05. Valmiki Ramayana - Baal Kaand - Sarg 05
ओम् श्री गणेशाय नमः ।।
ओम् श्रीसीतारामचन्द्राभ्याम् नमः ।।
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण – बालकाण्ड ।।
पाँचवाँ सर्ग ।।
सारंश ।
राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरी का वर्णन ।
आरम्भ ।।
श्लोक १ से १० ।।
१ से ३.
यह सारी पृथ्वी पूर्व काल में प्रजापति मनु से ले कर अब तक जिस वंश के विजयशाली नरेशों के अधिकार में रही है, जिन्हों ने समुद्र को खुदवाया था और जिन्हें यात्राकाल में साठ हजार पुत्र घेर कर चलते थे, वे महा प्रतापी राजा सगर जिन के कुल में उत्पन्न हुए, इन्हीं इक्ष्वाकु वंशी महात्मा राजाओं की कुल परम्परा में रामायण नाम से प्रसिध इस महान् ऐतिहासिक काव्य की अवतारणा हुई है ।।
४.
हम दोनों आदि से अन्त तक इस सारे काव्य का पूर्ण रूप से गान करें गे। इस के द्वारा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों की सिद्धि होती है; अतः आप लोग दोष दृष्टि का परित्याग कर के इस का श्रवण करें ।।
५.
कोश नाम से प्रसिध एक बहुत बड़ा जनपद है, जो कि सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है। वह प्रचुर धन धान्य से सम्पन्न, सुखी और समृद्धि शाली है ।।
६.
उसी जनपद में अयोध्या नाम की एक नगरी है, जो समस्त लोकों में विख्यात है । उस पुरी को स्वयम् महाराज मनु ने बनवाया और बसाया था ।।
७.
वह शोभा शालिनी महा पुरी बारह योजन लम्बी और तीन योजन चौड़ी थी । वहाँ से बाहर के जनपदों में जाने का जो विशाल राजमार्ग था, वह उभय पार्श्व में विविध वृक्षा वलियों से विभूषित होने के कारण सुस्पष्टतया अन्य मार्गों से विभक्त जान पड़ता था ।।
८.
सुन्दर विभाग पूर्वक बना हुआ महान् राजमार्ग उस पुरी की शोभा बढ़ा रहा था। उस पर खिले हुए फूल बिखेरे जाते थे तथा प्रति दिन उस पर जल का छिड़काव होता था ।।
९.
जैसे स्वर्ग में देवराज इन्द्र ने अमरावतीपुरी बसायी थी, उसी प्रकार धर्म और न्याय के बल से अपने महान् राष्ट्र की वृद्धि करने वाले राजा दशरथ ने अयोध्यापुरी को पहले की अपेक्षा विशेष रूप से बसाया था ।।
१०.
वह पुरी बड़े-बड़े फाटकों और किवाड़ों से सुशोभित थी । उस के भीतर पृथक्-पृथक् बाजार थे। वहाँ सब प्रकार के यन्त्र और अस्त्र-शस्त्र संचित थे। उस पुरी में सभी कलाओं के शिल्पी निवास करते थे ।।
श्लोक ११ से २३ ।।
११.
स्तुति - पाठ करने वाले सूत और वंशावली का बखान करने वाले मागध वहाँ भरे हुए थे। वह पुरी सुन्दर शोभा से सम्पन्न थी। उस की सुषमा की कहीं तुलना नहीं थी । वहाँ ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ थीं, जिन के ऊपर ध्वज फहराते थे। सैकड़ों शतघ्नियों (तोपों) से वह पुरी व्याप्त थी ।।
१२.
उस पुरी में ऐसी बहुत-सी नाटक - मण्डलियाँ थीं, जिन में केवल स्त्रियाँ ही नृत्य एवम् अभिनय करती थीं। उस नगरी में चारों ओर उद्यान तथा आमों के बगीचे थे। लम्बाई और चौड़ाइ की दृष्टि से वह पुरी बहुत विशाल थी तथा साखू के वन उसे सब ओर से घेरे हुए थे ।।
१३.
उस के चारों ओर गहरी खाई खुदी थी, जिस में प्रवेश करना या जिसे लांघना अत्यन्त कठिन था। वह नगरी दूसरों के लिये सर्वथा दुर्गम एवम् दुर्जय थी। घोड़े, हाथी, गाय-बैल, ऊँट तथा गदहे आदि उपयोगी पशुओं से वह पुरी भरी-पूई थी ।।
१४.
आय तथा अन्य कर देने वाले सामन्त नरेशों के समुदाय उसे सदा घेरे रहते थे। विभिन्न देशों के निवासी वैश्य उस पुरी की शोभा बढ़ाते थे ।।
१५.
वहाँ के महलों का निर्माण नाना प्रकार के रत्नों से हुआ था। वे गगन चुम्बी प्रासाद पर्वतों के समान जान पड़ते थे। उन से उस पुरी की बड़ी शोभा हो रही थी । बहु संख्यक कूटा गारों (गुप्त गृहों अथवा स्त्रियों के क्रीड़ा भवनों) से परिपूर्ण वह नगरी इन्द्र की अमरावती के समान जान पड़ती थी ।।
१६.
उस की शोभा विचित्र थी। उस के महलों पर सोने का पानी चढ़ाया गया था ( अथवा वह पुरी द्यूतफलक के आकार में बसायी गयी थी ।) श्रेष्ठ एवम् सुन्दर नारियों के समूह उस पुरी की शोभा बढ़ाते थे। वह सब प्रकार के रत्नों से भरी-पूई तथा सतमहले प्रासादों से सुशोभित थी ।।
१७.
पुरवासियों के घरों से उस की आबादी इतनी घनी हो गयी थी कि कहीं थोड़ा-सा भी अवकाश नहीं दिखायी देता था। उसे समतल भूमि पर बसाया गया था। वह नगरी जड़हन धान के चावलों से भरपूर थी । वहाँ का जल इतना मीठा या स्वादिष्ट था, मानो ईख का रस हो ।।
१८.
भू मण्डल की वह सर्वोत्तम नगरी दुन्दुभि, मृदंग, वीणा, पणव आदि वाद्यों की मधुर ध्वनि से अत्यन्त गूंजती रहती थी ।।
१९.
देव लोक में तपस्या से प्राप्त हुए सिद्धों के विमान की भाँति उस पुरी का भू मण्डल में सर्वोत्तम स्थान था। वहाँ के सुन्दर महल बहुत अच्छे ढंग से बनाये और बसाये गये थे। उन के भीतरी भाग बहुत ही सुन्दर थे। बहुत से श्रेष्ठ पुरुष उस पुरी में निवास करते थे ।।
२० से २२.
जो अपने समूह से बिछुड़ कर असहाय हो गया हो, जिस के आगे-पीछे कोइ न हो (अर्थात् जो पिता और पुत्र दोनों से हीन हो) तथा जो शब्द वेधी बाण द्वारा बेधने योग्य हों अथवा युद्ध से हार कर भागे जा रहे हों, ऐसे पुरुषों पर जो लोग बाणों का प्रहार नहीं करते, जिन के सधे-सधाये हाथ शीघ्रता पूर्वक लक्ष्य वेध करने में समर्थ हैं, अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग में कुशलता प्राप्त कर चुके तथा जो वन में गर्जते हुए मतवाले सिंहों, व्याघ्रों और सूअरों को तीखे शस्त्रों से एवम् भुजाओं के बल से भी बल पूर्वक मार डालने में समर्थ हैं, ऐसे सहस्त्रों महा रथी वीरों से अयोध्या पुरी भरी-पूई थी। उसे महाराज दशरथ ने बसाया और पाला था ।।
२३.
अग्निहोत्री, शम-दम आदि उत्तम गुणों से सम्पन्न तथा छहों अंगों सहित सम्पूर्ण वेदों के पारंगत विद्वान् श्रेष्ठ ब्राह्मण उस पुरी को सदा घेरे रहते थे। वे सहस्रों का दान करने वाले और सत्य में तत्पर रहने वाले थे। ऐसे महर्षि कल्प महात्माओं तथा ऋषियों से अयोध्या पुरी सुशोभित थी तथा राजा दशरथ उस की रक्षा करते थे ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदि काव्य के बालकाण्ड में पाँचवाँ सर्ग पूरा हुआ ।।
प्रिय बन्धुओं, वालमिकी रामायण में बालकांड के पांचवे सर्ग के इस हिन्दी अनुवाद को प्रेम से पढ़ने के लिए मैं, Dr T K Bansal, आप सब का बहुत आभारी हूँ । अगर किसी भी सर्ग में आप को कोई भी त्रुटि मिलती है, तो आप मुझे इस की सूचना 'bansaltk@gmail.com' पर अवश्य करें ।
