04. Valmiki Ramayana - Aranya Kaand - Sarg 04

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – अरण्यकाण्ड ।।

चौथा सर्ग ।।

सारांश ।

श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा विराध का वध ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
रघुकुल के श्रेष्ठ वीर ककुत्स्थ कुलभूषण श्रीराम और लक्ष्मण को राक्षस लिये जा रहा है — यह देख कर सीता अपनी दोनों बाँहें ऊपर उठा कर जोर-जोर से रोने और चिल्लाने लगीं - ।।

२.
“हाय ! इन सत्यवादी, शीलवान् और शुद्ध आचारविचार वाले दशरथनन्दन श्रीराम और लक्ष्मण को यह रौद्ररूप धारी राक्षस लिये जा रहा है” ।।

३.
“राक्षसशिरोमणे! तुम्हें नमस्कार है । इस वन में रीछ, व्याघ्र और चीते मुझे खा जायँ गे, इस लिये तुम मुझे ही ले चलो, किंतु इन दोनों ककुत्स्थवंशी वीरों को छोड़ दो” ।।

४.
विदेहनन्दिनी सीता की यह बात सुन कर वे दोनों वीर श्रीराम और लक्ष्मण उस दुरात्मा राक्षस का वध करने में शीघ्रता करने लगे ।।

५.
सुमित्राकुमार लक्ष्मण ने उस राक्षस की बायीं और श्रीराम ने उस की दाहिनी बाँह बड़े वेग से तोड़ डाली ।।

६.
भुजाओं के टूट जाने पर वह मेघ के समान काला राक्षस व्याकुल हो गया और शीघ्र ही मूर्च्छित हो कर वज्र के द्वारा टूटे हुए पर्वत शिखर की भाँति पृथ्वी पर गिर पड़ा ।।

७.

तब श्रीराम और लक्ष्मण विराधको भुजाओं, मुक्कों और लातों से मारने लगे तथा उसे उठा-उठा कर पटकने और पृथ्वी पर रगड़ने लगे ।।

८.
बहुसंख्यक बाणों से घायल और तलवारों से क्षत विक्षत होने पर तथा पृथ्वी पर बार-बार रगड़ा जाने पर भी वह राक्षस मरा नहीं ।।

९.
अवध्य तथा पर्वत के समान अचल विराध को बारंबार देख कर भय के अवसरों पर अभय देने वाले श्रीमान् राम ने लक्ष्मण से यह बात कही - ।।

१०.
“पुरुषसिंह ! यह राक्षस तपस्या से (वर पा कर) अवध्य हो गया है । इसे शस्त्र के द्वारा युद्ध में नहीं जीता जा सकता । इसलिये हमलोग निशाचर विराध को पराजित करने के लिये अब गड्ढा खोद कर गाड़ दें ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
“लक्ष्मण ! हाथी के समान भयंकर तथा रौद्र तेज वाले इस राक्षस के लिये इस वन में बहुत बड़ा गड्ढा खोदो” ।।

१२.
इस प्रकार लक्ष्मण को गड्ढा खोदने की आज्ञा दे कर पराक्रमी श्रीराम अपने एक पैर से विराध का गला दबा कर खड़े हो गये ।।

१३.
श्रीरामचन्द्रजी की कही हुई यह बात सुन कर राक्षस विराध ने पुरुषप्रवर श्रीराम से यह विनय युक्त बात कही - ।।

१४.
“पुरुषसिंह ! नरश्रेष्ठ! आप का बल देवराज इन्द्र के समान है । मैं आप के हाथ से मारा गया। मोह वश पहले मैं आप को पहचान न सका” ।।

१५.
“तात! आप के द्वारा माता कौसल्या उत्तम संतान वाली हुई हैं । मैं यह जान गया कि आप ही श्रीरामचन्द्रजी हैं । यह महाभागा विदेहनन्दिनी सीता हैं और ये आप के छोटे भाई महायशस्वी लक्ष्मण हैं ।।

१६.
“मुझे शाप के कारण इस भयंकर राक्षस शरीर में आना पड़ा था । मैं तु म्बुरु नामक गन्धर्व हूँ । कुबेर ने मुझे राक्षस होने का शाप दिया था” ।।

१७.
“जब मैंने उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा की, तब वे महायशस्वी कुबेर मुझ से इस प्रकार बोले — “गन्धर्व! जब दशरथनन्दन श्रीराम युद्ध में तुम्हारा वध करें गे, तब तुम अपने पहले स्वरूप को प्राप्त हो कर स्वर्ग लोक को जाओ गे” ।।

१८.
“मैं रम्भा नामक अप्सरा में आसक्त था, इस लिये एक दिन ठीक समय से उन की सेवा में उपस्थित न हो सका । इसीलिये कुपित हो राजा वैश्रवण (कुबेर) ने मुझे पूर्वोक्त शाप दे कर उस से छूटने की अवधि बतायी थी” ।।

१९.
“शत्रुओं को संताप देने वाले रघुवीर ! आज आप की कृपा से मुझे उस भयंकर शाप से छुटकारा मिल गया । आपका कल्याण हो, अब मैं अपने लोक को जाऊँगा” ।

२० से २१.
“तात! यहाँ से डेढ़ योजन की दूरी पर सूर्य के समान तेजस्वी प्रतापी और धर्मात्मा महामुनि शरभङ्ग निवास करते हैं। उन के पास आप शीघ्र चले जाइये, वे आप के कल्याण की बात बतायें गे” ।।

श्लोक २२ से ३० ।।

२२.
“श्रीराम! आप मेरे शरीर को गड्डे में गाड़ कर कुशल पूर्वक चले जाइये । मरे हुए राक्षसों के शरीर को गड्ढे में गाड़ना यह उन के लिये सनातन परम्पराप्राप्त धर्म है” ।।


२३.
“जो राक्षस गड्ढे में गाड़ दिये जाते हैं, उन्हें सनातन लोकों की प्राप्ति होती है” श्रीराम से ऐसा कह कर बाणों से पीड़ित हुआ महाबली विराध ( जब उस का शरीर गड्ढे में डाला गया, तब उस शरीर को छोड़ कर स्वर्गलोक को चला गया ।।

२४ से २५.
(वह किस तरह गड्ढे में डाला गया? – यह बात अब बतायी जा रही है -) उस की बात सुन कर श्री रघुनाथ जी ने लक्ष्मण को आज्ञा दी – “लक्ष्मण ! भयंकर कर्म करने वाले तथा हाथी के समान भयानक इस राक्षस के लिये इस वन में बहुत बड़ा गड्ढा खोदो” ।।

२६.
इस प्रकार लक्ष्मण को गड्ढा खोदने का आदेश दे कर पराक्रमी श्रीराम एक पैर से विराध का गला दबा कर खड़े हो गये ।।

२७.
तब लक्ष्मण ने फावड़ा ले कर उस विशाल काय विराध के पास ही एक बहुत बड़ा गड्ढा खोद कर तैयार किया ।।

२८.
तब श्रीराम ने उस के गले को छोड़ दिया और लक्ष्मण ने खूंटे-जैसे कान वाले उस विराध को उठा कर उस गड्ढे में डाल दिया, उस समय वह बड़ी भयानक आवाज में जोर-जोर से गर्जना कर रहा था ।।

२९.
युद्ध में स्थिर रह कर शीघ्रता पूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाले उन दोनों भाई श्रीराम और लक्ष्मण ने रण भूमि में क्रूरता पूर्ण कर्म करने वाले उस भयंकर राक्षस विराध को बल पूर्वक उठा कर गड्ढे में फेंक दिया । उस समय वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था । उसे गड्ढे में डाल कर वे दोनों बन्धु बड़े प्रसन्न हुए ।।

३०.
महान् असुर विराध का तीखे शस्त्र से वध होने वाला नहीं है, यह देख कर अत्यन्त कुशल दोनो भाइ नरश्रेष्ठ श्रीराम और लक्ष्मण ने उस समय गड्ढा खोद कर उस गड्ढे में उसे डाल दिया और उसे मिट्टी पाट कर उस राक्षस का वध कर डाला ।।

श्लोक ३१ से ३४ ।।

३१.
वास्तव में श्रीराम के हाथ से ही हठ पूर्वक मरना उसे अभीष्ट था । उस अपनी मनोवाञ्छित मृत्यु की प्राप्ति के उद्देश्य से स्वयम् वनचारी विराध ने ही श्रीराम को यह बता दिया था कि शस्त्र द्वारा मेरा वध नहीं हो सकता ।।

३२.
उस की कही हुई उसी बात को सुन कर श्रीराम ने उसे गड्ढे में गाड़ देने का विचार किया था । जब वह गड्ढे में डाला जाने लगा, उस समय उस अत्यन्त बलवान् राक्षस ने अपनी चिल्लाहट से सारे वन प्रान्त को गुंजा दिया ।।

३३.
राक्षस विराध को पृथ्वी के अंदर गड्ढे में गिरा कर श्रीराम और लक्ष्मण ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उसे ऊपर से बहुतेरे पत्थर डाल कर पाट दिया । फिर वे निर्भय हो उस महान् वन में सानन्द विचरने लगे ।।

३४.
इस प्रकार उस राक्षस का वध कर के मिथिलेशकुमारी सीता को साथ ले सोने के विचित्र धनुषों से सुशोभित हो वे दोनों भाई आकाश में स्थित हुए चन्द्रमा और सूर्य की भाँति उस महान् वन में आनन्दमग्न हो विचरण करने लगे ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें चौथा सर्ग पूरा हुआ ।।

Translated and made Screen Readable by Dr T K Bansal.