12. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 12
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।
बारहवाँ सर्ग ।।
सारांश ।
राजा का ऋषियों से यज्ञ कराने के लिये प्रस्ताव, ऋषियों का राजा को, और राजा का मन्त्रियों को यज्ञ की आवश्यक तैयारी करने के लिये आदेश देना ।।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१.
तदनन्तर, बहुत समय बीत जाने के पश्चात्, कोई परम मनोहर – दोष रहित समय प्राप्त हुआ। उस समय वसन्त ऋतु का आरम्भ हुआ था । राजा दशरथ ने उसी शुभ समय में यज्ञ आरम्भ करने का विचार किया ।।
२.
तत्पश्चात्, उन्होंने देवोपम कान्ति वाले विप्रवर ऋष्यश्रृंग को मस्तक झुकाकर प्रणाम किया, और वंश परम्परा की रक्षा के लिये पुत्र प्राप्ति के निमित्त यज्ञ कराने के उद्देश्य से उन का वरण किया ।।
३.
ऋष्यश्रृंग ने “बहुत अच्छा” कह कर उन की प्रार्थना स्वीकार की और उन पृथ्वी पति नरेश से कहा – “राजन् ! यज्ञ की सामग्री एकत्र कराइये । भूमण्डल में भ्रमण के लिये आप का यज्ञ सम्बन्धी अश्व छोड़ा जाय और सरयू के उत्तर तट पर यज्ञभूमि का निर्माण किया जाय” ।।
४ से ५.
तब राजा ने कहा – “सुमन्त्र ! तुम शीघ्र ही वेदविद्या के पारंगत ब्राह्मणों तथा ब्रह्मवादी ऋत्विजों को बुला ले आओ । सुयज्ञ, वामदेव, जाबालि, काश्यप, पुरोहित वसिष्ठ, तथा अन्य जो श्रेष्ठ ब्राह्मण हैं, उन सब को बुलाओ” ।।
६.
तब शीघ्रगामी सुमन्त्र तुरंत जाकर वेदविद्या के पारगामी उन समस्त ब्राह्मणों को बुला लाये ।।
७.
धर्मात्मा राजा दशरथ ने उन सब का पूजन किया और उन से धर्म तथा अर्थ से युक्त मधुर वचन कहे ।।
८.
“महर्षियो! मैं पुत्र के लिये निरन्तर संतप्त रहता हूँ । उसके बिना इस राज्य आदि से भी मुझे सुख नहीं मिलता है । अतः मैंने यह विचार किया है कि पुत्र प्राप्ति के लिये अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान करूँ ।।
९.
“इसी संकल्प के अनुसार मैं अश्वमेध यज्ञ का आरम्भ करना चाहता हूँ । मुझे विश्वास है कि ऋषिपुत्र ऋष्यश्रृंग के प्रभाव से मैं अपनी सम्पूर्ण कामनाओं को प्राप्त कर लूँगा” ।।
१०.
राजा दशरथ के मुख से निकले हुए इस वचन की वसिष्ठ आदि सब ब्राह्मणों ने “साधु साधु” कह कर बड़ी सराहना की ।।
श्लोक ११ से २० ।।
११ से १२.
इस के बाद ऋष्यश्रृंग आदि सब महर्षियों ने उस समय राजा दशरथ से पुनः यह बात कही – “महाराज ! यज्ञ सामग्री का संग्रह किया जाय, यज्ञ सम्बन्धी अश्व छोड़ा जाय, तथा सरयू के उत्तर तट पर यज्ञ भूमि का निर्माण किया जाय” ।।
१३.
“तुम यज्ञ द्वारा सर्वथा चार अमित पराक्रमी पुत्र प्राप्त करोगे; क्योंकि पुत्र के लिये तुम्हारे मन में ऐसे धार्मिक विचार का उदय हुआ है” ।।
१४.
ब्राह्मणों की यह बात सुन कर राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने बड़े हर्ष के साथ अपने मन्त्रियों से यह शुभ अक्षरों वाली बात कही ।।
१५.
“गुरु जनों की आज्ञा के अनुसार तुम लोग शीघ्र ही मेरे लिये यज्ञ की सामग्री जुटा दो । शक्तिशाली वीरों के संरक्षण में यज्ञिय अश्व छोड़ा जाय और उस के साथ प्रधान ऋत्विज् भी रहें” ।।
१६.
“सरयू के उत्तर तट पर यज्ञ भूमि का निर्माण हो, शास्त्रोक्त विधि के अनुसार क्रमशः शान्तिकर्म – पुण्याहवाचन आदि का विस्तार पूर्वक अनुष्ठान किया जाय, जिस से विघ्नों का निवारण हो” ।।
१७.
“यदि इस श्रेष्ठ यज्ञ में कष्टप्रद अपराध बन जाने का भय ना हो तो सभी राजा इस का सम्पादन कर सकते हैं” ।।
१८.
“परंतु ऐसा होना कठिन है; क्योंकि ये विद्वान् ब्रह्मराक्षस यज्ञ में विघ्न डालने के लिये छिद्र ढूँढ़ा करते हैं । विधिहीन यज्ञ का अनुष्ठान करने वाला यजमान तत्काल नष्ट हो जाता है” ।।
१९.
“अतः मेरा यह यज्ञ जिस तरह विधिपूर्वक सम्पूर्ण हो सके वैसा उपाय किया जाय । तुम सब लोग ऐसे साधन प्रस्तुत करने में समर्थ हो” ।।
२०.
तब “बहुत अच्छा” कह कर सभी मन्त्रियों ने राजराजेश्वर दशरथ के उस कथन का आदर किया और उन की आज्ञा के अनुसार सारी व्यवस्था की ।।
श्लोक २१ से २२ ।।
२१.
तत्पश्चात् उन ब्राह्मणों ने भी धर्मज्ञ नृप्श्रेष्ठ दशरथ की प्रशंसा की और उन की आज्ञा पाकर सब जैसे आये थे, वैसे ही फिर चले गये ।।
२२.
उन ब्राह्मणों के चले जाने पर मन्त्रियों को भी विदा कर के वे महा बुद्धिमान् नरेश अपने महल में चले गये ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्ड में बारहवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥
Sarg 12- Baal Kaand - Valmiki Ramayana Translated in Hindi and made Screen Readable for Blind and Visually Impaired Individuals by Dr T K Bansal.
