21. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 21
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।
इक्कीसवाँ सर्ग – २२ श्लोक ।।
सारांश ।।
महर्षि विश्वामित्र के रोषपूर्ण वचन तथा मुनी वसिष्ठ का राजा दशरथ को समझाना। ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
राजा दशरथ की बात के प्रतेक अक्षर में पुत्र के प्रति स्नेह भरा हुआ था, उसे सुनकर महर्षि विश्वामित्र कुपित हो उनसे इस प्रकार बोले - ।।
२.
“राजन्! पहले मेरी मांगी हुइ वस्तु के देने की प्रतिज्ञा करके अब तुम उसे तोड़ना चाहते हो। प्रतिज्ञा का यह त्याग रघुवंशियों के योग्य तो नहीं है। यह बर्ताव तो इस कुल के विनाश का सूचक है।”। ।।
३.
“नरेश्वर! यदि तुम्हें ऐसा ही उचित प्रतीत होता है तो मैं जैसे आया था, वैसे ही लौट जाऊँगा। ककुत्स्थकुल के रत्न! अब तुम अपनी प्रतिज्ञा झूठी करके हितैषी सुहृदों से घिरे रह कर सुखी रहो।”। ।।
४.
बुद्धिमान् विश्वामित्र के कुपित होते ही सारी पृथ्वी कांप उठी और देवताओं के मन में महान् भय समा गया। ।।
५.
उनके रोष से सारे संसार को त्रस्त हुआ जान उत्तम व्रतका पालन करने वाले धीरचित महर्षि वसिष्ठ ने राजा से इस प्रकार कहा- ।।
६.
“महाराज! आप इक्ष्वाकुवंशी राजाओं के कुल में साक्षात् दूसरे धर्म के समान उत्पन्न हुए हैं। धैर्यवान्, उत्तम व्रतके पालक तथा श्रीसम्पन्न हैं। आपको अपने धर्म का परित्याग नहीं करना चाहिये।” ।।
७.
“रघुकुलभूषण दशरथ बड़े धर्मात्मा हैं” यह बात तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। अतः, आप अपने धर्म का ही पालन कीजिये; अधर्म का भार सिर पर न उठाइये।” । ।।
८.
“मैं अमुक कार्य करूँगा” – ऐसी प्रतिज्ञा करके भी जो उस वचन का पालन नहीं करता, उसके यज्ञ-यागादि इष्ट तथा बावली - तालाब बनवाने आदि पूर्त कर्मों के पुण्य का नाश हो जाता है, अतः, आप श्रीराम को विश्वामित्रजी के साथ भेज दीजिये।” ।
९.
“श्रीराम अस्त्रविद्या जानते हों या न जानते हों, राक्षस इनका सामना नहीं कर सकते। जैसे प्रज्वलित अग्नि द्वारा सुरक्षित अमृत पर कोई हाथ नहीं लगा सकता, उसी प्रकार कुशिकनन्दन विश्वामित्र द्वारा सुरक्षित हुए श्रीराम का वे राक्षस कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते।” । ।।
१०.
“ये श्रीराम तथा महर्षि विश्वामित्र साक्षात् धर्म की मूर्ति हैं। ये बलवानों में श्रेष्ठ हैं। विद्या द्वारा ही ये संसार में सबसे बढ़े - चढ़े हैं। तपस्या के तो ये विशाल भण्डार ही हैं।” । ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११.
“चराचर प्राणियों सहित तीनों लोकों में जो नाना प्रकार के अस्त्र हैं, उन सब को ये जानते हैं। इन्हें मेरे सिवा दूसरा कोई पुरुष न तो अच्छी तरह जानता ही है और न कोई जानेंगा ही।” । ।।
१२.
“देवता, ऋषि, राक्षस, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर तथा बड़े- बड़े नाग भी इनके प्रभाव को नहीं जानते हैं।” । ।।
१३.
“प्रायः सभी अस्त्र प्रजापति कृशाश्व के परम धर्मात्मा पुत्र हैं। उन्हें प्रजापति ने पूर्वकाल में कुशिकनन्दन विश्वामित्र को, जबकि वे राज्य शासन करते थे, समर्पित कर दिये थे।” । ।।
१४.
“कृशाश्व के वे पुत्र प्रजापति दक्ष की दो पुत्रियों की संतानें हैं। उन के अनेक रूप हैं। वे सब- के-सब महान् शक्तिशाली, प्रकाशमान और विजय दिलाने वाले हैं।” । ।।
१५.
“प्रजापति दक्ष की दो सुन्दर कन्याएँ हैं, उनके नाम हैं जया और सुप्रभा। उन दोनों ने एक सौ परम प्रकाशमान अस्त्र-शस्त्रों को उत्पन्न किया है।” ।।
१६.
“उनमें से जया ने वर पाकर पचास श्रेष्ठ पुत्रों को प्राप्त किया है, जो अपरिमित शक्तिशाली और रूपरहित हैं। वे सब-के-सब असुरों की सेनाओं का वध करने के लिये प्रकट हुए हैं।” ।।
१७.
“फिर सुप्रभा ने भी संहार नामक पचास पुत्रों को जन्म दिया, जो अत्यन्त दुर्जय हैं। उनपर आक्रमण करना किसी के लिये भी सर्वथा कठिन है तथा वे सब के सब अत्यन्त बलिष्ठ हैं।” ।।
१८.
“ये धर्मज्ञ कुशिकनन्दन उन सब अस्त्रों-शस्त्रों को अच्छी तरह जानते हैं। जो अस्त्र अब तक उपलब्ध नहीं हुए हैं, उन को भी उत्पन्न करने की इनमें पूर्ण शक्ति है।” ।।
१९.
“रघुनन्दन! इसलिये इन मुनिश्रेष्ठ धर्मज्ञ महात्मा विश्वामित्रजी से भूत या भविष्य की कोई बात छिपी नहीं है।” ।।
२०.
“राजन्! ये महातेजस्वी, महायशस्वी विश्वामित्र ऐसे प्रभावशाली हैं। अतः, इनके साथ राम को भेजने में आप किसी प्रकार का संदेह न करें।” ।।
श्लोक २१ से २२ ।।
२१.
“महर्षि कौशिक स्वयम् भी उन राक्षसों का संहार करने में समर्थ हैं; किंतु ये आपके पुत्र का कल्याण करना चाहते हैं, इसी लिये यहाँ आकर आप से याचना कर रहे हैं।” ।।
२२.
महर्षि वसिष्ठ के इस वचन से विख्यात यशवाले रघुकुलशिरोमणि नृपश्रेष्ठ दशरथ का मन प्रसन्न हो गया। वे आनन्दमग्न हो गये और बुद्धि से विचार करने पर विश्वामित्रजी की प्रसन्नता के लिये उनके साथ श्रीराम का जाना उन्हें रुचि के अनुकूल प्रतीत होने लगा। ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि द्वारा निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में इक्कीसवाँ सर्ग पूरा हुआ। ।।
Sarg 21- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal, The Blind Scientist.
