44. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 44

ओम् श्री गणेशाय नमः ।।

ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।

चौवालीसवाँ सर्ग – २३ श्लोक ।।

सारांश ।।

ब्रह्माजी द्वारा राजा भगीरथ की प्रशंसा करते हुए उन्हें गंगाजल से पितरों के तर्पण की आज्ञा देना और राजा का वह सब करके अपने नगर को लौट जाना, गंगावतरण के उपाख्यान की महिमा। ।।

आरम्भ ।।

श्लोक १ से १० ।।

१ से २.
श्रीराम! इस प्रकार गंगाजी को साथ लिये राजा भगीरथ ने समुद्र तक जा कर रसातल में, जहाँ उनके पूर्वज भस्म हुए थे, प्रवेश किया। वह भस्मराशि जैसे ही गंगाजी के जल से आप्लावित हो गयी, तब सम्पूर्ण लोकों के स्वामी भगवान् ब्रह्माजी ने वहाँ पधार कर राजा से इस प्रकार कहा – ।।

३.
“नरश्रेष्ठ! महात्मा राजा सगर के साठ हजार पुत्रों का तुमने उद्धार कर दिया। अब वे देवताओं की भाँति स्वर्गलोक में जा पहुँचे हैं।”।।

४.
“भूपाल! इस संसार में जब तक सागर का जल उपस्थित रहेगा; तब तक सगर के सभी पुत्र देवताओं की भाँति स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित रहें गे।” ।।

५.
“ये गंगा तुम्हारी भी ज्येष्ठ पुत्री होकर रहेंगी और तुम्हारे नाम पर रखे हुए भागीरथी नाम से इस जगत्में विख्यात होंगी।” ।।

६.
“त्रिपथगा, दिव्या और भागीरथी - इन तीनों नामों से गंगा की प्रसिद्धि होगी। ये आकाश, पृथ्वी और पाताल - तीनों पथों को पवित्र करती हुई गमन करती हैं, इस लिये त्रिपथगा मानी गयी हैं।” ।।

७.
“नरेश्वर! महाराज ! अब तुम गंगाजी के जल से यहाँ अपने सभी पितामहों का तर्पण करो और इस प्रकार अपनी तथा अपने पूर्वजों द्वारा की हुई प्रतिज्ञा को पूर्ण कर लो।” ।।

८.
“राजन्! तुम्हारे पूर्वज धर्मात्माओं में श्रेष्ठ महायशस्वी राजा सगर भी गंगा को यहाँ लाना चाहते थे; किंतु उनका यह मनोरथ पूर्ण लहीं हुआ।” ।।

९ से १०.
“वत्स! इसी प्रकार लोकोंमें अप्रतिम प्रभावशाली, उत्तम गुणविशिष्ट, महर्षितुल्य तेजस्वी, मेरे समान तपस्वी तथा क्षत्रिय धर्मपरायण राजर्षि अंशुमान ने भी गंगा को यहाँ लाने की इच्छा की; परंतु वे इस पृथ्वी पर उन्हें लानेकी प्रतिज्ञा पूरी न कर सके।” ।।

श्लोक ११ से २० ।।

११.
“निष्पाप महाभाग! तुम्हारे अत्यन्त तेजस्वी पिता दिलीप भी गंगा को यहाँ लाने की इच्छा करके भी इस कार्य में सफल न हो सके।” ।।

१२.
“पुरुषप्रवर! तुमने गंगा को भूतल पर लाने की वह प्रतिज्ञा पूर्ण कर ली। इस से संसार में तुम्हें परम उत्तम एवम् महान् यश की प्राप्ति हुई है ।।

१३.
“शत्रुदमन! तुमने जो गंगाजी को पृथ्वी पर उतारने का कार्य पूरा किया है, इस से उस महान् ब्रह्मलोक पर अधिकार प्राप्त कर लिया है, जो धर्म का आश्रय है।” ।।

१४.
“नरश्रेष्ठ! पुरुषप्रवर! गंगाजी का जल सदा ही स्नान के योग्य है। तुम स्वयम् भी इस में स्नान करो और पवित्र होकर पुण्य का फल प्राप्त करो।” ।।

१५.
“नरेश्वर! तुम अपने सभी पितामहों का तर्पण करो। तुम्हारा कल्याण हो। अब मैं अपने लोक को जाऊँगा। तुम भी अपनी राजधानी को लौट जाओ।” ।।

१६.
ऐसा कहकर सर्वलोक पितामह महायशस्वी देवेश्वर ब्रह्माजी जैसे आये थे, वैसे ही देवलोक को लौट गये। ।।

१७ से १८.
नरश्रेष्ठ! महायशस्वी राजर्षि राजा भगीरथ भी गंगाजी के उत्तम जल से क्रमशः सभी सगर- पुत्रों का विधिवत् तर्पण करके पवित्र हो अपने नगर को चले गये। इस प्रकार सफल मनोरथ होकर वे अपने राज्य का शासन करने लगे। ।।

१९.
रघुनन्दन! अपने राजा को पुनः सामने पाकर प्रजावर्ग को बड़ी प्रसन्नता हुई। सबका शोक जाता रहा। सबके मनोरथ पूर्ण हुए और चिन्ता दूर हो गयी। ।।

२०.
श्रीराम! यह गंगाजी की कथा मैंने तुम्हें विस्तार के साथ कह सुनायी है। तुम्हारा कल्याण हो। अब जाओ, मंगलमय संध्यावन्दन आदिका सम्पादन करो। देखो, संध्याकाल बीता जा रहा है। ।।

श्लोक २१ से २३ ।।

२१ से २२.
यह गंगावतरण का मंगलमय उपाख्यान आयु बढ़ाने वाला है। धन, यश, आयु, पुत्र और स्वर्ग की प्राप्ति करानेवाला है। जो ब्राह्मणों, क्षत्रियों तथा दूसरे वर्णो के लोगों को भी यह कथा सुनाता है, उसके ऊपर देवता और पितर प्रसन्न होते हैं। ।।

२३.
ककुत्स्थकुलभूषण! जो इस का श्रवण करता है, वह सम्पूर्ण कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और आयु की वृद्धि एवम् कीर्ति का विस्तार होता है। ।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में चौवालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।

Sarg 44- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.