर के मन में यह निश्चित विचार हुआ कि “मैं यज्ञ करूँ।” ।।

२४.
“यह दृढ़ निश्चय करके वे वेदवेत्ता नरेश अपने उपाध्यायों के साथ यज्ञ करने की तैयारी में लग गये।” ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में अड़तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ।।

Sarg 38- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.