23. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 23

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

तेइसवाँ सर्ग – २२ श्लोक ।।

सारांश ।।

विश्वामित्र सहित श्रीराम और लक्ष्मण का सरयू और गङ्गा के संगम के समीप पुण्य आश्रम में रात को ठहरना। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
जब रात बीती और प्रभात हुई, तब महामुनि विश्वामित्र ने तिनकों और पत्तों के बिछौने पर सोये हुए उन दोनों ककुत्स्थवंशी राजकुमारों से कहा - ।।

२.
“नरश्रेष्ठ राम! तुम्हारे जैसे पुत्र को पा कर महारानी कौसल्या सुपुत्र जननी कही जाती हैं। यह देखो, प्रातःकाल की संध्या का समय हो रहा है; उठो और प्रतिदिन किये जानेवाले देवसम्बन्धी कार्यों को पूर्ण करो।” ।।

३.
महर्षि का यह परम उदार वचन सुनकर उन दोनों नरश्रेष्ठ वीरों ने स्नान करके देवताओं का तर्पण किया और फिर वे परम उत्तम जपनीय मन्त्र गायत्री का जप करने लगे। ।।

४.
नित्यकर्म समाप्त करके महापराक्रमी श्रीराम और लक्ष्मण अत्यन्त प्रसन्न हो तपोधन विश्वामित्र को प्रणाम करके वहाँ से आगे जाने को उद्यत हो गये। ।।

५.
जाते जाते उन महाबली राजकुमारों ने गङ्गा और सरयू के शुभ संगम पर पहुँच कर वहाँ दिव्य त्रिपथगा नदी गंगाजी का दर्शन किया। ।।

६.
संगम के पास ही शुद्ध अन्तःकरण वाले महर्षियों का एक पवित्र आश्रम था, जहाँ वे कई हजार वर्षों से तीव्र तपस्या करते थे। ।।

७.
उस पवित्र आश्रम को देख कर रघुकुल रत्न श्रीराम और लक्ष्मण बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने महात्मा विश्वामित्र से यह बात कही - ।।

८.
“भगवन्! यह किसका पवित्र आश्रम है? और इसमें कौन पुरुष निवास करता है? यह हम दोनों सुनना चाहते हैं। इसके लिये हमारे मन में बड़ी उत्कण्ठा है ।” ।।

९.
उन दोनों का यह वचन सुनकर मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र हंसते हुए बोले- “राम ! यह आश्रम पहले जिसके अधिकार में रहा है, उसका परिचय देता हूँ, सुनो ।” ।।

१०.
“विद्वान् पुरुष जिसे काम कहते हैं, वह कन्दर्प पूर्व काल में मूर्तिमान् था – सुन्दर शरीर धारण करके विचरता था। उन दिनों भगवान् स्थाणु (शिव) इसी आश्रम में चित्त को एकाग्र करके नियमपूर्वक तपस्या करते थे।” ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
“एक दिन समाधि से उठकर देवेश्वर शिव मरुद्गणों के साथ कहीं जा रहे थे। उसी समय दुर्बुद्धि काम ने उनपर आक्रमण किया। यह देख महात्मा शिव ने हुङ्कार करके उसे रोका।” ।।

१२.
“रघुनन्दन! भगवान् रुद्र ने रोष भरी दृष्टि से अवहेलना पूर्वक उसकी ओर देखा; फिर तो उस दुर्बुद्धि के सारे अंग उसके शरीर से जीर्ण-शीर्ण होकर गिर गये।” ।।

१३.
“वहाँ दग्ध हुए महामना कन्दर्प का शरीर नष्ट हो गया। देवेश्वर रुद्र ने अपने क्रोध से काम को अंग हीन कर दिया।” ।।

१४.
“राम! तभी से वह ‘अनंग' नाम से विख्यात हुआ। शोभाशाली कन्दर्प ने जहाँ अपना अंग छोड़ा था, वह प्रदेश अंगदेश के नाम से विख्यात हुआ।” ।।

१५.
“यह उन्हीं महादेव जी का पुण्य आश्रम है। वीर! ये मुनि लोग पूर्वकाल में उन्हीं स्थाणु के धर्मपरायण शिष्य थे। इनका सारा पाप नष्ट हो गया है।” ।।

१६.
“शुभ दर्शन राम! आज की रात में हमलोग यहीं इन पुण्यसलिला सरिताओं के बीच में निवास करें। कल सबेरे इन्हें पार करेंगे।” ।।

१७.
“हम सब लोग पवित्र हो कर इस पुण्य आश्रम में चलें गे। यहाँ रहना हमारे लिये बहुत उत्तम होगा। नर श्रेष्ठ! यहाँ स्नान करके जप और हवन करने के बाद हम रात में बड़े सुख से रहेंगे।” ।।

१८.
वे लोग वहाँ इस प्रकार आपस में बातचीत कर ही रहे थे कि उस आश्रम में निवास करने वाले मुनि तपस्या द्वारा प्राप्त हुई दूरदृष्टि से उनका आगमन जान कर मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। उनके हृदय में हर्षजनित उल्लास छा गया। ।।

१९.
उन्होंने विश्वामित्रजी को अर्घ्य, पाद्य और अतिथि सत्कार की सामग्री अर्पित करने के बाद श्रीराम और लक्ष्मण का भी आतिथ्य किया। ।।

२०.
यथोचित सत्कार करके उन मुनियों ने इन अतिथियों का भाँति-भाँति की कथाओं और वार्ताओं द्वारा मनोरञ्जन किया। फिर उन महर्षियों ने एकाग्र चित्त होकर यथावत् संध्या वन्दन एवम् जप किया। ।।

श्लोक २१ से २२ ।।

२१.
तदनन्तर वहाँ रहने वाले मुनियों ने अन्य उत्तम व्रतधारी मुनियों के साथ विश्वामित्र आदि को शयन के लिये उपयुक्त स्थान में पहुँचा दिया। सम्पूर्ण कामनाओं की पूर्ति करने वाले उस पुण्य आश्रम में उन विश्वामित्र आदि ने बड़े सुख से निवास किया। ।।

२२.
धर्मात्मा मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र ने उन मनोहर राजकुमारों का सुन्दर कथाओं द्वारा मनोरञ्जन किया। ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में तेइसवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।

Sarg 23- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.