08. Valmiki Ramayana - Aranya Kaand - Sarg 08

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – अरण्यकाण्ड ।।

आठवाँ सर्ग ।।

सारांश ।

प्रातःकाल सुतीक्ष्ण से विदा ले श्रीराम, लक्ष्मण, सीता का वहाँ से प्रस्थान ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
सुतीक्ष्ण के द्वारा भली भाँति पूजित हो लक्ष्मण सहित श्रीराम उन के आश्रम में ही रात बिता कर प्रातःकाल जाग उठे ।।

२ से ४.
सीता सहित श्रीराम और लक्ष्मण ने ठीक समय से उठ कर कमल की सुगन्ध से सुवासित परम शीतल जल के द्वारा स्नान किया । तदनन्तर उन तीनों ने ही मिल कर विधिपूर्वक अग्नि और देवताओं की प्रातःकालिक पूजा की। इस के बाद तपस्वी जनों के आश्रय भूत वन में उदित हुए सूर्यदेव का दर्शन कर के वे तीनों निष्पाप पथिक सुतीक्ष्ण मुनि के पास गये और यह मधुर वचन बोले - ।।

५.
“भगवन्! आप ने पूजनीय होकर भी हम लोगों की पूजा की है । हम आप के आश्रम में बड़े सुख से रहे हैं । अब हम यहाँ से जायँ गे, इस के लिये आप की आज्ञा चाहते हैं । ये मुनि हमें चलने के लिये जल्दी मचा रहे हैं” ।।

६.
“हमलोग दण्डकारण्य में निवास करने वाले पुण्यात्मा ऋषियों के सम्पूर्ण आश्रम मण्डल का दर्शन करने के लिये उतावले हो रहे हैं” ।।

७.
“अतः हमारी इच्छा है कि आप धूम रहित अग्नि के समान तेजस्वी, तपस्या द्वारा इन्द्रियों को वश में रखने वाले तथा नित्य धर्म परायण इन श्रेष्ठ महर्षियों के साथ यहाँ से जाने के लिये हमें आज्ञा दें” ।।

८ से ९.
“ जैसे अन्याय से आयी हुई सम्पत्ति को पा कर किसी नीच कुल के मनुष्य में असह्य उग्रता आ जाती है, उसी प्रकार यह सूर्य देव जब तक असह्य ताप देने वाले हो कर प्रचण्ड तेज से प्रकाशित न होने लगें, उस के पहले ही हम यहाँ से चल देना चाहते हैं ।“ ऐसा कह कर लक्ष्मण और सीता सहित श्रीराम ने मुनि के चरणों की वन्दना की ॥

१०.
अपने चरणों का स्पर्श करते हुए श्रीराम और लक्ष्मण को उठा कर मुनिवर सुतीक्ष्ण ने उन दोनो को कस कर हृदय से लगा लिया और बड़े स्नेह से इस प्रकार कहा- ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
“श्रीराम ! आप छाया की भाँति अनुसरण करने वाली इस धर्मपत्नी सीता तथा सुमित्राकुमार लक्ष्मण के साथ यात्रा कीजिये । आपका मार्ग विघ्न बाधाओंसे रहित परम मङ्गलमय हो” ।।

१२.
“वीर! तपस्या से शुद्ध अन्तःकरण वाले दण्डकारण्य वासी इन तपस्वी मुनियों के रमणीय आश्रमों का दर्शन कीजिये” ।।

१३.
“इस यात्रा में आप प्रचुर फल-मूलों से युक्त तथा फूलों से सुशोभित अनेक वन देखें गे; वहाँ उत्तम मृगों के झुंड विचरते होंगे और पक्षी शान्त भाव से रहते होंगे” ।।

१४.
“ आपको बहुत से ऐसे तालाब और सरोवर दिखायी देंगे, जिन में प्रफुल्ल कमलों के समूह शोभा दे रहे होंगे । उनमें स्वच्छ जल भरे होंगे तथा कारण्डव आदि जल पक्षी सब ओर फैल रहे होंगे” ।।

१५.
“नेत्रों को रमणीय प्रतीत होने वाले पहाड़ी झरनों और मोरों की मीठी बोली से गूँजती हुई सुरम्य वन स्थलियों को भी आप देखेंगे” ।।

१६.
“श्रीराम! जाइये, वत्स सुमित्राकुमार ! तुम भी जाओ । दण्डकारण्य के आश्रमों का दर्शन कर के आप लोगों को फिर इसी आश्रम में आ जाना चाहिये” ।।

१७.
उन के ऐसा कहने पर लक्ष्मण सहित श्रीराम ने “बहुत अच्छा” कह कर मुनि की परिक्रमा की और वहाँ से प्रस्थान करने की तैयारी की ।।

१८.
तदनन्तर विशाल नेत्रों वाली सीता ने उन दोनों भाईयों के हाथ में दो परम सुन्दर तूणीर, धनुष और चमचमाते हुए खड्ग प्रदान किये ।।

१९.
उन सुन्दर तूणीरों को पीठ पर बाँध कर टंकारते हुए धनुषों को हाथ में ले वे दोनों भाई श्रीराम और लक्ष्मण आश्रम से बाहर निकले ।।

२०.
वे दोनों रघुवंशी वीर बड़े ही रूपवान् थे, उन्हों ने खड्ग और धनुष धारण कर के महर्षि की आज्ञा ले सीता के साथ शीघ्र ही वहाँ से प्रस्थान किया ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अरण्यकाण्ड में आठवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥

Created with full devotion and dedication by Dr T K Bansal.