20. Valmiki Ramayana - Aranya Kaand - Sarg 20
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – अरण्यकाण्ड ।।
बीसवाँ सर्ग – २५ श्लोक ।।
सारांश ।।
श्रीराम द्वारा खर के भेजे हुए चौदह राक्षसों का वध ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
तदनन्तर भयानक राक्षसी शूर्पणखा श्रीरामचन्द्रजी के आश्रम पर आयी। उस ने सीता सहित उन दोनों भाइयों का उन राक्षसों को परिचय दिया ।।
२.
राक्षसों ने देखा – महाबली श्रीराम सीता के साथ पर्णशाला में बैठे हैं और लक्ष्मण भी उन की सेवा में उपस्थित हैं ।।
३.
इधर श्रीमान् रघुनाथजी ने भी शूर्पणखा तथा उस के साथ आये हुए उन राक्षसों को भी देखा। देख कर वे उद्दीप्त तेज वाले अपने भाई लक्ष्मण से इस प्रकार बोले – ।।
४.
“सुमित्राकुमार! तुम थोड़ी देर तक सीता के पास खड़े हो जाओ। मैं इस राक्षसी के सहायक बन कर पीछे - पीछे आये हुए इन निशाचरों का यहाँ अभी वध कर डालूँगा” ।।
५.
अपने स्वरूप को समझने वाले श्रीरामचन्द्रजी की यह बात सुन कर लक्ष्मण ने इस की भूरि - भूरि सराहना करते हुए “तथास्तु” कह कर उन की आज्ञा शिरोधार्य की ।।
६.
तब धर्मात्मा रघुनाथजी ने अपने सुवर्णमण्डित विशाल धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ायी और उन राक्षसों से कहा– ।।
७ से ८.
“हम दोनों भाई राजा दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण हैं तथा सीता के साथ इस दुर्गम दण्डकारण्य में आ कर फल- मूल का आहार करते हुए इन्द्रिय संयम पूर्वक तपस्या में संलग्न हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। इस प्रकार दण्डक वन में निवास करने वाले हम दोनों भाइयों की तुम किस लिये हिंसा करना चाहते हो?” ।।
९.
“देखो, तुम सब - के - सब पापात्मा तथा ऋषियों का अपराध करने वाले हो। उन ऋषियों- मुनियों की आज्ञा से ही मैं धनुष - बाण ले कर महा समर में तुम्हारा वध करने के लिये यहाँ आया हूँ” ।।
१०.
“निशाचरो! यदि तुम्हें युद्ध से संतोष प्राप्त होता हो तो यहाँ खड़े ही रहो, भाग मत जाना और यदि तुम्हें प्राणों का लोभ हो तो लौट जाओ ( एक क्षण के लिये भी यहाँ न रुको )” ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११ से १२.
श्रीराम की यह बात सुन कर वे चौदहों राक्षस अत्यन्त कुपित हो उठे। ब्राह्मणों की हत्या करने वाले वे घोर निशाचर हाथों में शूल लिये क्रोध से लाल आँखें करके कठोर वाणी में हर्ष और उत्साह के साथ, स्वभावतः लाल नेत्रों वाले मधुरभाषी श्रीराम से, जिन का पराक्रम वे देख चुके थे, यों बोले – ।।
१३.
“अरे! तूने हमारे स्वामी महाकाय खर को क्रोध दिलाया है; अतः हमलोगों के हाथ से युद्ध में मारा जाकर तू स्वयम् ही तत्काल अपने प्राणों से हाथ धो बैठेगा” ।।
१४.
“हम बहुत - से हैं और तू अकेला, तेरी क्या शक्ति है कि तू हमारे सामने रणभूमि में खड़ा भी रह सके, फिर युद्ध करना तो दूर की बात है” ।।
१५.
“हमारी भुजाओं द्वारा छोड़े गये इन परिघों, शूलों और पट्टिशों की मार खाकर तू अपने हाथ में दबाये हुए इस धनुष को, बल – पराक्रम के अभिमान को तथा अपने प्राणों को भी एक साथ ही त्याग देगा” ।।
१६.
ऐसा कहकर क्रोध में भरे हुए वे चौदहों राक्षस तरह – तरह के आयुध और तलवारें लिये श्रीराम पर ही टूट पड़े ।।
१७.
उन राक्षसों ने दुर्जय वीर श्रीराघवेन्द्र पर वे शूल चलाये, परंतु ककुत्स्थकुलभूषण श्रीरामचन्द्रजी ने उन समस्त चौदहों शूलों को उतने ही सुवर्णभूषित बाणों द्वारा काट डाला ।।
१८ से १९.
तत्पश्चात्, महातेजस्वी रघुनाथजी ने अत्यन्त कुपित हो शान पर चढ़ा कर तेज किये गये सूर्यतुल्य तेजस्वी चौदह नाराच हाथ में लिये। फिर धनुष लेकर उस पर उन बाणों को रखा और कान तक खींच कर राक्षसों को लक्ष्य करके छोड़ दिया। मानो इन्द्र ने वज्रों का प्रहार किया हो ।।
२०.
वे बाण बड़े वेग से उन राक्षसों की छाती छेद कर रुधिर में डूबे हुए निकले और बाँबी से बाहर आये हुए सर्पों की भाँति तत्काल पृथ्वी पर गिर पड़े ।।
श्लोक २१ से २५ ।।
२१.
उन नाराचों से हृदय विदीर्ण हो जाने के कारण वे राक्षस जड़ से कटे हुए वृक्षों की भाँति धराशायी हो गये। वे सब - के - सब खून से नहा गये थे। उनके शरीर विकृत हो गये थे। उस अवस्था में उन के प्राण पखेरू उड़ गये ।।
२२ से २३.
उन सब को पृथ्वी पर पड़ा देख वह राक्षसी क्रोध से मूर्च्छित हो गयी और खर के पास जा कर पुनः आर्त भाव से गिर पड़ी। उसके कटे हुए कानों और नाक का खून सूख गया था, इस लिये गोंदयुक्तता के समान प्रतीत होती थी ।।
२४.
भाइ के निकट शोक से पीड़ित हुइ शूर्पणखा बड़े जोर से आर्तनाद करने और फूट- फूट कर रोने तथा आँसू बहाने लगी। उस समय उस के मुख की कान्ति फीकी पड़ गयी थी ।।
२५.
रणभूमि में उन राक्षसों को मारा गया देख खर की बहिन शूर्पणखा पुनः वहाँ से भागी हुई आयी। उसने उन समस्त राक्षसों के वध का सारा समाचार भाइ से कह सुनाया ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अरण्यकाण्ड में बीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ।।
Sarg 20- Aranya Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
