06. Valmiki Ramayana - Kishkindha Kaand - Sarg 06

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्री सीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – किष्किन्धाकाण्ड ।।

छठा सर्ग ।।

सारांश ।।

सुग्रीव का श्रीराम को सीताजी के आभूषण दिखाना तथा श्रीराम का शोक एवम् रोष पूर्ण वचन ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१.
सुग्रीव ने पुनः प्रसन्नता पूर्वक रघुकुलनन्दन श्रीरामचन्द्रजी से कहा, “श्रीराम! मेरे मन्त्रियों में श्रेष्ठ सचिव ये हनुमान्जी आप के विषय में वह सारा वृत्तान्त बता चुके हैं, जिस के कारण आप को इस निर्जन वन में आना पड़ा है।” ।।

२ से ४.
“अपने भाई लक्ष्मण के साथ जब आप वन में निवास कर रहे थे, उस समय राक्षस रावण ने आप की पत्नी मिथिलेशकुमारी जनकनन्दिनी सीता को हर लिया। उस वेला में आप उन से अलग थे और बुद्धिमान् लक्ष्मण भी उन्हें अकेली छोड़ कर चले गये थे। राक्षस इसी अवसर की प्रतीक्षा में था। उस ने गीध जटायु का वध कर के रोती हुई सीता का अपहरण किया है। इस प्रकार उस राक्षस ने आप को पत्नी वियोग के कष्ट में डाल दिया है।” ।।

५.
“परंतु इस पत्नी वियोग के दुख से आप शीघ्र ही मुक्त हो जायँगे। मैं राक्षस द्वारा हरी गयी वेदवाणी के समान आप की पत्नी को वापस ला दूँगा।” ।।

६.
“शत्रु दमन श्रीराम! आप की भार्या सीता पाताल में हों या आकाश में, मैं उन्हें ढूँढ़ ला कर आप की सेवा में समर्पित कर दूँगा।” ।।

७ से ८.
“रघुनन्दन! आप मेरी इस बात को सत्य मानें। महाबाहो! आप की पत्नी जहर मिलाये हुए भोजन की भाँति दूसरों के लिये अग्राह्य है। इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता और असुर भी उन्हें पचा नहीं सकते। आप शोक त्याग दीजिये। मैं आप की प्राण वल्लभा को अवश्य ला दूँगा।” ।।

९ से १०.
“एक दिन मैंने देखा, भयंकर कर्म करने वाला कोइ राक्षस किसी स्त्री को लिये जा रहा है। मैं अनुमान से समझता हूँ, वे मिथिलेशकुमारी सीता ही रही होंगी, इस में संशय नहीं है; क्योंकि वे टूटे हुए स्वर में “हा राम! हा राम! हा लक्ष्मण!” पुकारती हुइ रो रही थीं तथा रावण की गोद में नागराज की वधू (नागिन) की भाँति छटपटाती हुई प्रकाशित हो रही थीं।” ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
“चार मन्त्रियों सहित पाँचवाँ मैं इस शैल शिखर पर बैठा हुआ था। मुझे देख कर देवी सीता ने अपनी चादर और कई सुन्दर आभूषण ऊपर से गिराये।” ।।

१२.
“रघुनन्दन! वे सब वस्तुएँ हमलोगों ने उठा कर रख ली हैं। मैं अभी उन्हें लाता हूँ, आप उन्हें पहचान सकते हैं।” ।।

१३.
तब श्रीराम ने यह प्रिय संवाद सुनाने वाले सुग्रीव से कहा, “सखे! शीघ्र ले आओ, क्यों विलम्ब करते हो?” ।।

१४ से १५.
उन के ऐसा कहने पर सुग्रीव शीघ्र ही श्रीरामचन्द्रजी का प्रिय करने की इच्छा से पर्वत की एक गहन गुफा में गये और चादर तथा वे आभूषण ले कर निकल आये। बाहर आ कर वानर राज ने “लीजिये, यह देखिये।” ऐसा कह कर श्रीराम को वे सारे आभूषण दिखाये ।।

१६.
उन वस्त्र और सुन्दर आभूषणों को ले कर श्रीरामचन्द्रजी कुहासेसे ढके हुए चन्द्रमा की भाँति आँसुओं से अवरुद्ध हो गये ।।

१७.
सीता के स्नेह वश बहते हुए आँसुओं से उन का मुख और वक्षः स्थल भीगने लगे। वे “हा प्रिये!” ऐसा कह कर रोने लगे और धैर्य छोड़ कर पृथ्वी पर गिर पड़े ।।

१८.
उन उत्तम आभूषणों को बारम्बार हृदय से लगा कर वे बिल में बैठे हुए रोष में भरे सर्प की भाँति जोर जोर से साँस लेने लगे ।।

१९.
उन के आँसुओं का वेग रुकता ही नहीं था। अपने पास खड़े हुए सुमित्राकुमार लक्ष्मण की ओर देख कर श्रीराम दीनभाव से विलाप करते हुए बोले- ।।

२०.
“लक्ष्मण! देखो, राक्षस के द्वारा हरी जाती हुइ विदेहनन्दिनी सीता ने यह चादर और ये आभूषण अपने शरीर से उतार कर पृथ्वी पर डाल दिये थे।” ।।

श्लोक २१ से २७.

२१.
“निशाचर के द्वारा अपहृत होती हुई सीता के द्वारा त्यागे गये ये आभूषण निश्चय ही घास वाली भूमि पर गिरे होंगे; क्योंकि इन का रूप ज्यों का त्यों दिखायी देता है-ये टूटे फूटे नहीं हैं।” ।।

२२.
श्रीराम के ऐसा कहने पर लक्ष्मण बोले, “भैया! मैं इन बाजूबंदों को तो नहीं जानता और न इन कुण्डलों को ही समझ पाता हूँ कि किसके हैं; परंतु प्रतिदिन भाभी के चरणों में प्रणाम करने के कारण मैं इन दोनों नूपुरों को अवश्य पहचानता हूँ।” ।।

२३ से २४.
तब श्री रघुनाथजी सुग्रीव से इस प्रकार बोले, “सुग्रीव! तुम ने तो देखा है, वह भयंकर रूपधारी राक्षस मेरी प्राण प्यारी सीता को किस दिशा की ओर ले गया है, यह बताओ?” ।।

२५.
“मुझे महान् संकट देने वाला वह राक्षस कहाँ रहता है? मैं केवल उसी के अपराध के कारण समस्त राक्षसों का विनाश कर डालूँगा।” ।।

२६.
“उस राक्षस ने मैथिली का अपहरण कर के मेरा रोष बढ़ा कर निश्चय ही अपने जीवन का अन्त करने के लिये मौत का दरवाजा खोल दिया है।” ।।

२७.
“वानर राज! जिस निशाचर ने मुझे धोखे में डाल कर मेरा अपमान कर के मेरी प्रियतमा का वन से अपहरण किया है , वह मेरा घोर शत्रु है । तुम उस का पता बताओ । मैं अभी उसे यमराज के पास पहुँचाता हूँ।” ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें छठा सर्ग पूरा हुआ ।।

Sarg 6 - Kishkindha Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal.