19. Valmiki Ramayana - Aranya Kaand - Sarg 19
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – अरण्यकाण्ड ।।
उन्नीसवाँ सर्ग – २६ श्लोक ।।
सारांश ।।
शूर्पणखा के मुख से उस की दुर्दशा का वृत्तान्त सुन कर क्रोध में भरे हुए खर का श्रीराम आदि के वध के लिये चौदह राक्षसों को भेजना ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
अपनी बहिन को इस प्रकार अङ्ग हीन और रक्त से भीगी हुई अवस्था में पृथ्वी पर पड़ी देख राक्षस खर क्रोध से जल उठा और इस प्रकार पूछने लगा- ।।
२.
“बहिन उठो और अपना हाल बताओ। मूर्च्छा और घबराहट छोड़ो तथा साफ-साफ कहो, किस ने तुम्हें इस तरह रूप हीन बनाया है?” ।।
३.
“कौन अपने सामने आ कर चुपचाप बैठे हुए निरपराध एवम् विषैले काले साँप को अपनी अँगुलियों के अग्र भाग से खेल-खेल में पीड़ा दे रहा है?” ।।
४.
“जिसने आज तुम पर आक्रमण कर के तुम्हारे नाक और कान काटे हैं, उसने उच्च कोटि का विष पी लिया है तथा अपने गले में काल का फंदा डाल लिया है, फिर भी मोह वश वह इस बात को समझ नहीं रहा है” ।।
५.
“तुम तो स्वयम् ही दूसरे प्राणियों के लिये यमराज के समान हो, बल और पराक्रम से सम्पन्न हो तथा इच्छानुसार सर्वत्र विचरने और अपनी रुचि के अनुसार रूप धारण करने में समर्थ हो, फिर भी तुम्हें किस ने इस दुर अवस्था में डाला है; जिस से दुखी हो कर तुम यहाँ आयी हो?” ।।
६.
“देवताओं, गन्धर्वों, भूतों तथा महात्मा ऋषियों में यह कौन ऐसा महान् बलशाली है, जिस ने तुम्हें रूप हीन बना दिया?” ।।
७.
“संसार में तो मैं किसी को ऐसा नहीं देखता, जो मेरा अप्रिय कर सके। देवताओं में सहस्र नेत्रधारी पाकशासन इन्द्र भी ऐसा साहस कर सकें, यह मुझे नहीं दिखायी देता” ।।
८.
“जैसे हंस जल में मिले हुए दूध को पी लेता है, उसी प्रकार मैं आज इन प्राणान्तकारी बाणों से तुम्हारे अपराधी के शरीर से उस के प्राण ले लूँगा” ।।
९.
“युद्ध में मेरे बाणों से जिस के मर्मस्थान छिन्न-भिन्न हो गये हैं तथा जो मेरे हाथों मारा गया है, ऐसे किस पुरुष के फेन सहित गरम-गरम रक्त को यह पृथ्वी पीना चाहती है?” ।।
१०.
“रणभूमि में मेरे द्वारा मारे गये किस व्यक्ति के शरीर से मांस कुतर-कुतर कर ये हर्ष में भरे हुए झुंड-के-झुंड पक्षी खायँ गे?” ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११.
“जिसे मैं महा समर में खींच लूँ, उस दीन अपराधी को देवता, गन्धर्व, पिशाच और राक्षस भी नहीं बचा सकते” ॥
१२.
“धीरे - धीरे होश में आ कर तुम मुझे उस का नाम बताओ, जिस उद्दण्ड ने वन में तुम पर बल पूर्वक आक्रमण कर के तुम्हें परास्त किया है” ।।
१३.
भाइ का विशेषतः क्रोध में भरे हुए भाई खर का यह वचन सुन कर शूर्पणखा नेत्रों से आँसू बहाती हुइ इस प्रकार बोली- ।।
१४.
“भैया! वन में दो तरुण पुरुष आये हैं , जो देखने में बड़े ही सुकुमार , रूपवान् और महान् बलवान् हैं। उन दोनों के बड़े - बड़े नेत्र ऐसे जान पड़ते हैं मानो खिले हुए कमल हों। वे दोनों ही वल्कल - वस्त्र और मृगचर्म पहने हुए हैं” ।।
१५.
“फल और मूल ही उन का भोजन है। वे जितेन्द्रिय, तपस्वी और ब्रह्मचारी हैं। दोनों ही राजा दशरथ के पुत्र और आपस में भाइ - भाई हैं। उन के नाम राम और लक्ष्मण हैं” ।।
१६.
“वे दो गन्धर्वराजों के समान जान पड़ते हैं और राजोचित लक्षणों से सम्पन्न हैं। ये दोनों भाई देवता अथवा दानव हैं, यह मैं अनुमान से भी नहीं जान सकती” ।।
१७.
“उन दोनों के बीच में एक तरुण अवस्था वाली रूपवती स्त्री भी वहाँ देखी है, जिस के शरीर का मध्यभाग बड़ा ही सुन्दर है। वह सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित है” ।
१८.
“उस स्त्री के ही कारण उन दोनों ने मिल कर मेरी एक अनाथ और कुलटा स्त्री की भांति ऐसी दुर्गति की है” ।।
१९.
“मैं युद्ध में उस कुटिल आचार वाली स्त्री के और उन दोनों राजकुमारों के भी मारे जाने पर उन का फेनसहित रक्त पीना चाहती हूँ” ।।
२०.
“रणभूमि में उस स्त्री का और उन पुरुषों का भी रक्त मैं पी सकूँ — यह मेरी पहली और प्रमुख इच्छा है, जो तुम्हारे द्वारा पूर्ण की जानी चाहिये” ।।
श्लोक २१ से २६ ।।
२१.
शूर्पणखा के ऐसा कहने पर खर ने कुपित हो कर अत्यन्त बलवान् चौदह राक्षसों को , जो यमराज के समान भयंकर थे, यह आदेश दिया— ।।
२२.
“वीरो! इस भयंकर दण्डकारण्य के भीतर चीर और काला मृगचर्म धारण किये दो शस्त्रधारी मनुष्य एक युवती स्त्री के साथ घुस आये हैं” ।।
२३.
“तुमलोग वहाँ जा कर पहले उन दोनों पुरुषों को मार डालो; फिर उस दुराचारिणी स्त्री के भी प्राण ले लो। मेरी यह बहिन उन तीनों का रक्त पीयेगी” ।।
२४.
“राक्षसो! मेरी इस बहिन का यह प्रिय मनोरथ है। तुम वहाँ जा कर अपने प्रभाव से उन दोनों मनुष्यों को मार गिराओ और बहिन के इस मनोरथ को शीघ्र पूरा करो” ॥
२५.
“रणभूमि में उन दोनों भाइयों को तुम्हारे द्वारा मारा गया देख यह हर्ष से खिल उठे गी और आनन्दमग्न हो कर युद्धस्थल में उन का रक्त पान करेगी” ।।
२६.
खर की ऐसी आज्ञा पा कर वे चौदहों राक्षस हवा के उड़ाये हुए बादलों के समान विवश हो शूर्पणखा के साथ पञ्चवटी को गये ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अरण्यकाण्ड में उन्नीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ।।
Sarg 19- Aranya Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
