19. Valmiki Ramayana - Kishkindha Kaand - Sarg 19
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्री सीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – किष्किन्धाकाण्ड ।।
उन्नीसवाँ सर्ग – २८ श्लोक ।।
सारांश ।।
अङ्गद सहित तारा का भागे हुए वानरों से बात करके वाली के समीप आना और उसकी दुर्दशा देख कर रोना ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
वानरों का महाराज वाली बाण से पीड़ित होकर भूमि पर पड़ा था। श्रीरामचन्द्रजी के युक्तियुक्त वचनों द्वारा अपनी बात का उत्तर पाकर उसे फिर कोई जवाब न सूझा। ।।
२.
पत्थरों की मार पड़ने से उसके अङ्ग टूट-फूट गये थे। वृक्षों के आघात से भी वह बहुत घायल हो गया था और श्रीराम के बाण से आक्रान्त होकर तो वह जीवन के अन्तकाल में ही पहुँच गया था। उस समय वह मूर्च्छित हो गया. ।।
३.
उसकी पत्नी तारा ने सुना कि युद्धस्थल में वानरश्रेष्ठ वाली श्रीराम के चलाये हुए बाण से मारे गये। ।।
४.
अपने स्वामी के वध का अत्यन्त भयंकर एवम् अप्रिय समाचार सुन कर वह बहुत उद्विग्न हो उठी और अपने पुत्र अङ्गद को साथ लेकर उस पर्वत की कन्दरा से बाहर निकली। ।।
५.
अङ्गद को चारों ओर से घेर कर उनकी रक्षा करनेवाले जो महाबली वानर थे, वे श्रीरामचन्द्रजी को धनुष लिये देख भयभीत होकर भाग चले। ।।
६.
तारा ने वेग से भाग कर आते हुए उन भयभीत वानरों को देखा। वे जिनके यूथपति मारे गये हों, उन यूथभ्रष्ट मृगों के समान जान पड़ते थे। ।।
७.
वे सब वानर श्रीराम से इस प्रकार डरे हुए थे, मानो उन के बाण इनके पीछे आ रहे हों। उन दुखी वानरों के पास पहुँच कर सती-साध्वी तारा और भी दुखी हो गयी तथा उनसे इस प्रकार बोली- ।।
८.
“वानरो! तुम तो उन राजसिंह वाली के आगे-आगे चलनेवाले थे। अब उन्हें छोड़ कर अत्यन्त भयभीत हो दुर्गति में पड़कर क्यों भागे जा रहे हो?” ।।
९.
“यदि राज्य के लोभ से उस क्रूर भाई सुग्रीव ने श्रीराम को प्रेरित करके उनके द्वारा दूर से चलाये हुए और दूर तक जानेवाले बाणों द्वारा अपने भाइ को मरवा दिया है तो तुमलोग क्यों भागे जा रहे हो?” ।।
१०.
वाली की पत्नी का वह वचन सुनकर इच्छानुसार रूप धारण करनेवाले उन वानरों ने कल्याणमयी तारादेवी को सम्बोधित करके सर्वसम्मति से स्पष्ट शब्दों में यह समयोचित बात कही- ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११.
“देवि! अभी तुम्हारा पुत्र जीवित है। तुम लौट चलो और अपने पुत्र अङ्गद की रक्षा करो। श्रीराम का रूप धारण करके स्वयम् यमराज आ पहुँचे हैं, जो वाली को मारकर अपने साथ ले जा रहे हैं।” ।।
१२.
“वाली के चलाये हुए वृक्षों और बड़ी-बड़ी शिलाओं को अपने वज्रतुल्य बाणों से विदीर्ण करके श्रीराम ने वाली को मार गिराया है। मानो वज्रधारी इन्द्र ने अपने वज्र के द्वारा किसी महान् पर्वत को धराशायी कर दिया हो।” ।।
१३.
“इन्द्र के समान तेजस्वी इन वानरश्रेष्ठ वाली के मारे जाने पर यह सारी वानर-सेना श्रीराम से पराजित-सी हो कर भाग खड़ी हुइ है।” ।।
१४.
“तुम शूरवीरों द्वारा इस नगरी की रक्षा करो। कुमार अङ्गद का किष्किन्धा के राज्य पर अभिषेक कर दो। राजसिंहासन पर बैठे हुए वालिकुमार अङ्गद की सभी वानर सेवा करेंगे।” ।।
१५ से १६.
“अथवा सुमुखी! अब इस नगर में तुम्हारा रहना हमें अच्छा नहीं जान पड़ता; क्योंकि किष्किन्धा के दुर्गम स्थानों में अभी सुग्रीवपक्षीय वानर शीघ्र प्रवेश करेंगे। यहाँ बहुत-से ऐसे वनचारी वानर हैं, जिनमें से कुछ तो अपनी स्त्रियों के साथ हैं और कुछ स्त्रियों से बिछुड़े हुए हैं। उन में राज्यविषयक लोभ पैदा हो गया है और पहले हमलोगों के द्वारा राज्य-सुख से वञ्चित किये गये हैं। अतः इस समय उन सब से हमलोगों को महान् भय प्राप्त हो सकता है।” ।।
१७.
अभी थोड़ी ही दूर तक आये हुए उन वानरों की यह बात सुन कर मनोहर हास वाली कल्याणी तारा ने उन्हें अपने अनुरूप उत्तर दिया- ।।
१८.
“वानरो! जब मेरे महाभाग पतिदेव कपिसिंह वाली ही नष्ट हो रहे हैं, तब मुझे पुत्र से, राज्य से तथा अपने इस जीवन से भी क्या प्रयोजन है?” ।।
१९.
“मैं तो, जिन्हें श्रीराम के चलाये हुए बाण ने मार गिराया है, उन महात्मा वाली के चरणों के समीप ही जाऊँगी।” ।।
२०.
ऐसा कह कर शोक से व्याकुल हुइ तारा रोती और अपने दोनों हाथों से दुखपूर्वक सिर एवम् छाती पीटती हुइ बड़े जोर से दौड़ी। ।।
श्लोक २१ से २८ ।।
२१.
आगे बढ़ती हुई तारा ने देखा, जो युद्ध में कभी पीठ न दिखानेवाले दानव राजों का भी वध करने में समर्थ थे, वे मेरे पति वानरराज वाली पृथ्वीपर पड़े हुए हैं। ।।
२२ से २३.
“वज्र चलानेवाले इन्द्र के समान जो रणभूमि में बड़े-बड़े पर्वतों को उठा कर फेंकते थे, जिनके वेग में प्रचण्ड आँधी का समावेश था, जिनका सिंहनाद महान् मेघों की गम्भीर गर्जना को भी तिरस्कृत कर देता था तथा जो इन्द्र के तुल्य पराक्रमी थे, वे ही इस समय वर्षा करके शान्त हुए बादल के समान चेष्टा से विरत हो गये हैं। जो स्वयं गर्जना करके गर्जनेवाले वीरों के मन में भय उत्पन्न कर देते थे, वे शूरवीर वाली एक दूसरे शूरवीर के द्वारा मार गिराये गये हैं। जैसे मांस के लिये एक सिंह ने दूसरे सिंह को मार डाला हो, उसी प्रकार राज्य के लिये अपने भाइ के द्वारा ही इन का वध किया गया है।” ।।
२४.
“जो सब लोगों के द्वारा पूजित हो, जहाँ पताका फहरायी गयी हो तथा जिसके पास देवता की वेदी शोभा पाती हो, उस चैत्य वृक्ष या देवालय को वहाँ छिपे हुए किसी नाग को पकड़ने के लिये यदि गरुड़ ने मथ डाला हो-नष्ट-भ्रष्ट कर दिया हो तो उस की जैसी दुर अवस्था देखी जाती है, वैसी ही दशा आज वाली की हो रही है।” - (यह सब तारा ने देखा) ।।
२५.
आगे जाने पर उसने देखा, अपने तेजस्वी धनुष को धरती पर टेक कर उसके सहारे श्रीरामचन्द्रजी खड़े हैं। साथ ही उनके छोटे भाई लक्ष्मण हैं और वहीं पति के छोटे भाई सुग्रीव भी उपस्थित हैं। ।।
२६.
उन सब को पार करके वह रणभूमि में घायल पड़े हुए अपने पति के पास पहुँची। उन्हें देख कर उसके मन में बड़ी व्यथा हुई और वह अत्यन्त व्याकुल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। ।।
२७.
फिर मानो वह सो कर उठी हो, इस प्रकार “हा आर्यपुत्र!” कहकर मृत्युपाश से बँधे हुए पति की ओर देखती हुई रोने लगी। ।।
२८.
उस समय कुररी के समान करुण क्रन्दन करती हुई तारा तथा उस के साथ आये हुए अङ्गद को देखकर सुग्रीव को बड़ा कष्ट हुआ। वे विषाद में डूब गये। ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के किष्किन्धाकाण्ड में उन्नीसवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।
Sarg 19 - Kishkindha Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
