39. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 39
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।
उनतालीसवाँ सर्ग – २६ श्लोक ।।
सारांश ।।
इन्द्र द्वारा राजा सगर के यज्ञ सम्बन्धी अश्व का अपहरण, सगर पुत्रों द्वारा सारी पृथ्वी का भेदन तथा देवताओं का ब्रह्माजी को यह सब समाचार बताना। ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
विश्वामित्रजी की कही हुई कथा सुनकर श्रीरामचन्द्रजी बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कथा के अन्त में अग्नितुल्य तेजस्वी विश्वामित्र मुनि से कहा - ।।
२.
“ब्रह्मन्! आपका कल्याण हो। मैं इस कथा को विस्तार के साथ सुनना चाहता हूँ। मेरे पूर्वज महाराज सगर ने किस प्रकार यज्ञ किया था?” ।।
३.
उनकी वह बात सुनकर विश्वामित्रजी को बड़ा कौतूहल हुआ। वे यह सोच कर कि मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ, उसीके लिये ये प्रश्न कर रहे हैं, वह जोर-जोर से हँस पड़े। हँसते हुए-से ही उन्हों ने श्रीराम से कहा- ।।
४ से ५.
“राम! तुम महात्मा सगर के यज्ञ का विस्तार पूर्वक वर्णन सुनो। पुरुषोत्तम ! शङ्करजी के श्वशुर हिमवान् नाम से विख्यात पर्वत विन्ध्याचल तक पहुँच कर तथा विन्ध्यपर्वत हिमवान्तक पहुँच कर दोनों एक-दूसरे को देखते हैं (इन दोनों के बीच में दूसरा कोई ऐसा ऊँचा पर्वत नहीं है, जो दोनों के पारस्परिक दर्शन में बाधा उपस्थित कर सके। इन्हीं दोनों पर्वतों के बीच आर्यावर्त की पुण्यभूमि में उस यज्ञ का अनुष्ठान हुआ था।” ।।
६.
“पुरुषसिंह! वही देश यज्ञ करने के लिये उत्तम माना गया है। तात ककुत्स्थनन्दन! राजा सगर की आज्ञा से यज्ञिय अश्व की रक्षा का भार सुदृढ़ धनुर्धर महारथी अंशुमान् ने स्वीकार किया था।” ।।
७.
“परंतु पर्व के दिन यज्ञ में लगे हुए राजा सगर के यज्ञ सम्बन्धी घोड़े को इन्द्र ने राक्षस का रूप धारण कर के चुरा लिया।” ।।
८ से १०.
“काकुत्स्थ! महामना सगर के उस अश्व का अपहरण होते समय समस्त ऋत्विजों ने यजमान सगर से कहा— “ककुत्स्थनन्दन ! आज पर्व के दिन कोई इस यज्ञ सम्बन्धी अश्व को चुरा कर बड़े वेग से लिये जा रहा है। आप चोर को मारिये और घोड़ा वापस लाइये, नहीं तो यज्ञ में विघ्न पड़ जाय गा और वह हम सब लोगों के लिये अमंगल का कारण होगा। राजन्! आप ऐसा प्रयत्न कीजिये, जिस से यह यज्ञ बिना किसी विघ्न-बाधा के परिपूर्ण हो।” ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११ से १२.
“उस यज्ञ सभा में बैठे हुए राजा सगर ने उपाध्यायों की बात सुन कर अपने साठ हजार पुत्रों से कहा – “पुरुषप्रवर पुत्रो! यह महान् यज्ञ वेदमन्त्रों से पवित्र अन्तःकरण वाले महाभाग महात्माओं द्वारा सम्पादित हो रहा है; अतः यहाँ राक्षसों की पहुँच हो, ऐसा मुझे नहीं दिखायी देता (अतः यह अश्व चुराने वाला कोइ देवकोटि का पुरुष होगा ) ।” ॥
१३ से १५.
“अतः पुत्रो! तुमलोग जाओ, घोड़े की खोज करो। तुम्हारा कल्याण हो। समुद्र से घिरी हुई इस सारी पृथ्वी को छान डालो। एक-एक योजन विस्तृत भूमि को बाँट कर उस का चप्पा- चप्पा देख डालो। जब तक घोड़े का पता न लग जाय, तब तक मेरी आज्ञा से इस पृथ्वी को खोदते रहो। इस खोदने का एक ही लक्ष्य है— उस अश्व के चोर को ढूँढ़ निकालना।” ।।
१६.
“मैं यज्ञ की दीक्षा ले चुका हूँ, अतः स्वयम् उसे ढूँढ़ने के लिये नहीं जा सकता; इस लिये जब तक उस अश्व का दर्शन न हो, तब तक मैं उपाध्यायों और पौत्र अंशुमान्के साथ यहीं रहूँ गा।” ।।
१७.
“श्रीराम! पिता के आदेश रूपी बन्धन से बंध कर वे सभी महाबली राजकुमार मन-ही-मन हर्ष का अनुभव करते हुए भूतल पर विचरने लगे।” ।।
१८.
“सारी पृथ्वी का चक्कर लगाने के बाद भी उस अश्व को न देख कर उन महाबली पुरुषसिंह राजपुत्रों ने प्रत्येक के हिस्से में एक-एक योजन भूमि का बँटवारा करके अपनी भुजाओं द्वारा उसे खोदना आरम्भ किया। उनकी उन भुजाओं का स्पर्श वज्र के स्पर्श की भाँति दुस्सह था।” ।।
१९.
“रघुनन्दन! उस समय वज्रतुल्य शूलों और अत्यन्त दारुण हलों द्वारा सब ओरसे विदीर्ण की जाती हुइ वसुधा आर्तनाद करने लगी।” ।।
२०.
“रघुवीर! उन राजकुमारों द्वारा मारे जाते हुए नागों, असुरों, राक्षसों तथा दूसरे दूसरे प्राणियों का भयंकर आर्तनाद गूँजने लगा।” ।।
श्लोक २१ से २६ ।।
२१.
“रघुकुल को आनन्दित करने वाले श्रीराम! उन्होंने साठ हजार योजन की भूमि खोद डाली। मानो वे सर्वोत्तम रसातल का अनुसंधान कर रहे हों।” ।।
२२.
“नृपश्रेष्ठ राम! इस प्रकार पर्वतों से युक्त जम्बू द्वीप की भूमि खोदते हुए वे राजकुमार सब ओर चक्कर लगाने लगे।” ।।
२३.
“इसी समय गन्धर्वों, असुरों और नागों सहित सम्पूर्ण देवता मन-ही-मन घबरा उठे और ब्रह्माजी के पास गये।” ।।
२४.
“उनके मुखपर विषाद छा रहा था। वे भय से अत्यन्त संत्रस्त हो गये थे। उन्होंने महात्मा ब्रह्माजी को प्रसन्न करके इस प्रकार कहा- ।।
२५.
“भगवन्! सगर के पुत्र इस सारी पृथ्वी को खोदे डालते हैं और बहुत-से महात्माओं तथा जलचारी जीवों का वध कर रहे हैं।” ।।
२६.
“यह हमारे यज्ञ में विघ्न डालने वाला है। यह हमारा अश्व चुरा कर ले जाता है।” ऐसा कहकर वे सगर के पुत्र समस्त प्राणियों की हिंसा कर रहे हैं।” ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में उनतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।
Sarg 39- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
