26. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 26

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

छब्बीसवाँ सर्ग – ३६ श्लोक ।।

सारांश

श्रीराम द्वारा ताटका का वध। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
मुनि के ये उत्साह भरे वचन सुनकर दृढ़ता पूर्वक उत्तम व्रतका पालन करने वाले राजकुमार श्रीराम ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया- ।।

२ से ३.
“भगवन्! अयोध्या में मेरे पिता महामना महाराज दशरथ ने अन्य गुरुजनों के बीच मुझे यह उपदेश दिया था कि “बेटा! तुम पिता के कहने से पिता के वचनों का गौरव रखने के लिये कुशिकनन्दन विश्वामित्र की आज्ञा का निःशङ्क होकर पालन करना। कभी भी उनकी बात की अवहेलना न करना।” ।।

४.
“अतः, मैं पिताजी के उस उपदेश को सुनकर आप ब्रह्मवादी महात्मा की आज्ञा से ताटका वध सम्बन्धी कार्य को उत्तम मानकर करूँगा- इस में संदेह नहीं है।” ।।

५.
“गौ, ब्राह्मण तथा समूचे देश का हित करने के लिये मैं आप जैसे अनुपम प्रभावशाली महात्मा के आदेश का पालन करने को सब प्रकार से तैयार हूँ।” ।।

६.
ऐसा कह कर शत्रु दमन श्रीराम ने धनुष के मध्यभाग में मुट्ठी बाँध कर उसे जोर से पकड़ा और उस की प्रत्यञ्चा पर तीव्र टङ्कार दी। उसकी आवाज से सम्पूर्ण दिशाएँ गूंज उठीं। ।।

७.
उस शब्द से ताटका वन में रहने वाले समस्त प्राणी थर्रा उठे। ताटका भी उस टङ्कार-घोष से पहले तो किंकर्तव्यविमूढ़ हो उठी; परंतु फिर कुछ सोचकर अत्यन्त क्रोध में भर गयी। ।।

८.
उस शब्द को सुन कर वह राक्षसी क्रोध से अचेत सी हो गयी थी। उसे सुनते ही वह जहाँ से आवाज आयी थी, उसी दिशा की ओर रोष पूर्वक दौड़ी। ।।

९.
उसके शरीर की ऊँचाई बहुत अधिक थी। उसकी मुखाकृति विकृत दिखायी देती थी। इस विकराल राक्षसी की ओर दृष्टिपात करके श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा- ।।

१०.
“लक्ष्मण! देखो तो सही, इस यक्षिणी का शरीर कैसा दारुण एवम् भयङ्कर है! इसके दर्शन मात्र से भीरु पुरुषों के हृदय विदीर्ण हो सकते हैं।” ।।

श्लोक ११ से २२ ।।

११.
“मायाबल से सम्पन्न होने के कारण यह अत्यन्त दुर्जय हो रही है। देखो, मैं अभी इसके कान और नाक काट कर इसे पीछे लौटने को विवश किये देता हूँ।” ।।

१२.
“यह अपने स्त्री स्वभाव के कारण रक्षित है; अतः, मुझे इसे मारने में उत्साह नहीं है। मेरा विचार यह है कि मैं इसके बल, पराक्रम तथा गमन शक्ति को नष्ट कर दूँ (अर्थात्, इसके हाथ-पैर काट डालूँ) ।” ।।

१३.
श्रीराम इस प्रकार कह ही रहे थे कि क्रोध से अचेत हुई ताटका वहाँ आ पहुँची और एक बाँह उठा कर गर्जना करती हुई उन्हीं की ओर झपटी। ।।

१४.
यह देख ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने अपने हुंकार के द्वारा उसे डाँट कर कहा- “रघुकुल के इन दोनों राजकुमारों का कल्याण हो। इनकी विजय हो।” ।।

१५.
तब ताटका ने उन दोनों रघुवंशी वीरों पर भयङ्कर धूल उड़ाना आरम्भ किया। वहाँ धूल का विशाल बादल - सा छा गया। उसके द्वारा उस ने श्रीराम और लक्ष्मण को दो घड़ी तक मोह में डाल दिया। ।।

१६.
तत्पश्चात्, माया का आश्रय ले कर वह उन दोनों भाइयों पर पत्थरों की बड़ी भारी वर्षा करने लगी। यह देख रघुनाथजी उस पर कुपित हो उठे। ।।

१७.
रघुवीर ने अपनी बाण वर्षां के द्वारा उसकी बड़ी भारी शिला वृष्टि को रोक कर अपनी ओर आती हुई उस निशाचरी के दोनों हाथ तीखे सायकों से काट डाले। ।।

१८.
दोनों भुजाएँ कट जाने से थकी हुइ ताटका उनके निकट खड़ी होकर जोर-जोर से गर्जना करने लगी। यह देख सुमित्राकुमार लक्ष्मण ने क्रोध में भरकर उसके नाक-कान काट लिये। ।।

१९.
परंतु वह तो इच्छानुसार रूप धारण करने वाली यक्षिणी थी, अतः अनेक प्रकार के रूप बना कर अपनी माया से श्रीराम और लक्ष्मण को मोह में डालती हुई अदृश्य हो गयी। ।।

२० से २२.
अब वह पत्थरों की भयङ्कर वर्षा करती हुई आकाश में विचरने लगी। श्रीराम और लक्ष्मण पर चारों ओर से प्रस्तरों की वृष्टि होती देख तेजस्वी गाधिनन्दन विश्वामित्र ने इस प्रकार कहा – “श्रीराम ! इसके ऊपर तुम्हारा दया करना व्यर्थ है। यह बड़ी पापिनी और दुराचारिणी है। सदा यज्ञों में विघ्न डाला करती है। यह अपनी माया से पुनः प्रबल हो उठे, इसके पहले ही इसे मार डालो। अभी संध्या काल आना चाहता है, इसके पहले ही यह कार्य हो जाना चाहिये; क्योंकि संध्या के समय राक्षस दुर्जय हो जाते हैं।” ।।

श्लोक २३ से ३० ।।

२३.
विश्वामित्रजी के ऐसा कहने पर श्रीराम ने शब्दवेधी बाण चलाने की शक्ति का परिचय देते हुए बाण मार कर प्रस्तरों की वर्षा करने वाली उस यक्षिणी को सब ओर से अवरुद्ध कर दिया। ।।

२४ से २५.
उनके बाण-समूह से घिर जाने पर मायाबल से युक्त वह यक्षिणी जोर-जोर से गर्जना करती हुई श्रीराम और लक्ष्मण के ऊपर टूट पड़ी। उसे चलाये हुए इन्द्र के वज्र की भाँति वेग से आती देख श्रीराम ने एक बाण मारकर उस की छाती चीर डाली। तब ताटका पृथ्वी पर गिरी और मर गयी। ।।

२६.
उस भयङ्कर राक्षसी को मारी गयी देख देवराज इन्द्र तथा देवताओं ने श्रीराम को साधुवाद देते हुए उन की सराहना की। ।।

२७.
उस समय सहस्रलोचन इन्द्र तथा समस्त देवताओं ने अत्यन्त प्रसन्न एवम् हर्षोत्फुल्ल होकर विश्वामित्रजी से कहा- ।।

२८.
“मुने! कुशिकनन्दन! आपका कल्याण हो। आपने इस कार्य से इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवताओं को संतुष्ट किया है। अब रघुकुलतिलक श्रीराम पर आप अपना स्नेह प्रकट कीजिये।” ।।

२९.
“ब्रह्मन्! प्रजापति कृशाश्व के अस्त्र - रूपधारी पुत्रों को, जो सत्यपराक्रमी तथा तपोबल से सम्पन्न हैं, श्रीराम को समर्पित कीजिये।” ।।

३०.
“विप्रवर! ये आपके अस्त्रदान के सुयोग्य पात्र हैं तथा आपके अनुसरण (सेवा-शुश्रूषा) में तत्पर रहते हैं। राजकुमार श्रीराम के द्वारा देवताओं का महान् कार्य सम्पन्न होने वाला है।” ।।

श्लोक ३१ से ३६

३१.
ऐसा कहकर सभी देवता विश्वामित्रजी की प्रशंसा करते हुए प्रसन्नता पूर्वक आकाश मार्ग से चले गये। तत्पश्चात् संध्या हो गयी। ।।

३२.
तदनन्तर ताटका वध से संतुष्ट हुए मुनिवर विश्वामित्र ने श्रीरामचन्द्रजी का मस्तक सूंघ कर उनसे यह बात कही – ।।

३३.
“शुभदर्शन राम! आज की रात में हमलोग यहीं निवास करें। कल सबेरे अपने आश्रम पर चलेंगे।” ।।

३४.
विश्वामित्रजीकी यह बात सुनकर दशरथकुमार श्रीराम बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने ताटका वन में रहकर वह रात्रि बड़े सुख से व्यतीत की। ।।

३५.
उसी दिन वह वन शाप मुक्त होकर रमणीय शोभा से सम्पन्न हो गया और चैत्ररथ वन की भांति अपनी मनोहर छटा दिखाने लगा। ।।

३६.
यक्षकन्या ताटका का वध करके श्रीरामचन्द्रजी देवताओं तथा सिद्धसमूहों की प्रशंसा के पात्र बन गये। उन्होंने प्रातःकाल की प्रतीक्षा करते हुए विश्वामित्रजी के साथ ताटका वन में निवास किया। ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में छब्बीसवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।

Sarg 26- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.