06. Valmiki Ramayana - Ayodhya Kaand - Sarg 06
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – अयोध्या काण्ड ।।
छठा सर्ग ।।
सारांश ।
सीता सहित श्रीराम का नियमपरायण होना, हर्ष में भरे पुरवासियों द्वारा नगर की सजावट, राजा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तथा अयोध्यापुरी में जनपद वासी मनुष्यों की भीड़ का एकत्र होना ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
पुरोहितजी के चले जाने पर मन को संयम में रखने वाले श्रीराम ने स्नान कर के अपनी विशाल लोचना पत्नी के साथ श्रीनारायण की उपासना आरम्भ की ।।
२.
उन्हों ने हविष्य-पात्र को सिर झुका कर नमस्कार किया और प्रज्वलित अग्नि में महान् देवता ( शेषशायी नारायण) की प्रसन्नता के लिये विधि पूर्वक उस हविष्य की आहुति दी ।।
३ से ४.
तत्पश्चात् अपने प्रिय मनोरथ की सिद्धि का संकल्प ले कर उन्हों ने उस यज्ञशेष हविष्य का भक्षण किया और मन को संयम में रख कर मौन हो वे राजकुमार श्रीराम विदेहनन्दिनी सीता के साथ भगवान् विष्णु के सुन्दर मन्दिर में श्रीनारायणदेव का ध्यान करते हुए वहाँ अच्छी तरह बिछी हुई कुश की चटाइ पर सोये ।।
५.
जब तीन पहर बीत कर एक ही पहर रात शेष रह गयी, तब वे शयन से उठ बैठे। उस समय उन्हों ने सभा मण्डप को सजाने के लिये सेवकों को आज्ञा दी ।।
६.
वहाँ सूत, मागध और बंदियों की श्रवण सुखद वाणी सुनते हुए श्रीराम ने प्रातःकालिक संध्योपासना की; फिर एकाग्रचित्त हो कर वे जप करने लगे ।।
७.
तदनन्तर रेशमी वस्त्र धारण किये हुए श्रीराम ने मस्तक झुका कर भगवान् मधुसूदन को प्रणाम और उन का स्तवन किया; इस के बाद ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराया ।।
८.
उन ब्राह्मणों का पुण्याहवाचन सम्बन्धी गम्भीर एवम् मधुर घोष नाना प्रकार के वाद्यों की ध्वनि से व्याप्त हो कर सारी अयोध्यापुरी में फैल गया ।।
९.
स समय अयोध्यावासी मनुष्यों ने जब यह सुना कि श्रीरामचन्द्रजी ने सीता के साथ उपवास व्रत आरम्भ कर दिया है, तब उन सब को बड़ी प्रसन्नता हुई ।।
१०.
सबेरा होने पर श्रीराम के राज्याभिषेक का समाचार सुन कर समस्त पुरवासी अयोध्यापुरी को सजाने में लग गये ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११ से १३.
जिन के शिखरों पर श्वेत बादल विश्राम करते हैं, उन पर्वतों के समान गगनचुम्बी देवमन्दिरों, चौराहों, गलियों, देववृक्षों, समस्त सभाओं, अट्टालिकाओं, नाना प्रकार की बेचनेयोग्य वस्तुओं से भरी हुई व्यापारियों की बड़ी-बड़ी दूकानों तथा कुटुम्बी गृहस्थों के सुन्दर समृद्धिशाली भवनों में और दूर से दिखायी देने वाले वृक्षों पर भी ऊँची ध्वजाएँ लगायी गयीं और उन में पताकाएँ फहरायी गयीं ।।
१४.
उस समय वहाँ की जनता सब ओर नटों और नर्तकों के समूहों तथा गाने वाले गायकों की मन और कानों को सुख देने वाली वाणी सुनती थी ।।
१५.
श्रीराम के राज्याभिषेक का शुभ अवसर प्राप्त होने पर प्रायः सब लोग चौराहों पर और घरों में भी आपस में श्रीराम के राज्याभिषेक की ही चर्चा कर रहे थे ।।
१६.
घरों के दरवाजों पर खेलते हुए झुंड के झुंड बालक भी आपस में श्रीराम के राज्याभिषेक की ही बातें कर रहे थे ।।
१७.
पुरवासियों ने श्रीराम के राज्याभिषेक के समय राजमार्ग पर फूलों की भेंट चढ़ा कर वहाँ सब ओर धूप की सुगन्ध फैला दी ; ऐसा कर के उन्हों ने राजमार्ग को बहुत सुन्दर बना दिया ।।
१८.
राज्याभिषेक होते-होते रात हो जाने की आशङ्का से प्रकाश की व्यवस्था करने के लिये पुरवासियों ने सब ओर सड़कों के दोनों तरफ वृक्षों की भाँति अनेक शाखाओं से युक्त दीपस्तम्भ खड़े कर दिये ।।
१९ से २०।।
इस प्रकार नगर को सजा कर श्रीराम के युवराज पद पर अभिषेक की अभिलाषा रखने वाले समस्त पुरवासी चौराहों और सभाओं में झुंड के झुंड एकत्र हो वहाँ परस्पर बातें करते हुए महाराज दशरथ की प्रशंसा करने लगे,
श्लोक २१ से २८ ।।
२१.
“अहो! इक्ष्वाकु कुल को आनन्दित करने वाले ये राजा दशरथ बड़े महात्मा हैं, जो कि अपने- आप को बूढ़ा हुआ जान कर श्रीराम का राज्याभिषेक करने जा रहे हैं” ।।
२२.
“भगवान का हम सब लोगों पर बड़ा अनुग्रह है कि श्रीरामचन्द्रजी हमारे राजा होंगे और चिर काल तक हमारी रक्षा करते रहेंगे; क्योंकि वे समस्त लोकों के निवासियों में जो भलाई या बुरा है, उसे अच्छी तरह देख चुके हैं” ।।
२३.
“श्रीराम का मन कभी उद्धत नहीं होता । वे विद्वान्, धर्मात्मा और अपने भाइयों पर स्नेह रखने वाले हैं । उनका अपने भाइयों पर जैसा स्नेह है, वैसा ही हमलोगों पर भी है” ।।
२४.
“धर्मात्मा एवम् निष्पाप राजा दशरथ चिर काल तक जीवित रहें, जिन के प्रसाद से हमें श्रीराम के राज्याभिषेक का दर्शन सुलभ होगा” ।।
२५.
अभिषेक का वृत्तान्त सुन कर नाना दिशाओं से उस जनपद के लोग भी वहाँ पहुँचे थे, उन्हों ने उपर्युक्त बातें कहने वाले पुरवासियों की सभी बातें सुनीं ।।
२६.
वे सब-के-सब श्रीराम का राज्याभिषेक देखने के लिये अनेक दिशाओं से अयोध्यापुरी में आये थे । उन जनपद निवासी मनुष्यों ने श्रीरामपुरी को अपनी उपस्थिति से भर दिया था ।।
२७.
वहाँ मनुष्यों की भीड़-भाड़ बढ़ने से जो जनरव सुनायी देता था, वह पर्वों के दिन बढ़े हुए वेगवाले महा सागर की गर्जना के समान जान पड़ता था ।।
२८.
उस समय श्रीराम के अभिषेक का उत्सव देखने के लिये पधारे हुए जनपदवासी मनुष्यों द्वारा सब ओर से भरा हुआ वह इन्द्रपुरी के समान नगर अत्यन्त कोलाहल पूर्ण होने के कारण मकर, नक्र, तिमिङ्गल आदि विशाल जल-जन्तुओं से परिपूर्ण महासागर के समान प्रतीत होता था ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में छठा सर्ग पूरा हुआ ।।
Sarg 6 - Ayodhya Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal.
