13. Valmiki Ramayana - Yudhh Kaand - Sarg 13
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – युद्ध काण्ड ।।
तेरहवाँ सर्ग – २१ श्लोक ।।
सारांश ।।
महापार्श्व का रावण को सीता पर बलात्कार के लिये उकसाना और रावण का शाप के कारण अपने को ऐसा करने में असमर्थ बताना तथा अपने पराक्रम के गीत गाना
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
तब रावण को कुपित हुआ जान महाबली महापार्श्व ने दो घड़ी तक कुछ सोच-विचार करने के बाद हाथ जोड़ कर कहा- ।।
२.
“जो हिंसक पशुओं और सर्पों से भरे हुए दुर्गम वन में जा कर वहाँ पीने योग्य मधु पा कर भी उसे पीता नहीं है, वह पुरुष मूर्ख ही है” ।।
३.
“शत्रुसूदन महाराज! आप तो स्वयं ही इश्वर हैं। आपका इश्वर कौन है? आप शत्रुओं के सिर पर पैर रख कर विदेहकुमारी सीता के साथ रमण कीजिये” ।।
४.
“महाबली वीर! आप कुक्कुटों के बर्ताव को अपना कर सीता के साथ बलात्कार कीजिये। बारंबार आक्रमण कर के उन के साथ रमण एवं उपभोग कीजिये” ।।
५.
“जब आप का मनोरथ सफल हो जायगा, तब फिर आप पर कौन-सा भय आये गा? यदि वर्तमान एवं भविष्यकाल में कोई भय आया भी तो उस समस्त भय का यथोचित प्रतीकार किया जायगा” ।।
६.
“हमलोगों के साथ यदि महाबली कुम्भकर्ण और इन्द्रजित् खड़े हो जायँ तो ये दोनों वज्रधारी इन्द्र को भी आगे बढ़ने से रोक सकते हैं” ।।
७.
“मैं तो नीतिनिपुण पुरुषों के द्वारा प्रयुक्त साम, दान और भेद को छोड़ कर केवल दण्ड के द्वारा काम बना लेना ही अच्छा समझता हूँ” ।।
८.
“महाबली राक्षसराज! यहाँ आप के जो भी शत्रु आयेंगे, उन्हें हमलोग अपने शस्त्रों के प्रताप से वश में कर लेंगे, इस में संशय नहीं है” ।।
९.
महापार्श्व के ऐसा कहने पर उस समय लंका के राजा रावण ने उस के वचनों की प्रशंसा करते हुए इस प्रकार कहा- ।।
१०.
“महापार्श्व! बहुत दिन हु,ए पूर्वकाल में एक गुप्त घटना घटित हुई थी-मुझे शाप प्राप्त हुआ था। अपने जीवन के उस गुप्त रहस्य को आज मैं बता रहा हूँ, उसे सुनो” ।।
श्लोक ११ से २१ ।।
११.
“एक बार मैंने आकाश में अग्निशिखा के समान प्रकाशित होती हुइ पुञ्जिकस्थला नाम की अप्सरा को देखा, जो पितामह ब्रह्माजी के भवन की ओर जा रही थी। वह अप्सरा मेरे भय से लुकती - छिपती आगे बढ़ रही थी” ।
१२.
“मैंने बल पूर्वक उस के वस्त्र उतार दिये और हठात् उस का उपभोग किया। इस के बाद वह ब्रह्माजी के भवन में गयी। उसकी दशा हाथी द्वारा मसल कर फेंकी हुई कमलिनी के समान हो रही थी” ।।
१३.
“मैं समझता हूँ कि मेरे द्वारा उस की जो दुर्दशा की गयी थी, वह पितामह ब्रह्माजी को ज्ञात हो गयी। इस से वे अत्यन्त कुपित हो उठे और मुझ से इस प्रकार बोले – “।।
१४.
“आज से यदि तू किसी दूसरी नारी के साथ बलपूर्वक समागम करे गा तो तेरे मस्तक के सौ टुकड़े हो जायँगे, इस में संशय नहीं है” ।।
१५.
“इस तरह मैं ब्रह्माजी के शाप से भयभीत हूँ। इसीलिये अपनी शुभ – शय्या पर विदेहकुमारी सीता को हठात् एवम् बलपूर्वक नहीं चढ़ाता हूँ” ।।
१६.
“मेरा वेग समुद्र के समान है और मेरी गति वायु के तुल्य है। इस बात को दशरथनन्दन राम नहीं जानते हैं, इसी से वे मुझ पर चढ़ाई करते हैं” ।।
१७.
“अन्यथा पर्वत की कन्दरा में सुखपूर्वक सोये हुए सिंह के समान तथा कुपित हो कर बैठी हुई मृत्यु के तुल्य भयंकर मुझ रावण को कौन जगाना चाहेगा?” ।।
१८.
“मेरे धनुष से छूटे हुए दो जीभ वाले सर्पों के समान भयंकर बाणों को समराङ्गण में श्रीराम ने कभी देखा नहीं है, इसी लिये वे मुझ पर चढ़े आ रहे हैं” ।।
१९.
“मैं अपने धनुष से शीघ्रतापूर्वक छूटे हुए सैकड़ों वज्रसदृश बाणों द्वारा राम को उसी प्रकार जला डालूँगा, जैसे लोग उल्काओं द्वारा हाथी को उसे भगाने के लिये जलाते हैं” ।।
२०.
“जैसे प्रातःकाल उदित हुए सूर्यदेव नक्षत्रों की प्रभा को छीन लेते हैं, उसी प्रकार अपनी विशाल सेना से घिरा हुआ मैं उन की उस वानर सेना को आत्मसात् कर लूँगा” ।।
२१.
“युद्ध में तो हजार नेत्रों वाले इन्द्र और वरुण भी मेरा सामना नहीं कर सकते। पूर्वकाल में कुबेर के द्वारा पालित हुइ इस लङ्कापुरी को मैंने अपने बाहुबल से ही जीता था” ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के युद्धकाण्ड में तेरहवाँ सर्ग पूरा हुआ ।।
Sarg 13 - Yuddh Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
