06. Valmiki Ramayana - Yudhh Kaand - Sarg 06
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – युद्ध काण्ड ।।
छठा सर्ग – १८ श्लोक ।।
सारांश ।।
रावण का कर्तव्य-निर्णय के लिये अपने मन्त्रियों से समुचित परामर्श देने का अनुरोध करना ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
इधर इन्द्रतुल्य पराक्रमी महात्मा हनुमान्जी ने लङ्का में जो अत्यन्त भयावह घोर कर्म किया था, उसे देख कर राक्षसराज रावण का मुख लज्जा से कुछ नीचे को झुक गया और उस ने समस्त राक्षसों से इस प्रकार कहा- ।।
२.
“निशाचरो! वह हनुमान्, जो एक वानरमात्र है, अकेला इस दुर्धर्ष पुरी में घुस आया था। उस ने इसे तहस-नहस कर डाला और जनककुमारी सीता से भेंट भी कर लिया” ।।
३.
“इतना ही नहीं, हनुमान ने चैत्यप्रासाद को धराशायी कर दिया, मुख्य-मुख्य राक्षसों को मार गिराया और सारी लंकापुरी में खलबली मचा दी” ।।
४.
“तुमलोगों का भला हो। अब मैं क्या करूँ? तुम्हें जो कार्य उचित और समर्थ जान पड़े तथा जिसे करने पर कोई अच्छा परिणाम निकले, उसे बताओ” ।।
५.
“महाबली वीरो! मनस्वी पुरुषों का कहना है कि विजय का मूल कारण मन्त्रियों की दी हुई अच्छा परामर्श ही है। इस लिये मैं श्रीराम के विषय में आपलोगों से सलाह लेना अच्छा समझता हूँ” ।।
६.
“संसार में उत्तम, मध्यम और अधम - तीन प्रकार के पुरुष होते हैं। मैं उन सब के गुण-दोषों का वर्णन करता हूँ” ।।
७ से ८.
“जिस का मन्त्र आगे बताये जाने वाले तीन लक्षणों से युक्त होता है तथा जो पुरुष मन्त्रनिर्णय में समर्थ मित्रों, समान दुख-सुख वाले बान्धुवों और उन से भी बढ़ कर अपने हित कारियों के साथ परामर्श कर के कार्य का आरम्भ करता है तथा दैव के सहारे प्रयत्न करता है, उसे उत्तम पुरुष कहते हैं” ।।
९.
“जो अकेला ही अपने कर्तव्य का विचार करता है, अकेला ही धर्म मे मन लगाता है और अकेला ही सब काम करता है, उसे मध्यम श्रेणी का पुरुष कहा जाता है” ।।
१०.
“जो गुण-दोष का विचार न कर के दैव का भी आश्रय छोड़ कर केवल “करूँगा” इसी बुद्धि से कार्य आरम्भ करता है और फिर उस की उपेक्षा कर देता है, वह पुरुषों में अधम है” ।।
श्लोक ११ से १८ ।।
११.
“जैसे ये पुरुष सदा उत्तम, मध्यम और अधम - तीन प्रकार के होते हैं, वैसे ही मन्त्र (निश्चित किया हुआ विचार) भी उत्तम, मध्यम और अधम-भेद से तीन प्रकार का समझना चाहिये” ।।
१२.
“जिस में शास्त्रोक्त दृष्टि से सब मन्त्री एकमत हो कर प्रवृत्त होते हैं, उसे उत्तम मन्त्र कहते हैं” ।।
१३.
“जहाँ प्रारम्भ में कई प्रकार का मतभेद होने पर भी अन्त में सब मन्त्रियों का कर्तव्यविषयक निर्णय एक हो जाता है, वह मन्त्र मध्यम माना गया है” ।।
१४.
“जहाँ भिन्न-भिन्न बुद्धि का आश्रय ले सब ओर से स्पर्धा पूर्वक भाषण किया जाय और एकमत होने पर भी जिस से कल्याण की सम्भावना न हो, वह मन्त्र या निश्चय अधम कहलाता है” ।।
१५.
“आप सब लोग परम बुद्धिमान् हैं; इस लिये अच्छी तरह परामर्श कर के कोइ एक कार्य निश्चित करें। उसीको मैं अपना कर्तव्य समझूँगा” ।।
१६.
“(ऐसे निश्चय की आवश्यकता इस लिये पड़ी है कि) राम सहस्रों धीरवीर वानरों के साथ हमारी लंकापुरी पर चढ़ाई करने के लिये आ रहे हैं” ।।
१७.
“यह बात भी भलीभाँति स्पष्ट हो चुकी है कि वे रघुवंशी राम अपने समुचित बल के द्वारा भाइ, सेना और सेवकों सहित सुख पूर्वक समुद्र को पार कर लेंगे” ।।
१८.
“वे या तो समुद्र को ही सुखा डालेंगे या अपने पराक्रम से कोइ दूसरा ही उपाय करेंगे। ऐसी स्थिति में वानरों से विरोध आ पड़ने पर नगर और सेना के लिये जो भी हित कर हो, वैसी सलाह आपलोग दीजिये” ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के युद्धकाण्ड में छठा सर्ग पूरा हुआ ।।
Sarg 06 - Yuddh Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
