59. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 59

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

उनसठवाँ सर्ग – २२ श्लोक ।।

सारांश ।।

विश्वामित्रजी का त्रिशंकु को आश्वासन देकर उनका यज्ञ कराने के लिये ऋषि मुनियों को आमन्त्रित करना और उनकी बात न मानने वाले महोदय तथा ऋषिपुत्रों को शाप देकर नष्ट करना। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
[शतानन्दजी कहते हैं—] श्रीराम! साक्षात् चाण्डाल के स्वरूप को प्राप्त हुए राजा त्रिशंकु के पूर्वोक्त वचन को सुनकर कुशिकनन्दन विश्वामित्रजी ने दया से द्रवित होकर उनसे मधुर वाणी में कहा- ।।

२.
“वत्स! इक्ष्वाकुकुलनन्दन! तुम्हारा स्वागत है। मैं जानता हूँ, तुम बड़े धर्मात्मा हो। नृपप्रवर! डरो मत, मैं तुम्हें शरण दूँगा।” ।।

३.
“राजन्! तुम्हारे यज्ञ में सहायता करनेवाले समस्त पुण्यकर्मा महर्षियों को मैं आमन्त्रित करता हूँ। फिर तुम आनन्दपूर्वक यज्ञ करना।” ।।

४ से ५.
“गुरु के शाप से तुम्हें जो यह नवीन रूप प्राप्त हुआ है इसके साथ ही तुम देह के सहित स्वर्गलोक को जाओगे। नरेश्वर! तुम जो शरणागत वत्सल विश्वामित्र की शरण में आ गये, इस से मैं यह समझता हूँ कि स्वर्गलोक तुम्हारे हाथ में आ गया है।” ।।

६.
ऐसा कहकर महातेजस्वी विश्वामित्र ने अपने परम धर्मपरायण महाज्ञानी पुत्रों को यज्ञ की सामग्री जुटाने की आज्ञा दी। ।।

७.
तत्पश्चात् समस्त शिष्यों को बुला कर उनसे यह बात कही- “तुमलोग मेरी आज्ञा से अनेक विषयों के ज्ञाता समस्त ऋषियों-मुनियों को, जिनमें वसिष्ठ के पुत्र भी सम्मिलित हैं, उनके शिष्यों, सुहृदों तथा ऋत्विजों सहित बुला लाओ।” ।।

८.
“जिसे मेरा संदेश देकर बुलाया गया हो वह अथवा दूसरा कोई यदि इस यज्ञ के विषय में कोई अवहेलना पूर्ण बात कहे तो तुमलोग वह सब पूरा-पूरा मुझसे आकर कहना।” ।।

९ से १०.
उनकी आज्ञा मान कर सभी शिष्य चारों दिशाओं में चले गये। फिर तो सब देशों से ब्रह्मवादी मुनि आने लगे। विश्वामित्र के वे शिष्य उन प्रज्वलित तेजवाले महर्षि के पास सबसे पहले लौट आये और समस्त ब्रह्मवादियों ने जो बातें कही थीं, उन्हें सब ने विश्वामित्रजी से कह सुनाया। ।।

श्लोक ११ से २२ ।।

११.
वे बोले – “गुरुदेव ! आपका आदेश या संदेश सुनकर प्रायः सम्पूर्ण देशों में रहनेवाले सभी ब्राह्मण आ रहे हैं। केवल महोदय नामक ऋषि तथा वसिष्ठ – पुत्रों को छोड़कर सभी महर्षि यहाँ आने केलिये प्रस्थान कर चुके हैं।” ।।

१२.
“मुनिश्रेष्ठ! वसिष्ठ के जो सौ पुत्र हैं, उन सब ने क्रोध भरी वाणी में जो कुछ कहा है, वह सब आप सुनिये - ।।

१३ से १४.
“वे कहते हैं— “जो विशेषतः चण्डाल है और जिसका यज्ञ करानेवाला आचार्य क्षत्रिय है, उसके यज्ञ में देवर्षि अथवा महात्मा ब्राह्मण हविष्य का भोजन कैसे कर सकते हैं? अथवा चण्डाल का अन्न खाकर विश्वामित्र से पालित हुए ब्राह्मण स्वर्ग में कैसे जा सकेंगे?” ।।

१५.
“मुनिप्रवर! महोदय के साथ वसिष्ठ के सभी पुत्रों ने क्रोध से लाल आँखें करके ये उपर्युक्त निष्ठुरता पूर्ण बातें कही थीं।” ।।

१६.
उन सब की वह बात सुन कर मुनिवर विश्वामित्र के दोनों नेत्र क्रोध से लाल हो गये और वे रोष पूर्वक इस प्रकार बोले - ।।

१७.
“मैं उग्र तपस्या में लगा हूँ और दोष या दुर्भावना से रहित हूँ, तो भी जो मुझ पर दोषारोपण करते हैं, वे दुरात्मा भस्मीभूत हो जायँगे, इसमें संशय नहीं है।” ।।

१८ से १९.
“आज कालपाश से बँध कर वे यम लोक में पहुँचा दिये गये। अब ये सात सौ जन्मों तक मुर्दों की रखवाली करने वाली, निश्चित रूप से कुत्ते का मांस खाने वाली मुष्टिक नामक प्रसिद्ध निर्दय चण्डाल जाति में जन्म ग्रहण करें।” ।।

२० से २१.
“वे लोग विकृत एवम् विरूप होकर इन लोकों में विचरें। साथ ही दुर्बुद्धि महोदय भी, जिसने मुझ दोषहीन को भी दूषित किया है, मेरे क्रोध से दीर्घ काल तक सब लोगों में निन्दित, दूसरे प्राणियों की हिंसा में तत्पर और दयाशून्य निषादयोनि को प्राप्त कर के दुर्गति भोगेगा।” ।।

२२.
ऋषियों के बीच में ऐसा कह कर महातपस्वी महातेजस्वी एवम् महामुनि विश्वामित्र चुप हो गये। ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में उनसठवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।

Sarg 59- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.