07. Valmiki Ramayana - Sundar Kaand - Sarg 07

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – सुन्दरकाण्ड ।।

सातवाँ सर्ग- १७ श्लोक ।।

सारांश ।।

रावण के भवन एवम् पुष्पक विमान का वर्णन ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
बलवान् वीर हनुमान्जी ने, नीलम से जड़ी हुई सोने की खिड़कियों से सुशोभित तथा पक्षि समूहों से युक्त भवनों का समूह देखा, जो वर्षा काल में बिजली से युक्त महती मेघमाला के समान मनोहर जान पड़ता था ।।

२.
उसमें नाना प्रकार की बैठकें, शङ्ख, आयुध और धनुषों की मुख्य-मुख्य शालाएँ तथा पर्वतों के समान ऊँचे महलों के ऊपर मनोहर एवम् विशाल चन्द्र शालाएँ, अर्थात अट्टालिकाएँ, देखीं ।।

३.
कपिवर हनुमानजी ने वाहां नाना प्रकार के रत्नो से सुशोभित ऐसे ऐसे घर देखे, जिनकी देवता और असुर भी प्रशंसा करते हैं। वे गृह सम्पूर्ण दोषों से रहित थे तथा रावण ने उन्हें अपने पुरुषार्थ से प्राप्त किया था ।।

४.
यह गृह बड़े प्रयत्नो से बनाये गये थे और ऐसे अद्भुत लगते थे, मानो साक्षात् मय दानव ने ही उनका निर्माण किया हो। हनुमान्जी ने उन्हें देखा, लंकापति रावण के वे घर इस भूतल पर सभी गुणों में सब से बढ़ चढ़ कर थे ।।

५.
फिर उन्होंने राक्षसराज रावण का उसकी शक्ति के अनुरूप अत्यन्त उत्तम और अनुपम भवन, अर्थात पुष्पक विमान, देखा, जो मेघ के समान ऊँचा, सुवर्ण के समान सुन्दर कान्तिवाला, तथा मनोहर था ।।

६.
वह इस भूतल पर बिखरे हुए स्वर्ण के समान जान पड़ता था। अपनी कान्ति से प्रज्वलित-सा हो रहा था। अनेकानेक रत्नो से व्याप्त, भांति भांति के वृक्षों के फूलों से आच्छादित तथा पुष्पों के पराग से भरे हुए पर्वतशिखर के समान शोभा पाता था ।।

७.
वह विमानरूप भवन विद्यु न्मालाओं से पूजित मेघ के समान रमणीय रतनो से देदीप्यमान हो रहा था, और श्रेष्ठ हंसों द्वारा आकाश में ढोये जाते हुए विमान की भांति जान पड़ता था। उस दिव्य विमान को बहुत सुन्दर ढंग से बनाया गया था। वह अद्भुत शोभा से सम्पन्न दिखायी देता था ।।

८.
जैसे अनेक धातुओं के कारण पर्वतशिखर, ग्रहों और चन्द्रमा के कारण आकाश, तथा अनेक वर्णों से युक्त होने के कारण मनोहर मेघ विचित्र शोभा धारण करते हैं, उसी तरह नाना प्रकार के रत्नो से निर्मित होनेके कारण वह विमान भी विचित्र शोभा से सम्पन्न दिखायी देता था ।।

९.
उस विमान की आधार भूमि, अर्थात, आरोहियों के खड़े होने का स्थान, सोने और मणियों के द्वारा निर्मित कृत्रिम पर्वतमालाओं से पूर्ण बनायी गयी थी। वे पर्वत वृक्षों की विस्तृत पंक्तियों से हरे भरे रचे गये थे। वे वृक्ष फूलों के बाहुल्य से व्याप्त बनाये गये थे तथा वे पुष्प भी केसर एवम् पंखुड़ियों से पूर्ण निर्मित हुए थे ।।

१०.
उस विमान में श्वेत भवन बने हुए थे। सुन्दर फूलों से सुशोभित पोखरे बनाये गये थे। केसर युक्त कमल, विचित्र वन, और अद्भुत सरोवरों का भी निर्माण किया गया था ।।

श्लोक ११ से १७ ।।

११.
महाकपि हनुमानजी ने जिस सुन्दर विमान को वहां देखा, उसका नाम पुष्पक था। वह रत्नो की प्रभा से प्रकाशमान था और इधर उधर भ्रमण करता था। देवताओं के गृहाकार उत्तम विमानों में सबसे अधिक आदर उस महा विमान पुष्पक का ही होता था ।।

१२.
उसमें नीलम, चांदी और मूंगों के आकाश चारी पक्षी बनाये गये थे। नाना प्रकार के रत्नो से विचित्र वर्ण के सर्पो का निर्माण किया गया था, और अच्छी जाति के घोड़ों के समान ही सुन्दर अंग वाले अश्व भी बनाये गये थे ।।

१३.
उस विमान पर सुन्दर मुख और मनोहर पंखवाले बहुत से ऐसे विहङ्गम जीव निर्मित हुए थे, जो साक्षात् कामदेव के सहायक जान पड़ते थे। उनकी पांखे मूंगे और सुवर्ण के बने हुए फूलों से युक्त थीं तथा उन्हों ने लीला पूर्वक अपने बांके पंखों को समेट रखा था ।।

१४.
उस विमान के कमलमण्डित सरोवर में ऐसे हाथी बनाये गये थे, जो लक्ष्मी के अभिषेक के कार्य में नियुक्त थे। उनकी सूंड़ बड़ी सुन्दर थी। उनके अंगों में कमलों के केसर लगे हुए थे तथा उन्होंने अपनी सूँड़ों में कमल पुष्प धारण किये हुए थे। उनके साथ ही वहां तेजस्विनी लक्ष्मी देवी की प्रतिमा भी विराजमान थी, जिनका उन हाथियों के द्वारा अभिषेक हो रहा था। उनके हाथ बड़े सुन्दर थे। उन्होंने अपने हाथों में कमल पुष्प धारण कर रखे थे ।।

१५.
इस प्रकार सुन्दर कन्दराओं वाले पर्वत के समान, तथा वसन्त ऋतु में सुन्दर कोटरों वाले परम सुगन्धि युक्त वृक्षों के समान, उस शोभायमान मनोहर विमान में पहुँच कर, हनुमान्जी बड़े विस्मित हुए ।।

१६.
तदनन्तर, दशमुख रावण के बाहुबल से पालित उस प्रशंसित पुरी में जाकर चारों ओर घूमने पर भी पति के गुणों के वेग से पराजित अत्यन्त दुखिनी और परम पूजनीया जनककिशोरी सीताजी को ना देख कर कपिवर हनुमान् बड़ी चिन्ता में पड़ गये ।।

१७.
महात्मा हनुमान्जी, अनेक प्रकार से परमार्थ चिन्तन में तत्पर रहने वाले कृतात्मा, अर्थात पवित्र अन्तःकरणवाले, सन्मार्ग गामी तथा उत्तम दृष्टि रखने वाले थे। इधर उधर बहुत घूमने पर भी जब उन महात्मा को जानकीजी का पता ना लगा, तब उनका मन बहुत दुखी हो गया ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के सुन्दरकाण्ड में सातवाँ सर्ग पूरा हुआ ।। ७ ।।

Sarg 07 - Sundar Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.