25. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 25

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

पचीसवाँ सर्ग- २२ श्लोक ।।

सारांश ।।

श्रीराम के पूछने पर विश्वामित्रजी का उनसे ताटका की उत्पत्ति, विवाह एवम् शाप आदि का प्रसंग सुनाकर उन्हें ताटका वध के लिये प्रेरित करना। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
अपरिमित प्रभावशाली विश्वामित्र मुनि का यह उत्तम वचन सुनकर पुरुषसिंह श्रीराम ने यह शुभ बात कही - ।।

२.
“मुनिश्रेष्ठ! जब वह यक्षिणी एक अबला सुनी जाती है, तबतो उसकी शक्ति थोड़ी ही होनी चाहिये ; फिर वह एक हजार हाथियों का बल कैसे धारण करती है?” ।।

३ से ४.
अमित तेजस्वी श्री रघुनाथ के कहे हुए इस वचन को सुनकर विश्वामित्रजी अपनी मधुर वाणी द्वारा लक्ष्मण सहित शत्रुदमन श्रीराम को हर्ष प्रदान करते हुए बोले- “रघुनन्दन! जिस कारण से ताटका अधिक बलशालिनी हो गयी है, वह बताता हूँ, सुनो। उसमें वरदान जनित बलका उदय हुआ है; अतः, वह अबला होकर भी बल धारण करती है (सबला हो गयी है)।” ।।

५.
“पूर्वकाल की बात है, सुकेतु नामसे प्रसिद्ध एक महान् यक्ष थे। वे बड़े पराक्रमी और सदाचारी थे; परंतु उन्हें कोई संतान नहीं थी; इस लिये उन्होंने बड़ी भारी तपस्या की।” ।।

६.
“श्रीराम! यक्षराज सुकेतु की उस तपस्या से ब्रह्माजी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने सुकेतु को एक कन्यान्त प्रदान किया, जिस का नाम ताटका था।” ।।

७.
“ब्रह्माजी ने ही उस कन्या को एक हजार हाथियों के समान बल दे दिया; परंतु उन महायशस्वी पितामह ने उस यक्ष को पुत्र नहीं ही दिया (उसके संकल्प के अनुसार पुत्र प्राप्त होजाने पर उसके द्वारा जनता का अत्यधिक उत्पीड़न होता, यही सोच कर ब्रह्माजी ने पुत्र नहीं दिया।” ।।

८.
“धीरे-धीरे वह यक्षबालिका बढ़ने लगी और बढ़ कर रूपयौवन से सुशोभित होने लगी। उस अवस्था में सुकेतु ने अपनी उस यशस्विनी कन्या को जम्भपुत्र सुन्द के हाथ में उस की पत्नी के रूप में दे दिया।” ।।

९.
“कुछ काल के बाद उस यक्षी ताटका ने मारीच नाम से प्रसिद्ध एक दुर्जय पुत्र को जन्म दिया, जो अगस्त्य मुनि के शाप से राक्षस हो गया।” ।।

१०.
“श्रीराम! अगस्त्य ने ही शाप दे कर ताटका के पति सुन्द को भी मार डाला। उसके मारे जाने पर ताटका पुत्र सहित जा कर मुनिवर अगस्त्य को भी मौत के घाट उतार देने की इच्छा करने लगी।” ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
“वह कुपित हो मुनि को खा जाने के लिये गर्जना करती हुई दौड़ी। उसे आती देख भगवान् अगस्त्यमुनि ने मारीच से कहा- “तू देव योनि – रूप का परित्याग करके राक्षस भाव को प्राप्त हो जा।” ।।

१२ से १३.
“फिर अत्यन्त अमर्ष में भरे हुए ऋषि ने ताटका को भी शाप दे दिया- “तू विकराल मुख वाली नरभक्षिणी राक्षसी हो जा। तू है तो महायक्षी; परंतु अब शीघ्र ही इस रूप को त्याग कर तेरा भयङ्कर रूप हो जाय गा।” ।।

१४.
“इस प्रकार शाप मिलने के कारण ताटका का अमर्ष और भी बढ़ गया। वह क्रोध से मूर्च्छित हो उठी और उन दिनों अगस्त्य जी जहाँ रहते थे, उस सुन्दर देश को उजाड़ने लगी ।।

१५.
“ रघुनन्दन! तुम गौओं और ब्राह्मणों का हित करने के लिये दुष्ट पराक्रम वाली इस परम भयङ्कर दुराचारिणी यक्षी का वध कर डालो ।।

१६.
‘रघुकुल को आनन्दित करनेवाले वीर! इस शाप ग्रस्त ताटका को मारने के लिये तीनों लोकों में तुम्हारे सिवा दूसरा कोई पुरुष समर्थ नहीं है।” ।।

१७.
“नर श्रेष्ठ! तुम स्त्रीहत्या का विचार करके इसके प्रति दया न दिखाना। एक राजपुत्र को चारों वर्णों के हित के लिये स्त्री हत्या भी करनी पड़े तो उस से मुँह नहीं मोड़ना चाहिये।” ।।

१८.
“प्रजापालक नरेश को प्रजाजनों की रक्षा के लिये क्रूरता पूर्ण या क्रूरता रहित, पातक युक्त अथवा सदोष कर्म भी करना पड़े तो कर लेना चाहिये। यह बात उसे सदा ही ध्यान में रखनी चाहिये।” ।।

१९.
“जिनके ऊपर राज्य के पालन का भार है, उनका तो यह सनातन धर्म है। ककुत्स्थ कुलनन्दन! ताटका महापापिनी है। उसमें धर्म का लेशमात्र भी नहीं है; अतः उसे मार डालो।” ।।

२०.
“नरेश्वर! सुना जाता है कि पूर्वकाल में विरोचन की पुत्री मन्थरा सारी पृथ्वी का नाश कर डालना चाहती थी। उसके इस विचार को जान कर इन्द्र ने उसका वध कर डाला।” ।।

श्लोक २१ से २२ ।।

२१.
“श्रीराम! प्राचीन काल में शुक्राचार्य की माता तथा भृगु की पतिव्रता पत्नी त्रिभुवन को इन्द्र से शून्य कर देना चाहती थीं। यह जान कर भगवान् विष्णु ने उनको मार डाला।” ॥

२२.
“इन्हों ने तथा अन्य बहुत-से महामनस्वी पुरुष प्रवर राजकुमारों ने पापचारिणी स्त्रियों का वध किया है। नरेश्वर! अतः तुम भी मेरी आज्ञा से दया अथवा घृणा को त्याग कर इस राक्षसी को मार डालो।” ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में पचीसवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।

Sarg 25- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.