06. Valmiki Ramayana - Sundar Kaand - Sarg 06

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – सुन्दरकाण्ड ।।

छठा सर्ग - ४४ श्लोक ।।

सारांश ।।

हनुमान्जी का रावण तथा अन्यान्य राक्षसों के घरों में सीताजी की खोज करना ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
फिर इच्छानुसार रूप धारण करने वाले कपिवर हनुमान्जी बड़ी शीघ्रता के साथ लंका के सतमहले मकानों में यथा इच्छा विचरने लगे ।।

२.
अत्यन्त बल-वैभव से सम्पन्न वे पवनकुमार राक्षसराज रावण के महल में पहुँचे, जो चारों ओर से सूर्य के समान चमचमाते हुए सुवर्णमय परकोटों से घिरा हुआ था ।।

३.
जैसे सिंह विशाल वन की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार बहुतेरे भयानक राक्षस रावण के उस महल की रक्षा कर रहे थे। उस भवन का निरीक्षण करते हुए कपिकुञ्जर हनुमान्जी मन-ही-मन हर्ष का अनुभव करने लगे ।।

४.
वह महल चाँन्दी से मढ़े हुए चित्रों, सोने से जड़े हुए दरवाजों और बड़ी अद्भुत ड्योढ़यों तथा सुन्दर द्वारों से युक्त था ।।

५.
हाथी पर चढ़े हुए महावत तथा श्रमहीन शूरवीर वहां उपस्थित थे। जिन के वेग को कोई रोक नहीं सकता था, ऐसे रथ वाहक अश्व भी वहां शोभा पा रहे थे ।।

६.
सिंहों और बाघों के चमड़ों के बने हुए कवचों से वे रथ ढके हुए थे, उन में हाथी-दाँत, सुवर्ण तथा चाँन्दी की प्रतिमाएँ रखी हुई थीं । उन रथों में लगी हुई छोटी-छोटी घंटिकाओं की मधुर ध्वनि वहां होती रहती थी. ऐसे विचित्र रथ उस रावण के भवन में निरन्तर आ-जा रहे थे ।।

७.
रावण का वह भवन अनेक प्रकार के रत्नों से व्याप्त था, बहुमूल्य आसन उस की शोभा बढ़ाते थे। उस में सब ओर बड़े-बड़े रथों के ठहरने के स्थान बने थे और महारथी वीरों के लिये विशाल निवास स्थान बनाये गये थे ।।

८.
दर्शनीय एवम् परम सुन्दर नाना प्रकार के सहस्रों पशु और पक्षी वहां सब ओर भरे हुए थे ।।

९.
सीमा की रक्षा करने वाले विनयशील राक्षस उस भवन की रक्षा करते थे। वह सब ओर से मुख्य-मुख्य सुन्दरियों से भरा रहता था ।।

१०.
वहां की रत्नस्वरूपा युवती रमणियाँ सदा प्रसन्न रहा करती थीं। सुन्दर आभूषणों की झनकारों से झंकृत राक्षस राज का वह महल समुद्र के कल-कल नाद की भांति मुखरित रहता था ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
वह भवन राजोचित सामग्री से पूर्ण था, श्रेष्ठ एवं सुन्दर चन्दनों से चर्चित था तथा सिंहों से भरे हुए विशाल वन की भांति प्रधान प्रधान पुरुषों से परिपूर्ण था ।।

१२.
वहां भेरी और मृदङ्ग की ध्वनि सब ओर फैली हुई थी । वहां शङ्ख की ध्वनि गूंज रही थी। उस की नित्य पूजा एवं सजावट होती थी । पर्वों के दिन वहां यज्ञ किये जाते थे । राक्षस लोग सदा ही उस राज भवन की पूजा करते थे ।।

१३.
वह समुद्र के समान गम्भीर और उसी के समान कोलाहल पूर्ण था। महा मना रावण का वह विशाल भवन महान् रत्नमय अलंकारों से अलंकृत था ।।

१४.
उस में हाथी घोड़े और रथ भरे हुए थे तथा वह महान् रत्नो से व्याप्त होने के कारण अपने स्वरूप से प्रकाशित हो रहा था। महा कपि हनुमान्जी ने उसे देखा ।।

१५.
उसे देख कर कपिवर हनुमान्जी ने उस भवन को लंका का आभूषण ही माना । तदनन्तर वे उस रावण के भवन के आस-पास ही विचरने लगे ।।

१६.
इस प्रकार वे एक घर से दूसरे घर में जा कर राक्षसों के बगीचों के सभी स्थानों को देखते हुए बिना किसी से बोले, अट्टालिकाओं पर विचरण करने लगे ।।

१७.
महान् वेग शाली और पराक्रमी वीर हनुमान् वहां से कूद कर प्रहस्त के घर में उतर गये। फिर वहां से उछले और महा पार्श्व के महल में पहुँच गये ।।

१८.
तदनन्तर, वे महा कपि हनुमान्, मेघ के समान प्रतीत होने वाले कुम्भकर्ण के भवन में, और वहां से विभीषण के महल में कूद गये ।।

१९.
इसी तरह क्रमशः ये महोदय, विरूपाक्ष, विद्युज्जिह्व, और विद्युन्मालि के घर में गये ।।

२०.
इस के बाद, महान् वेग शाली महा कपि हनुमान्ने फिर छलांग लगाई और वे वज्रदंष्ट्र, शुक तथा बुद्धिमान् सारण के घरों में जा पहुँचे ।।

श्लोक २१ से ३० ।।

२१.
इस के उपरांत, वे वानर यूथ पति कपिश्रेष्ठ, इन्द्रजीत के घर में घुस गये, और वहां से जम्बुमालि, तथा सुमालि के घर में पहुँच गये ।।

२२.
तदनन्तर, वे महा कपि उछल्ते-कूदते, रश्मिकेतु, सूर्यशत्रु और वज्रकाय के महलों में जा पहुँचे ।।

२३ से २७.
फिर, क्रमशः, वे कपिवर पवनकुमार, धूम्राक्ष, सम्पाति, विद्युद्रूप, भीम, घन, विघन, शुकनाभ, चक्र, शठ, कपट, ह्रस्वकर्ण, द्रंष्ट्र, लोमश, युद्धोन्मत्त, मत्त, ध्वजग्रीव, विद्युज्जिह्न, द्विजिह्व, हस्तिमुख, कराल, पिशाच, और शोणिताक्ष आदि के महलों में गये। इस प्रकार क्रमशः कूदते - फांद्ते हुए महा यशस्वी पवनपुत्र हनुमान् उन-उन बहुमूल्य भवनों में पधारे। वहां उन महा कपि ने उन समृद्धि शाली राक्षसों की समृद्धि देखी ।।

२८.
तत्पश्चात्, बल-वैभव से सम्पन्न हनुमान् उन सब भवनों को लांघ कर पुनः राक्षस राज रावण के महल पर आ गये ।।

२९.
वहां विचरते हुए उन वानर शिरोमणि कपि श्रेष्ठ ने रावण के पलंग की रक्षा करने वाली राक्षसियों को देखा, जिनकी आँखें बड़ी विकराल थीं ।।

३०.
साथ ही, उन्हों ने उस राक्षस राज के भवन में राक्षसियों के बहुत से समुदाय देखे, जिन के हाथों में शूल, मुद्गर, शक्ति और तोमर आदि अस्त्र-शस्त्र विद्यमान थे ।।

श्लोक ३१ से ४० ।।

३१.
उन के सिवा, वहां बहुत से विशाल काय राक्षस भी दिखायी दिये, जो नाना प्रकार के हथियारों से सुशोभित थे। इतना ही नहीं, वहां लाल और सफेद रंग के बहुत से अत्यन्त वेग शाली घोड़े भी बंधे हुए थे ।।

३२ से ३३.
साथ ही अच्छी जाति के रूप वान् हाथी भी थे, जो शत्रु सेना के हाथियों को मार भगाने में सक्षम थे। वे सब-के-सब गज शिक्षा में सुशिक्षित, युद्ध में ऐरावत के समान पराक्रमी तथा शत्रु सेनाओं का संहार करने में समर्थ थे। वे बरस्ते हुए मेघों और झरने बहाते हुए पर्वतों के समान मद की धारा बहा रहे थे। उन की गर्जना, मेघों की गर्जना के समान जान पड़ती थी । वे समराङ्गण में शत्रुओं के लिये दुर्जय थे। हनुमानजी ने रावण के भवन में उन सब को देखा ।।

३४ से ३५.
राक्षस राज रावण के उस महल में उन्हों ने सहस्रों ऐसी सेनाएँ देखीं, जो जाम्बूनदके आभूषणों से विभूषित थीं। उन के सारे अंग सोने के आभुषणों से ढके हुए थे तथा वे प्रातःकाल के सूर्य की भांति उद्दीप्त हो रही थीं ।।

३६ से ३७.
पवन पुत्र हनुमान्जी ने राक्षस राज रावण के उस भवन में अनेक प्रकार की पालकियां, विचित्र लता-गृह, चित्र शालाएँ, क्रीडा भवन, काष्ठमय क्रीडा पर्वत, रमणीय विलास गृह और दिन में उपयोग में लाए जाने वाले विलास भवन भी देखे ।।

३८ से ३९.
उन्हों ने वह महल मन्दराचल के समान ऊँचा, क्रीडा करते मयूरों के रहने के स्थानों से युक्त, ध्वजाओं से व्याप्त, अनन्त रन्तों का भण्डार और सब ओर से निधियों से भरा हुआ देखा। उस में धीर पुरुषों ने निधि की रक्षा के उपयुक्त कर्माङ्गों का अनुष्ठान किया था, तथा वह साक्षात् भूतनाथ के भवन के समान जान पड़ता था ।।

४०.
रत्नो की किरणों तथा रावण के तेज के कारण वह घर किरणों से युक्त सूर्य के समान जगमगा रहा था ।।

श्लोक ४१ से ४४ ।।

४१.
वानरयूथ पति हनुमान्ने वहां के पलंग, चौकी और पात्र सभी अत्यन्त उज्ज्वल तथा जाम्बूनद सुवर्ण के बने हुए ही देखे ।।

४२ से ४३.
उस में मधु और आसव के गिरने से वहां की भूमि गीली हो रही थी । मणिमय पात्रों से भरा हुआ वह सुविस्तृत महल कुबेर के भवन के समान मनोरम जान पड़ता था । नूपुरों की झनकार, करध्वनियों की खनखनाहट, मृदङ्गों और तालियों की मधुर ध्वनि तथा अन्य गम्भीर घोष करने वाले वाद्यों से वह भवन मुखरित हो रहा था ।।

४४.
उसमें सैकड़ों अट्टालिकाएँ थीं, सैकड़ों रमणी - रत्नो से वह व्याप्त था । उसकी ड्योढ़ियाँ बहुत बड़ी-बड़ी थीं। ऐसे विशाल भवन में हनुमान्जी ने प्रवेश किया ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के सुन्दरकाण्ड में छठा सर्ग पूरा हुआ ।।

Sarg 06 - Sundar Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.