14. Valmiki Ramayana - Aranya Kaand - Sarg 14

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – अरण्यकाण्ड ।।

चौदहवाँ सर्ग – ३६ श्लोक ।।

सारांश ।।

पञ्चवटी के मार्ग में जटायु का मिलना और श्रीराम को अपना विस्तृत परिचय देना ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
पञ्चवटी जाते समय बीच में श्रीरामचन्द्रजी को एक विशालकाय गृध्र मिला, जो भयंकर पराक्रम प्रकट करनेवाला था ।।

२.
वन में बैठे हुए उस विशाल पक्षी को देख कर महाभाग श्रीराम और लक्ष्मण ने उसे राक्षस ही समझा और पूछा- “आप कौन हैं?” ।।

३.
तब उस पक्षी ने बड़ी मधुर और कोमल वाणी में उन्हें प्रसन्न करते हुए से कहा- “बेटा! मुझे अपने पिता का मित्र समझो” ।।

४.
पिता का मित्र जान कर श्रीरामचन्द्रजी ने गृध्र का आदर किया और शान्तभाव से उस का कुल एवम् नाम पूछा ।।

५.
श्रीराम का यह प्रश्न सुन कर उस पक्षी ने उन्हें अपने कुल और नाम का परिचय देते हुए समस्त प्राणियों की उत्पत्ति का क्रम ही बताना आरम्भ किया ।।

६.
“महाबाहु रघुनन्दन! पूर्वकाल में जो-जो प्रजापति हो चुके हैं, उन सबका आदि से ही वर्णन करता हूँ, सुनो” ।।

७.
“उन प्रजापतियों में सब से प्रथम कर्दम हुए। तदनन्तर दूसरे प्रजापति का नाम विकृत हुआ, तीसरे शेष, चौथे संश्रय और पाँचवें प्रजापति पराक्रमी बहुपुत्र हुए” ।।

८.
“छठे स्थाणु, सातवें मरीचि, आठवें अत्रि, नवें महान् शक्तिशाली क्रतु, दसवें पुलस्त्य, ग्यारहवें अङ्गिरा, बारहवें प्रचेता (वरुण) और तेरहवें प्रजापति पुलह हुए” ।।

९.
“चौदहवें दक्ष, पंद्रहवें विवस्वान्, सोलहवें अरिष्टनेमि और सत्रहवें प्रजापति महातेजस्वी कश्यप हुए। रघुनन्दन! यह कश्यपजी अन्तिम प्रजापति कहे गये हैं” ।।

१०.
“महायशस्वी श्रीराम! प्रजापति दक्ष के साठ यशस्विनी कन्याएँ हुई, जो बहुत ही विख्यात थीं” ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
“उनमें से आठ सुन्दरी कन्याओं को प्रजापति कश्यप ने पत्नीरूप में ग्रहण किया। जिन के नाम इस प्रकार हैं— अदिति, दिति, दनु, कालका, ताम्रा, क्रोधवशा, मनु और अनला” ।।

१२.
“तदनन्तर उन कन्याओं से प्रसन्न हो कर कश्यपजी ने फिर उन से कहा- “देवियो! तुमलोग ऐसे पुत्रों को जन्म दोगी, जो तीनों लोकों का भरण-पोषण करने में समर्थ और मेरे समान तेजस्वी होंगे” ।।

१३.
“महाबाहु श्रीराम! इनमें से अदिति, दिति, दनु और कालका – इन चारों ने कश्यपजी की कही हुई बात को मन से ग्रहण किया; परंतु शेष स्त्रियों ने उधर मन नहीं लगाया। उनके मन में वैसा मनोरथ नहीं उत्पन्न हुआ” ॥

१४.
“शत्रुओं का दमन करनेवाले रघुवीर! अदिति के गर्भ से तैंतीस देवता उत्पन्न हुए - बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनीकुमार। शत्रुओं को संताप देनेवाले श्रीराम ! ये ही तैंतीस देवता हैं” ।।

१५.
“तात! दिति ने दैत्य नाम से प्रसिद्ध यशस्वी पुत्रों को जन्म दिया। पूर्वकाल में वन और समुद्र सहित सारी पृथिवी उन्हीं के अधिकार में थी” ।।

१६.
“शत्रुदमन! दनु ने अश्वग्रीव नामक पुत्र को उत्पन्न किया और कालका ने नरक एवम् कालक नामक दो पुत्रों को जन्म दिया” ।।

१७.
“ताम्रा ने क्रौञ्ची, भासी, श्येनी, धृतराष्ट्री तथा शुकी – इन पाँच विश्वविख्यात कन्याओं को उत्पन्न किया” ।।

।।१८ से १९.
“इनमें से क्रौञ्ची ने उल्लुओं को, भासी ने भास नामक पक्षियों को, श्येनी ने परम तेजस्वी श्येनों (बाजों) और गीधों को तथा धृतराष्ट्री ने सब प्रकार के हंसों और कलहंसों को जन्म दिया” ।।

२०.
“श्रीराम! आपका कल्याण हो, उसी भामिनी धृतराष्ट्री ने चक्रवाक नामक पक्षियों को भी उत्पन्न किया था। ताम्रा की सब से छोटी पुत्री शुकी ने नता नाम वाली कन्या को जन्म दिया। नता से विनता नामवाली पुत्री उत्पन्न हुइ” ।।

श्लोक २१ से ३० ।।

२१ से २२.
“श्रीराम! क्रोधवशा ने अपने पेट से दस कन्याओं को जन्म दिया। जिन के नाम हैं - मृगी, मृगमन्दा, हरी, भद्रमदा, मातङ्गी, शार्दूली, श्वेता, सुरभी, सर्वलक्षणसम्पन्ना सुरसा और कद्रुका”

२३.
“नरेशों में श्रेष्ठ श्रीराम! मृगी की संतान सारे मृग हैं और मृगमन्दा के ऋक्ष, सृमर और चमर” ॥

२४.
“भद्रमदा ने इरावती नामक कन्या को जन्म दिया, जिस का पुत्र है ऐरावत नामक महान् गजराज, जो समस्त लोकों को अभीष्ट है” ।।

२५.
“हरी की संतानें हरि (सिंह) तथा तपस्वी (विचारशील) वानर तथा गोलांगूल (लंगूर) हैं। क्रोधवशा की पुत्री शार्दूली ने व्याघ्र नामक पुत्र उत्पन्न किये” ।।

२६.
“नरश्रेष्ठ! मातङ्गी की संतानें मातङ्ग (हाथी) हैं। काकुत्स्थ! श्वेता ने अपने पुत्र के रूप में एक दिग्गज को जन्म दिया” ।।

२७.
“श्रीराम! आपका भला हो। क्रोधवशा की पुत्री सुरभी देवी ने दो कन्याएँ उत्पन्न कीं— रोहिणी और यशस्विनी गन्धर्वी” ।।

२८.
“रोहिणी ने गौओं को जन्म दिया और गन्धर्वी ने घोड़ों को ही पुत्ररूप में प्रकट किया। श्रीराम! सुरसा ने नागों को और कद्रू ने पन्नगों को जन्म दिया” ।।

२९.
“नरश्रेष्ठ! महात्मा कश्यप की पत्नी मनु ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र जाति वाले मनुष्यों को जन्म दिया” ॥

३०.
“मुख से ब्राह्मण उत्पन्न हुए और हृदय से क्षत्रिय। दोनों ऊरुओं से वैश्यों का जन्म हुआ और दोनों पैरों से शूद्रों का - ऐसी प्रसिद्धि है” ।।

श्लोक ३१ से ३६ ।।

३१.
“(कश्यप पत्नी) अनला ने पवित्र फल वाले समस्त वृक्षों को जन्म दिया। कश्यप पत्नी ताम्रा की पुत्री जो शुकी थी, उस की पौत्री विनता थी तथा कद्रू सुरसा की बहिन (एवम् क्रोधवशा की पुत्री) कही गयी है” ।।

३२.
“इन में से कद्रू ने एक सहस्र नागों को उत्पन्न किया, जो इस पृथ्वी को धारण करनेवाले हैं। तथा विनता के दो पुत्र हुए- गरुड़ और अरुण” ।।

३३.
“उन्हीं विनतानन्दन अरुण से मैं तथा मेरे बड़े भाई सम्पाति उत्पन्न हुए। शत्रुदमन रघुवीर! आप मेरा नाम जटायु समझें। मैं श्येनी का पुत्र हूँ (ताम्रा की पुत्री जो श्येनी बतायी गयी है, उस की परम्परा में उत्पन्न हुई एक श्येनी मेरी माता हुइ)” ।।

३४.
“तात! यदि आप चाहें तो मैं यहाँ आप के निवास में सहायक होऊँगा। यह दुर्गम वन मृगों तथा राक्षसों से सेवित है। लक्ष्मण सहित आप यदि अपनी पर्णशाला से कभी बाहर चले जायँ तो उस अवसर पर मैं देवी सीता की रक्षा करूँगा” ।।

३५.
यह सुन कर श्रीरामचन्द्रजी ने जटायु का बड़ा सम्मान किया और प्रसन्नतापूर्वक उन के गले लग कर वे उन के सामने नतमस्तक हो गये। फिर पिता के साथ जिस प्रकार उन की मित्रता हुई थी , वह प्रसङ्ग मनस्वी श्रीराम ने जटायु के मुख से बारंबार सुना ।।

३६.
तत्पश्चात् वे मिथिलेशकुमारी सीता को उन के संरक्षण में सौंप कर लक्ष्मण और उन अत्यन्त बलशाली पक्षी जटायु के साथ ही पञ्चवटी की ओर ही चल दिये। श्रीरामचन्द्रजी मुनिद्रोही राक्षसों को शत्रु समझ कर उन्हें उसी प्रकार दग्ध कर डालना चाहते थे, जैसे आग पतिङ्गों को जला कर भस्म कर देती है ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अरण्यकाण्ड में चौदहवाँ सर्ग पूरा हुआ ।।

Sarg 14 - Aranya Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.