34. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 34
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।
चौंतीसवाँ सर्ग – २३ श्लोक ।।
सारांश ।।
गाधि की उत्पत्ति, कौशिकी की प्रशंसा, विश्वामित्रजी का कथा बंद करके आधी रात का वर्णन करते हुए सबको सोने की आज्ञा देकर शयन करना। ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
रघुनन्दन! विवाह करके जब राजा ब्रह्मदत्त चले गये, तब पुत्रहीन महाराज कुशनाभ ने श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति के लिये पुत्रेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान किया। ।।
२.
उस यज्ञ के होते समय परम उदार ब्रह्मकुमार महाराज कुश ने भूपाल कुशनाभ से कहा – ॥।
३.
“बेटा! तुम्हें अपने समान ही परम धर्मात्मा पुत्र प्राप्त होगा। तुम ‘गाधि' नामक पुत्र प्राप्त करोगे और उसके द्वारा तुम्हें संसार में अक्षय कीर्ति उपलब्ध होगी।” ।।
४.
श्रीराम! पृथ्वी पति कुशनाभ से ऐसा कह कर राजर्षि कुश आकाश में प्रविष्ट हो सनातन ब्रह्मलोक को चले गये। ।।
५.
कुछ काल के पश्चात् बुद्धिमान् राजा कुशनाभ के यहाँ परम धर्मात्मा 'गाधि' नामक पुत्र का जन्म हुआ। ।।
६.
ककुत्स्थकुलभूषण रघुनन्दन! वे परम धर्मात्मा राजा गाधि मेरे पिता थे। मैं कुश के कुल में उत्पन्न होने के कारण ‘कौशिक' कहलाता हूँ॥ ।।
७.
राघव ! मेरे एक ज्येष्ठ बहन भी थी, जो उत्तम व्रतका पालन करने वाली थी। उसका नाम सत्यवती था। वह ऋचीक मुनि को ब्याही गयी थी। ।।
८.
अपने पति का अनुसरण करने वाली सत्यवती शरीर सहित स्वर्गलोक को चली गयी थी। वही परम उदार महा नदी कौशिकी के रूप में भी प्रकट होकर इस भूतल पर प्रवाहित होती है। ।।
९.
वह बहिन जगहित के लिये हिमालय का आश्रय लेकर नदी रूप में प्रवाहित हुई। वह पुण्यसलिला दिव्य नदी बड़ी रमणीय है। ।।
१०.
रघुनन्दन ! मेरा अपनी बहिन कौशिकी के प्रति बहुत स्नेह है; अतः, मैं हिमालय के निकट उसके तट पर नियम पूर्वक बड़े सुख से निवास करता हूँ। ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११.
पुण्यमयी सत्यवती सत्य धर्म में प्रतिष्ठित है। वह परम सौभाग्यशालिनी पतिव्रता देवी यहाँ सरिताओं में श्रेष्ठ कौशिकी के रूप में विद्यमान है। ।।
१२.
श्रीराम! मैं यज्ञ सम्बन्धी नियम की सिद्धि के लिये ही अपनी बहिन का सांनिध्य छोड़ कर सिद्धाश्रम (बक्सर) में आया था। अब तुम्हारे तेज से मुझे वह सिद्धि प्राप्त हो गयी है। ।।
१३.
महाबाहु श्रीराम! तुमने मुझसे जो पूछा था, उसके उत्तर में मैंने तुम्हें शोणभद्र तट वर्ती देश का परिचय देते हुए यह अपनी तथा अपने कुल की उत्पत्ति बतायी है। ।।
१४.
काकुत्स्थ! मेरे कथा कहते-कहते आधी रात बीत गयी। अब थोड़ी देर नींद ले लो। तुम्हारा कल्याण हो। मैं चाहता हूँ कि अधिक जागरण के कारण हमारी यात्रा में विघ्न न पड़े। ।।
१५.
सारे वृक्ष निष्कम्प जान पड़ते हैं- इनका एक भी पत्ता नहीं हिल रहा है। पशु-पक्षी अपने- अपने वास स्थान में छिप कर बसेरे लेते हैं। रघुनन्दन! रात्रि के अन्धकार से सम्पूर्ण दिशाएँ व्याप्त हो रही हैं। ।।
१६.
धीरे-धीरे संध्या दूर चली गयी। नक्षत्रों तथा ताराओं से भरा हुआ आकाश (सहस्राक्ष इन्द्र की भाँति) सहस्रों ज्योतिर्मय नेत्रों से व्याप्त-सा होकर प्रकाशित हो रहा है। ।।
१७.
सम्पूर्ण लोको का अन्धकार दूर करने वाले शीतरश्मि चन्द्रमा अपनी प्रभा से जगत के प्राणियों के मन को आह्लाद प्रदान करते हुए उदित हो रहे हैं। ।।
१८.
रात में विचरने वाले समस्त प्राणी – यक्षों और राक्षसों के समुदाय तथा भयंकर पिशाच इधर- उधर विचर रहे हैं। ।।
१९.
ऐसा कहकर महातेजस्वी महामुनि विश्वामित्र चुप हो गये। उस समय सभी मुनियों ने साधुवाद दे कर विश्वामित्रजी की भूरि-भूरि प्रशंसा की। - । ।।
२०.
“कुशपुत्रों का यह वंश सदा ही महान् धर्मपरायण रहा है। कुशवंशी महात्मा श्रेष्ठ मानव ब्रह्माजी के समान तेजस्वी हुए हैं ।” ।।
श्लोक २१ से २३ ।।
२१.
“महायशस्वी विश्वामित्रजी! अपने वंश में सब से बड़े महात्मा आप ही हैं तथा सरिताओं में श्रेष्ठ कौशिकी भी आप के कुल की कीर्ति को प्रकाशित करनेवाली है ।” ।।
२२.
इस प्रकार आनन्दमग्न हुए उन मुनिवरों द्वारा प्रशंसित श्रीमान् कौशिक मुनि अस्त हुए सूर्य की भाँति नींद लेने लगे। ।।
२३.
वह कथा सुनकर लक्ष्मण सहित श्रीराम को भी कुछ विस्मय हो आया। वे भी मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र की सराहना करके नींद लेने लगे। ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में चौंतीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ।।
Sarg 34- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
