03. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 03
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।
तीसरा सर्ग ।।
सारांश ।
वाल्मीकि मुनि द्वारा रामायण काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख ।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
नारद जी के मुख से धर्म, अर्थ एवम् काम रूपी फल से युक्त, हित कर (मोक्ष दायक) तथा प्रकट और गुप्त – सम्पूर्ण राम चरित्र को, जो रामायण महाकाव्य की प्रधान कथा वस्तु था, सुन कर महर्षि वाल्मीकि जी बुद्धिमान् श्रीराम के उस जीवन वृत्त का पुनः भलीभाँति साक्षात्कार करने के लिये प्रयत्न करने लगे ।।
२.
पूर्वा कुशा के आसन पर बैठ गये और विधि वत् आचमन कर के हाथ जोड़े हुए स्थिर भाव से स्थित हो योग धर्म (समाधि) के द्वारा श्रीराम आदि के चरित्रों का अनुसंधान करने लगे ।।
३ से ४.
श्रीराम-लक्ष्मण - सीता तथा राज्य और रानियों सहित राजा दशरथ से सम्बन्ध रखने वाली जितनी बातें थीं- हँसना, बोलना, चलना और राज्यपालन आदि जितनी चेष्टाएँ हुई- उन सब का महर्षि ने अपने योगधर्म के बल से भलीभाँति साक्षात्कार किया ।।
५.
सत्यप्रतिज्ञ श्रीरामचन्द्रजी ने लक्ष्मण और सीता के साथ वन में विचर्ते समय जो-जो लिलाएँ की थीं, वे सब उन की दृष्टि में आ गयीं ।।
६.
योग का आश्रय ले कर उन धर्मात्मा महर्षि ने पूर्वकाल में जो-जो घटनाएँ घटित हुई थीं, उन सब को वहाँ हाथ पर रखे हुए आँवले की तरह प्रत्यक्ष देखा ।।
७.
सब के मन को प्रिय लगने वाले भगवान् श्रीरामजी के सम्पूर्ण चरित्रों का योगधर्म (समाधि) के द्वारा यथार्थ रूप से निरीक्षण कर के महा बुद्धिमान् महर्षि वाल्मीकि ने उन सब को महाकाव्य का रूप देने की चेष्टा की ।।
८ से ९.
महात्मा नारद जी ने पहले जैसा वर्णन किया था, उसी के क्रम से भगवान् वाल्मीकि मुनि ने रघुवंश विभूषण श्रीरामजी के चरित्र विषयक रामायण काव्य का निर्माण किया। जैसे समुद्र सब रत्नों की निधि है, उसी प्रकार यह महाकाव्य गुण, अलङ्कार एवम् ध्वनि आदि रत्नों का भण्डार है। इतना ही नहीं, यह सम्पूर्ण श्रुतियों के सारभूत अर्थ का प्रतिपादक होने के कारण सब के कानों को प्रिय लगने वाला तथा सभी के चित्त को आकृष्ट करने वाला है। यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी गुणों (फलों से युक्त तथा इन का विस्तार पूर्वक प्रतिपादन एवम् दान करने वाला है ।।
१०.
श्रीरामजी के जन्म, उन के महान् पराक्रम, उन की सर्वानुकूलता, लोकप्रियता, क्षमा, सौम्यभाव तथा सत्यशीलता का इस महाकाव्य में महर्षि ने वर्णन किया है ।।
श्लोक ११ से ३९ ।।
११.
विश्वामित्र के साथ श्रीराम-लक्ष्मण के जाने पर जो उन के द्वारा नाना प्रकार की विचित्र लीलाएँ तथा अद्भुत बातें घटित हुई, उन सब का इस में महर्षि ने वर्णन किया है। श्रीराम द्वारा मिथिला में धनुष के तोड़े जाने तथा जनकनन्दिनी सीता और उर्मिला आदि के विवाह का भी इस में चित्रण किया है ।।
१२ से १४.
श्रीराम-परशुराम संवाद, दशरथ-नन्दन श्रीराम के गुण, उन के अभिषेक, कैकेयी की दुष्टता, श्रीराम के राज्याभिषेक में विघ्न, उन के वनवास, राजा दशरथ के शोक-विलाप और परलोक गमन, प्रजा का विषाद, साथ जाने वाली प्रजा को मार्ग में छोड़ने, निषादराज गुह के साथ बात करने तथा सूत सुमन्त को अयोध्या लौटाने आदि का भी इसमें उल्लेख किया है ।।
१५ से ३९.
श्रीराम आदि का गङ्गा के पार जाना, भरद्वाज मुनि का दर्शन करना, भरद्वाज मुनि की आज्ञा ले कर चित्रकूट जाना और वहाँ की नैसर्गिक शोभा का अवलोकन करना, चित्रकूट में कुटिया बनाना, उस में निवास करना, वहाँ भरत का श्रीराम से मिलने के लिये आना, उन्हें अयोध्या लौट चलने के लिये प्रसन्न करना ( मनाना), श्रीराम द्वारा पिता को जलाञ्जलि दान, भरत द्वारा अयोध्या के राजसिंहासन पर श्रीरामचन्द्रजी की श्रेष्ठ पादुकाओं का अभिषेक एवम् स्थापन, नन्दिग्राम में भरत का निवास, श्रीराम का दण्डकारण्य में गमन, उन के द्वारा विराध का वध, शरभंगमुनि का दर्शन, सुतीक्ष्ण के साथ समागम, अनसूया के साथ सीतादेवी की कुछ काल तक स्थिति, उन के द्वारा सीता को अंगराग- समर्पण, श्रीराम आदि के द्वारा अगस्त्य का दर्शन, उन के दिये हुए वैष्णव धनुष का ग्रहण, शूर्पणखा का संवाद, श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण द्वारा उस का विरूपिकरण ( उस की नाक और कान का छेदन), श्रीराम द्वारा खर-दूषण और त्रिशिरा का वध, शूर्पणखा के उत्तेजित करने से रावण का श्रीराम से बदला लेने के लिये उठना, श्रीराम द्वारा मारीच का वध, रावण द्वारा विदेहनन्दिनी सीता का हरण, सीता के लिये श्री रघुनाथजी का विलाप, रावण द्वारा गृध्रराज जटायु का वध, श्रीराम और लक्ष्मण की कबन्ध से भेंट, उन के द्वारा पम्पा सरोवर का अवलोकन, श्रीराम का शबरी से मिलना और उस के दिये हुए फल- मूल को ग्रहण करना, श्रीराम का सीता के लिये प्रलाप, पम्पा सरोवर के निकट हनुमान्जी से भेंट, श्रीराम और लक्ष्मण का हनुमान्जी के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर जाना, वहाँ सुग्रीव के साथ भेंट करना, उन्हें अपने बल का विश्वास दिलाना और उन से मित्रता स्थापित करना, वाली और सुग्रीव का युद्ध, श्रीराम द्वारा वाली का विनाश, सुग्रीव को राज्य समर्पण, अपने पति वाली के लिये तारा का विलाप, शरत्काल में सीता की खोज कराने के लिये सुग्रीव की प्रतिज्ञा, श्रीराम का बरसात के दिनों में माल्यवान् पर्वत के प्रस्रवण नामक शिखर पर निवास, रघुकुल सिंह श्रीराम का सुग्रीव के प्रति क्रोध-प्रदर्शन, सुग्रीव द्वारा सीता की खोज के लिये वानर सेना का संग्रह, सुग्रीव का सम्पूर्ण दिशाओं में वानरों को भेजना और उन्हें पृथ्वी के द्वीप समुद्र आदि विभागों का परिचय देना, श्रीराम का सीता के विश्वास के लिये हनुमान्जी को अपनी अँगूठी देना, वानरों को ऋक्षबिल (स्वयंप्रभा - गुफा) का दर्शन, उन का प्रायोपवेशन (प्राण त्याग के लिये अनशन), सम्पाती से उन की भेंट और बातचीत, समुद्र लङ्घन के लिये हनुमान्जी का महेन्द्र पर्वत पर चढ़ना, समुद्र को लाँघना, समुद्र के कहने से ऊपर उठे हुए मैनाक का दर्शन करना, इन को राक्षसी का डाँटना, हनुमान द्वारा छायाग्राहिणी सिंहिका का दर्शन एवम् निधन, लङ्का के आधार भूत पर्वत (त्रिकूट) का दर्शन, रात्रि के समय लङ्का में प्रवेश, अकेला होने के कारण अपने कर्तव्य का विचार करना, रावण के मद्यपान-स्थान में जाना, उस के अन्तःपुर की स्त्रियों को देखना, हनुमान्जी का रावण को देखना, पुष्पक विमान का निरीक्षण करना, अशोक वाटिका जाना और सीताजी के दर्शन करना, पहचान के लिये सीताजी को अंगूठी देना और उन से बातचीत करना, राक्षसियों द्वारा सीता को डाँट फटकार, त्रिजटा को श्रीराम के लिये शुभसूचक स्वप्न का दर्शन, सीताजी का हनुमान्जी को चूड़ामणि प्रदान करना, हनुमान्जी का अशोक वाटिका के वृक्षों को तोड़ना, राक्षसियों का भागना, रावण के सेवकों का हनुमान्जी के द्वारा संहार, वायुनन्दन हनुमान्का बन्दी हो कर रावण की सभा में जाना, उन के द्वारा गर्जन और लङ्का का दाह, फिर लौटती बार समुद्र को लाँघना, वानरों का मधुवन में आ कर मधुपान करना, हनुमान्जी का श्रीरामचन्द्रजी को आश्वासन देना और सीताजी की दी हुई चूड़ामणि समर्पित करना, सेना सहित सुग्रीव के साथ श्रीराम की लङ्का यात्रा के समय समुद्र से भेंट, नल का समुद्र पर सेतु बाँधना, उसी सेतु के द्वारा वानर सेना का समुद्र के पार जाना, रात को वानरों का लङ्का पर चारों ओर से घेरा डालना, विभीषण के साथ श्रीराम का मैत्री सम्बन्ध होना, विभीषण का श्रीराम को रावण के वध का उपाय बताना, कुम्भकर्ण का निधन, मेघनाद का वध, रावण का विनाश, सीताजी की प्राप्ति, शत्रु नगरी लङ्का में विभीषण का अभिषेक, श्रीराम द्वारा पुष्पक विमान का अवलोकन, उस के द्वारा दल- बल सहित उन का अयोध्या के लिये प्रस्थान, श्रीराम का भरद्वाज मुनि से मिलना, वायुपुत्र हनुमान्को दूत बना कर भरत के पास भेजना तथा अयोध्या में आ कर भरत से मिलना, श्रीराम के राज्याभिषेक का उत्सव, फिर श्रीराम का सारी वानर सेना को विदा करना, अपने राष्ट्र की प्रजा को प्रसन्न रखना तथा उन की प्रसन्नता के लिये ही विदेहनन्दिनी सीता को वन में त्याग देना इत्यादि, वृत्तान्तों को एवम् इस पृथ्वी पर श्रीराम का जो कुछ भविष्य चरित्र था, उस को भी भगवान् वाल्मीकि मुनि ने अपने उत्कृष्ट महाकाव्य में अंकित किया है ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्ड में तीसरा सर्ग पूरा हुआ ।।
भावुक जनो! मैं आशा करता हूँ कि वालमिकी रामायण के बाल कांड के तीसरे सर्ग का यह हिन्दी अनुवाद आप को अच्छा लगा होगा । बाल कांड के अगले सर्ग में आप से फिर भेंट की आशा के साथ, आपका अपना - Dr T K Bansal.
